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माता सीता से जुड़ा है कैथल का ये तीर्थ, पांडव भी आए थे यहां

कैथल का सीवन। इसे पहले सीयावन कहा जाता था। सीयावन माता सीता की वजह से कहा जाता था। माता सीता से इस तीर्थ की कहानी जुड़ी है। यहां पर पांडव भी आए थे। पांडव ने युद्ध के बाद यहां के सरोवर में स्‍नान किया था।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Sat, 21 Nov 2020 02:59 PM (IST)Updated: Sat, 21 Nov 2020 02:59 PM (IST)
माता सीता से जुड़ा है कैथल का ये तीर्थ, पांडव भी आए थे यहां
स्वर्गद्वार मंदिर कैथल-पटियाला मार्ग से एक किलोमीटर की दूर है।

पानीपत/कैथल, जेएनएन। कैथल के सीवन तीर्थ का जुड़ाव माता सीता से है। जी हां, ये सच है। भगवचान राम से अलग होने के बाद माता सीता यहां पर रुकी थीं। यहीं नहीं, यहां युद्ध के बाद पांडव भी आए थे। यहां पर बने सरोवर में स्‍नान भी किया था। पढि़ए सीवन से जुड़े और भी रोचक तथ्‍य।

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पटियाला मार्ग पर बसे जिले के कस्बा सीवन में श्री राम से अलग होने के बाद माता सीता ने वनवास काटा, वनों की कटाई होने के बाद यह सीयावन कहलाया। जिसे आज सीवन के नाम से जाना जाता हैं। इस गांव में स्थित स्वर्ग द्वार मंदिर एवं तीर्थ आर्कषण का केंद्र है।

कई मंदिर हैं यहां और सबकी अलग-अलग मान्‍यता

मंदिर में शिवालय, बसन्ती माता का मंदिर, दुर्गा माता का मंदिर, श्रीराम दरबार, हनुमान जी का मंदिर है। नगर में इस मंदिर की बहुत मान्यता है। ऐसी मान्यता है कि माता सीता विश्राम के समय इस तीर्थ पर पेड़ काटती थी। मंदिर का निर्माण 18 वीं सदी में कराया गया था। मंदिर की वास्तुकला और नक्काशी का काम देखते ही बनता है। यहां शिवालय ही नहीं बल्कि कृष्ण और राम मंदिर भी बने हुए हैं। वैसे तो इस मंदिर का निर्माण महाभारत काल के समय ही हो गया।

यहां रणमोचन तीर्थ भी

महाभारत काल के समय में भी पांच पांडवाें यहां आकर पूजा की थी। मंदिर के समीप स्थित रणमोचन तीर्थ भी है, जहां माता सीता का वास था। जबकि माता सीता अक्सर यहां विश्राम करने के लिए आती थी। मंदिर नगर के दक्षिण क्षेत्र में स्थित है। यह नगर में सौथा जाने वाले मार्ग पर स्थित है। मंदिर की एक धर्मशाला भी है।  

मंदिर का जीर्णाद्धार करवाने की जरुरत

श्रद्धालु ऋषिकेश शर्मा ने बताया कि वर्तमान समय में इस मंदिर का जीर्णाद्धार करवाने की जरुरत है। मंदिर के साथ ही एक तालाब है जो इस समय बहुत दयनीय हालात है। इस तालाब का भी काफी महत्व है। क्योंकि महाभारत काल में पांडवों ने यहां स्नान किया था। स्वर्ग द्वार मंदिर के दो घाट होते थे, जो अब विलुप्त हो चुके हैं। वैसे तो यह तीर्थ कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के तहत आता है। वर्ष 2008 में इस प्राचीन ऐतिहासिक तीर्थ का अवलोकन कर एस्टीमेट तैयार करवाकर भी कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड को भेजा गया था, लेकिन तालाब का जीर्णाेद्धार नहीं हो पाया है।

कैथल-पटियाला मार्ग से एक किलोमीटर दूर स्थित है मंदिर

स्वर्गद्वार मंदिर  कैथल-पटियाला मार्ग से एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर महाशिवरात्रि के दिन भव्य आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही यहां पर जन्माष्टमी पर्व पर भी भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। यहां पूजा-अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।


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