नवजात बच्चों से जुड़ी है खबर, आंखों की जांच करानी है जरूरी
इन दिनों नवजातों की आंख की जांच जरूरी है। नेत्रहीन का खतरा मंडरा रहा है। प्री-मेच्योर नवजातों को नेत्रहीन का खतरा रहता है। जरा सी लापरवाही बरतने पर शिशु जन्म भर के लिए नेत्रहीन हो सकता है। आइए जानते हैं इस बारे में क्या कहती हैं शिशु रोग विशेषज्ञ।
पानीपत, जेएनएन। गर्भवती महिलाओं और जच्चा के लिए बड़े काम की खबर है। शिशु का जन्म प्री-मेच्योर (सात-आठ माह में) हुआ है, वजन दो किलोग्राम से कम है तो रेटिनोपैथी आफ प्री-मेच्योरिटी(आरओपी)का खतरा रहता है।जन्म के समय शिशु को 10 दिन तक आक्सीजन दी गई है तो हर हाल में 28 दिन का होने से पहले उसके नेत्रों की जांच अवश्य करानी चाहिए। लापरवाही बरतने पर शिशु जन्मभर के लिए नेत्रहीन हो सकता है।
सिविल अस्पताल की शिशु रोग विशेषज्ञ डा. निहारिका ने बताया कि खानपान, रहन-सहन सही न होने, संक्रमण, खून की कमी, उच्च रक्तचाप, हाई ग्रेड फीवर आदि के कारण प्री-मेच्योर डिलीवरी की संख्या बढ़ रही है। सिविल अस्पताल में ही रोजाना चार-पांच प्री-मेच्योर डिलीवरी संपन्न करायी जा रही है। अधिकांश नवजातों का वजन डेड़ किग्रा. या इससे कम होता है।सांस लेने में तकलीफ होने के कारण नवजात को आक्सीजन लगानी पड़ती है। लगातार दस दिन लगातार आक्सीजन दिए जाने से रेटिना पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
भेंगापन की समस्या भी हो सकती है। ऐसे बच्चों को नेत्र विभाग में जांच के लिए भेजा जाता है। डा. निहारिका के मुताबिक निजी अस्पताल या घरों में जन्मे और बाद में स्पेशल न्यू बोर्न चाइल्ड केयर यूनिट में भर्ती रहे बच्चों का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
प्री-मेच्योर में आरओपी के अन्य कारण
-रक्त बदलना या नवजात का रक्त चढ़ाना।
-अधिक समय तक एंटीबायोटिक देना।
-उच्च रक्तचाप रहना।
यह है आरओपी बीमारी
रक्तवाहिनियों के असामान्य बढ़ने से रेटिना भर जाता है, क्षतिग्रस्त भी हो सकता है। प्रथम स्टेज में बीमारी स्वत: ठीक हो जाती है। दूसरी स्टेज में लेजर तकनीक से इलाज होता है। तीसरी-चौथी स्टेज में शिशु को पीजीआइ चंडीगढ़ भेजा जाता है। सर्जरी के बावजूद, विजन सही होने की उम्मीद कम रहती है।
क्या कहते हैं नेत्र रोग विशेषज्ञ
सिविल अस्पताल में नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. केतन भारद्वाज ने बताया कि प्री-मेच्योर नवजात को अधिक आक्सीजन देने से करीब 20 फीसद बच्चों के रेटिना को खतरा रहता है।सरकार ने पीजीआइ चंडीगढ़ को इस बीमारी के लिए नोडल हास्पिटल बनाया हुआ है। शिशु तीन-चार सप्ताह का होने पर स्क्रीनिंग के लिए बुलाते हैं। दिक्कत होने पर तुरंत चंडीगढ़ रेफर करते हैं।