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हरियाणा की पूर्व आइपीएस भारती अरोड़ा के तो अब गिरिधर गोपाल, दूसरा न कोई; वृंदावन बनेगा बसेरा

Bharti Arora in Krishna Bhakti हरियाणा की तेजतर्रार आइपीएस अधिकारी रहीं भारती अरोड़ा ने सरकारी नौकरी छोड़ दी है और श्रीकृष्‍ण की भक्ति में रम गई हैं। उनके तो अब बस ग‍िरिधर गोपाल हैं। पेश है उनसे खास बातचीत।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Thu, 02 Dec 2021 01:05 PM (IST)Updated: Thu, 02 Dec 2021 01:05 PM (IST)
हरियाणा की पूर्व आइपीएस भारती अरोड़ा के तो अब गिरिधर गोपाल, दूसरा न कोई; वृंदावन बनेगा बसेरा
हरियाणा की पूर्व आइपीएस अधिकारी भारती अरोड़ा। (जागरण)

अंबाला। हरियाणा कैडर की तेजतर्रार आइपीएस अधिकारी भारती अरोड़ा ने पुलिस सेवा को अलविदा कह दिया है। अब उनके बस गिरिधर गोपाल हैं, दूसरा न कोई। उन्‍होंने अपना शेष जीवन श्रीकृष्‍ण की भक्ति के लिए स‍मर्पित कर दिया है। श्रीकृष्‍ण की भक्ति के लिए अंबाला आइजी कार्यालय से रिलीव हो गई हैं। इस दाैरान पितांबर व भगवा वस्त्रों में उनके चेहरे पर मुस्कान थी। सरकारी सेवा से मुक्‍त होने के बाद वह  अंबाला से मथुरा-वृंदावन के लिए रवाना हो गईं।

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बोलीं- जीवन का लक्ष्य क्या है, ठाकुर जी की कृपा से समझ आया, इसलिए ली वीआरएस

अंबाला रेंज की आइजी रहीं भारती अरोड़ा का कहना है कि वह  गुरुनानक, चैतन्य महाप्रभु, कबीरदास, तुलसीदास, मीराबाई तथा सूफी संतों की राह पर चलेंगी। 1998 बैच की आइपीएस भारती अरोड़ा का  कहना है कि शेष जीवन ठाकुर जी की भक्ति और सेवा में बीतेगा। राज्य सरकार ने आइपीएस अधिकारी के अनुरोध पर वीआरएस पर मुहर लगा दी थी। प्रशासनिक अधिकारियों ने कार्यक्रम आयोजित कर उनके कार्यकाल की सराहना की और विदाई पार्टी दी। उनका कहना है कि ठाकुर जी की कृपा से समझ में आया कि जीवन का असली लक्ष्‍य क्‍या है और इसी कारण स्‍वैच्छिक सेवानिवृति (VRS) ली। 

     

पीतांबर और भगवा कपड़ों में दिखीं तो पूछने पर कहा - मैं तो पहले भी ऐसे ही रहती थी

दैनिक जागरण के अंबाला के मुख्य संवाददाता दीपक बहल से बातचीत के दौरान भारती अरोड़ा ने बताया कि जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए ऐसा कदम उठाया है। अब समझ में आया कि जीवन का असली लक्ष्य क्या है। उन्होंने अपने करियर के अनुभव साझे किए और शेष जीवन के बारे में भी खुलकर बातचीत की। पीतांबर व भगवा वस्‍त्र के बारे में पूछने पर उन्‍होंने कहा कि मैं तो पहले भी ऐसी ही थी। पेश है उनसे बीतचीत के प्रमुख अंश- 

महकमे में चर्चाएं हैं कि राजनीति में कदम रखते हुए मथुरा की छाता विधानसभा से भी आप चुनाव लड़ सकती हैं?

-  नहीं, बिलकुल नहीं, नाम भी मत लेना। इसका कोई चांस ही नहीं है।

1998 में आइपीएस बनने के बाद अब तक कोई ऐसा कार्य या आदेश जो आप करना चाहते थे, लेकिन राजनीतिक दबाव या उच्चाधिकारियों के दबाव में न कर पाए हों ?

सब कुछ कर लिया है, अब कोई मलाल नहीं है। मैं बहुत खुश हूं और अपनी पुलिस सेवा से संतुष्ट हूं।

पुलिस महकमे को देखा और समझा और इसको लेकर क्या संदेश देना चाहती हैं ?

हमारा महकमा काफी महत्वपूर्ण है। वर्दी मिली बड़े सौभाग्य की बात है। वर्दी पहनकर अहंकार में मत आएं। इसमें इतनी ताकत है कि आप लोगों का जीवन बदल सकते हैं। मुसीबत में व्यक्ति पुलिस के पास आता है और उसके आंसू पोंछने चाहिए।

खाकी अक्सर जनता के बीच बदनाम रही है। राजनीतिक दबाव और उच्चाधिकारियों के दखल से न चाहते हुए भी कुछ फैसले लेने पड़ते हैं। इसको लेकर आप क्या कहेंगी?

निष्पक्ष होकर अपना काम करना चाहिए। न्याय करना चाहिए और गलती से भी अन्याय नहीं होना चाहिए। ध्यान रखने की जरूरत है, क्योंकि कर्म का सिद्धांत अटल है और इसका फल अवश्य मिलेगा।

वीआरएस लेने के बाद साध्वी वेश में रहेंगी या फिर वृंदावन के मंदिर में पूजा पाठ करेंगी। आगे का जीवन कैसा रहेगा ?

आइडिया तो यही है कि जिस कार्य के लिए वीआरएस लिया है हर पल और हर क्षण उसी कार्य में लगे। प्रयास यही है लेकिन कितना कर पाते हैं ये ठाकुर जी जानें। उनकी प्रेरणा से जैसा भी होगा वैसा करेंगे।

नौकरी के साथ भक्ति की जा सकती है, वीआरएस ही क्यों लेनी है, यह मन में क्यों और कैसे आया। मथुरा और वृंदावन के मंदिर में तो आप 2005 से जा रही हैं ?

मैं इंतजार कर रही थी। जिम्मेदारियां थीं, बच्चे छोटे थे। मेरे छोटे बेटे की 12वीं क्लास हो चुकी है और वह अब बीटेक में है। मेरे वीआरएस के फैसले में आइपीएस पति विकास अरोड़ा और मेरी बहन का समर्थन रहा है।

आइपीएस पति विकास अरोड़ा भी भगवान की भक्ति में हैं। क्या वे भी आने वाले समय में वीआरएस ले सकते हैं ?

 ऐसा कुछ नहीं है। उनका बहुत सपोर्ट रहा है। अगर सपोर्ट न रहता तो यह कदम भी न उठा पाती।

भक्ति के लिए आइपीएस की नौकरी छोड़ देना ही क्या एकमात्र विकल्प है ?

पहले पता नहीं था। आम सांसारिक जीवन की तरह रहते थे। जीवन का लक्ष्य क्या है अब समझ में आ गया है।

जीवन का लक्ष्य अब क्या समझ में आया है ?

 मनुष्य जीवन का एक उद्देश्य परम आनंद की स्थिति को प्राप्त करके भगवद हासिल करना है। जिसे में संसार के सुख समझते हैं वह क्षण भर के लिए हैं। पावर, स्टेटस, नाम, पैसा यह सब क्षणिक हैं। यह हमेशा खुशी नहीं दे सकते। भगवान का प्रेम का हल्का सा भी अनुभव हो जाए तो सांसारिक सुख फीके पड़ जाते हैं। इसलिए ठाकुर जी की कृपा से सब समझ आ गया। इसमें अब उस लक्ष्य की ओर कदम बढ़ा रही हूं।

छोटा सा जीवन है, 50 साल दे दिए संसार को : भारती अरोड़ा

ठाकुर जी और गुरु जी की कृपा से जब मुझे समझ आया कि छोटा सा जीवन है और 50 साल मैंने संसार को दे दिए हैं। शेष जीवन जो बचा है, उसे अपना लक्ष्य प्राप्त करने में लगाना है। जब हम पैसा इनवेस्ट करते हैं, तो ऐसी जगह करते हैं, जहां से अच्छी रिटर्न आए। अब तो जिंदगी का सवाल है, इसलिए जीवन को उस दिशा में ले जाना है, जहां से सुफल प्राप्त हो।


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