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पराली से पर्यावरण को नहीं होगा नुकसान, फसल अवशेष प्रबंधन से खेत को बना रहे उपजाऊ

पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए अब हरियाणा के किसानों में जागरूकता देखने को मिल रही है। कैथल में प्लाऊ हल मशीन से किसानों ने पर्यावरण संरक्षण के साथ- साथ सुधारा अपनी खेत की जमीन को।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Tue, 12 Oct 2021 09:43 AM (IST)Updated: Tue, 12 Oct 2021 09:43 AM (IST)
पराली से पर्यावरण को नहीं होगा नुकसान, फसल अवशेष प्रबंधन से खेत को बना रहे उपजाऊ
प्लाऊ हल मशीन के बारे में जानकारी देते किसान।

कैथल, जागरण संवाददाता। प्लाऊ हल मशीन से किसानों ने पर्यावरण संरक्षण के साथ- साथ फसल अवशेष प्रबंधन करने की ठानी है। किसानों का कहना है कि फसल अवशेषों को खेतों में जलाने से जमीन की उर्वरता शक्ति कमजोर हो रही थी और प्रदूषण फैल रहा है। इससे बीमारियां बढ़ने का खतरा बना रहता है। बीमारियों का ख्याल रखते हुए अवशेष न जलाने की जगह प्लाऊ मशीन से खेत में अवशेष मिलाने शुरू किया है। ताकि खुद व अन्य लोग भी स्वस्थ रहे। फसल अवशेषों के जलाए जाने से निकलने वाले धुएं से पर्यावरण प्रदूषण तो बढ़ता ही है। साथ ही, धुएं की वजह से हृदय और फेफड़े से जुड़ी बीमारियां भी बढ़ती हैं। इसलिए उन्होंने प्लाऊ का इस्तेमाल कर प्रकृति को प्रदूषण रहित बनाने की सोच रखी है।

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किसान सुखदेव सिंह ने बताया कि प्लाऊ हल मशीन फसल अवशेष प्रबंधन में काफी कारगार साबित होती है। वे पिछले तीन सालों से करीब 200 एकड़ जमीन में फसल अवशेषों का प्रबंधन कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि अवशेष जमीन के नीचे चले जाते है। उसके बाद अवशेष सड़ कर खाद का रूप धारण कर लेते है। मिट्टी अवशेषों के ऊपर आ जाती है। इससे फसलों में खाद की कम जरूरत पड़ती है। प्लाऊ हल से फसल अवशेष पलटने के बाद तने, पत्तियां और जड़ें खेत में रह जाती हैं जिनको जुताई करके मृदा में दबाने से खेत के उपजाऊपन में सुधार आता है।

आग लगाने की नहीं पड़ती जरूरत: संदीप

किसान संदीप ने बताया कि प्लाऊ मशीन फसल अवशेष प्रबंधन में बेहतर है। इससे खेत की जमीन पलट जाती है और खेत की उर्वरता शक्ति बढ़ जाती है। फसल अवशेष के पोषक तत्व प्रदान करने में महत्वपूर्ण योगदान है। फसल अवशेष पौधों को पोषक तत्व प्रदान करने के साथ-साथ मृदा की भौतिक, रासायनिक और जैविक क्रियाओं को अच्छा रखते हैं।

प्लाऊ मशीन फसल अवशेष प्रबंधन में अच्छी मशीन है। इससे जमीन कमजोर नहीं होती है। जैविक खाद किसान तैयार कर सकते है।

डा. कर्मचंद, कृषि उपनिदेशक कैथल


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