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मेरा भगवान न हो बीमार, इसलिए गुरुद्वारे के लंगर में तैयार हो रहा विशेष खाना

कोरोना संक्रमित लोगों का इलाज कर रहे मेडिकल स्‍टाफ के लिए आर्गेनिक आटे से लंगर में रोटियां बन रही हैं। मध्यप्रदेश में श्योपुर जिले स्थित फार्म हाउस आर्गेनिक गेहूं से मंगाए गए।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Sat, 11 Apr 2020 02:16 PM (IST)Updated: Sat, 11 Apr 2020 02:16 PM (IST)
मेरा भगवान न हो बीमार, इसलिए गुरुद्वारे के लंगर में तैयार हो रहा विशेष खाना
मेरा भगवान न हो बीमार, इसलिए गुरुद्वारे के लंगर में तैयार हो रहा विशेष खाना

पानीपत, जेएनएन। कोरोना संक्रमितों का इलाज करने में जुटे डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ के लिए गुरुद्वारे में विशेष लंगर पकाया जा रहा है। लंगर में जिस आटे से रोटी तैयार बनती है, वो आर्गेनिक गेहूं की है। सुबह-शाम मिला कर 140 लोगों का खाना पकता है। सिख यूथ सेवा दल ने इसका बीड़ा उठा रखा है।

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लॉकडाउन में सामाजिक संस्थाएं भोजन सेवा कार्य में जुटी हैं। असंध रोड पर ज्योति नगर स्थित नामधारी गुरुद्वारा है। गुरुद्वारे का निर्माण अभी पूरा नहीं हुआ है, लेकिन लॉकडाउन में लंगर सेवा जारी है। लकड़ी के चूल्हे पर ही डॉक्टरों के लिए रोटी पकाई जाती है। गुरुद्वारा परिसर में सुबह 10 बजे से लेकर दोपहर एक बजे तक लंगर पकता है।

सुबह में 70 से 80 और शाम में 50-60 चिकित्सकों और मेडिकल स्टाफ का खाना यहां से जाता है। ये वो हैं जिनकी बाहर से पानीपत में ड्यूटी लगी है। सिख यूथ सेवा दल के सदस्य सुखविंदर ने बताया कि लंगर सेवा में सद्गुरु उदय सिंह और पूर्व विधायक बलबीर पाल शाह का पूरा सहयोग है। दिनेश जैन सहित कुछ अन्य उद्यमी भी इस कार्य में हाथ बंटा रहे हैं। गुरु की कृपा से लॉकडाउन रहने तक लंगर सेवा चलती रहेगी।

सुबह-शाम का खाना अलग

नामधारी गुरुद्वारा के प्रधान गुलजार सिंह ने बताया कि सुबह ओर शाम का मेन्यू अलग-अलग होता है। दोपहर में चावल कढ़ी, राजमा और रोटी और रात को लंगर में मीठा एक आइटम (खीर व दलिया) जरूर होता है। मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले स्थित फार्म हाउस से ऑर्गेनिक गेहूं मंगा कर उसके आटे की रोटी बनवाते हैं। तेल के लिए पीली सरसों भी आर्गेनिक इस्तेमाल होता है।

चार महिलाएं पकाती हैं लंगर

चूल्हे पर लंगर तैयार करने में देवेंद्र कौर, रजवंत, मंजीत व कंवलजीत कौर का अहम रोल रहता है। लकड़ी सुलगाते समय ये महिलाएं उससे निकलने वाले धुएं की परवाह नहीं करती हैं। आटा गूंथने से लेकर रोटी सेकने तक सब हाथों हाथ कर लेती हैं। उनका ये मानना है तीन-दशक पहले घरों में इसी चूल्हे का प्रचलन था। लकड़ी पर बने भोजन से लोग बीमार नहीं पड़ते थे।

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