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शाबास बॉक्‍सर बेटी ! तुमने सिखाया- ये जागने की घड़ी है, फिर कभी सो लेंगे...

पानीपत के भारत नगर की शिवानी ने खेलो इंडिया में पेश की जोश और जज्बे की मिसाल। तेज बुखार और पेट दर्द के बावजूद रिंग में उतरी, रजत पदक जीत लाई।

By Ravi DhawanEdited By: Published: Tue, 22 Jan 2019 02:01 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jan 2019 06:22 PM (IST)
शाबास बॉक्‍सर बेटी ! तुमने सिखाया- ये जागने की घड़ी है, फिर कभी सो लेंगे...
शाबास बॉक्‍सर बेटी ! तुमने सिखाया- ये जागने की घड़ी है, फिर कभी सो लेंगे...

पानीपत, [विजय गाहल्‍याण]।
गिरने दो मुसीबतों के पहाड़
मेरे मजबूत कंधे ढो लेंगे,
अभी विश्राम की मोहलत नहीं
पहले आसमां की बुलंदी को छू लेंगे,
दुश्वारियों से विचलित नहीं हैं हम
ये जागने की घड़ी है, फिर कभी सो लेंगे।

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अगर आपके अंदर जोश और जज्बा है तो आप हर बुलंदी को छू सकते हैं। लेकिन, सोचिए कि शरीर साथ न दे रहा हो फिर भी अपने बुलंद हौसलों से ऐसी परवाज पा ले, जो सबके लिए मिसाल बन जाए, तो क्या कहेंगे। ऊपर लिखी पंक्तियां पानीपत के भारत नगर की शिवानी पर सटीक बैठती हैं। महाराष्ट्र के पुणे में हुए खेलो इंडिया यूथ गेम्स में तेज बुखार और पेट दर्द से तड़प रही शिवानी ने आराम की बजाय रिंग में उतरने का फैसला किया और रजत पदक जीत लिया।

सबने रिंग में उतरने से रोका, किसी की नहीं सुनी
17 वर्ष की बॉक्सर शिवानी पुणे पहुंचीं तो अपने ही शरीर ने उन्हें तकलीफ देना शुरू कर दिया। रिंग में उतरने से पहले ही तेज बुखार ने जकड़ लिया। कोच और साथी खिलाडिय़ों ने सलाह दी कि बॉक्सिंग रिंग में न उतरे। शरीर स्वस्थ रहा तो भविष्य में भी पदक जीत लेगी। शिवानी ने सभी की बातों को अनसुना कर दिया। उसकी आंखों में तो जीत के विश्वास की चमक थी।

पंच में थी ताकत
बुखार ने शिवानी की काया को तो दुर्बल कर दिया था लेकिन उसके पंच में ताकत भरपूर थी। रिंग में उसने दो अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉक्सरों को पटखनी देते हुए फाइनल में जगह बना ली। अंतिम मुकाबले में भी शिवानी ने पूरा दमखम दिखाया, लेकिन शरीर ने पूरा साथ नहीं दिया। उन्हें हार का सामना करना पड़ा और 54 किलोग्राम भार वर्ग में उन्होंने रजत पदक जीता।

माता-पिता का संघर्ष भी कम नहीं
शिवानी की मां पूनम मजदूरी करती हैं। पिता स्वतंत्र कुमार गार्ड की नौकरी छोड़ बॉक्सरों की मालिश का काम करते हैं। तंगहाली के बावजूद बेटी को आगे बढ़ाने में दोनों ने कोई कसर नहीं छोड़ी।

झोली में इतने पदक
राष्ट्रीय स्तर- एक कांस्य
राज्य स्तर- चार स्वर्ण और दो रजत

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विंका के भी पंच से निकला रजत
इसी प्रतियोगिता में शिमला मौलाना की विंका ने भी अंडर-17 आयुवर्ग में 63 किलोग्राम में रजत पदक जीता है। दोनों ही शिवाजी स्टेडियम में अभ्यास करती हैं। इनके कोच सुनील कुमार का कहना है कि शिवानी ने बीमार होने के बावजूद पदक जीतना काबिलेतारीफ है। इससे उत्साह और अधिक ऊंचा हो जाता है। विंका ने भी अच्छा खेल दिखाया है। 

मलाल है कि स्वर्ण नहीं जीत पाई
शिवानी ने बताया कि हरियाणा में सर्दी है। पुणे में मौसम गर्म था। वहां पहुंचते ही बुखार हो गया। पेट में दर्द था। इसके बावजूद निश्चय किया कि ङ्क्षरग नहीं छोड़ेगी। नेशनल चैंपियन उत्तराखंड के पिथौरागढ़ की सपना और अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर दिल्ली की रिया टोकस को हराकर फाइनल में जगह बनाई। फाइनल मुकाबले में पेट दर्द बढ़ गया। अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉक्सर मध्यप्रदेश की दिव्या को कड़ी टक्कर दी, लेकिन हार गई। स्वर्ण पदक नहीं जीतने का मलाल है।

पदक तालिका में हरियाणा
मेजबान महाराष्ट्र 228 पदकों के साथ पदक तालिका में टॉप पर रहा। हरियाणा को दूसरा और दिल्ली को तीसरा स्थान मिला।

  • 62 गोल्ड
  • 56 सिल्वर
  • 60 ब्रॉन्ज
  • 178 कुल पदक

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