Mahatma Gandhi Death Anniversary: आजादी के बाद दो बार पानीपत आए थे गांधीजी, उनकी सोच से बनी टेक्सटाइल इंडस्ट्री
Mahatma Gandhi Death Anniversary आज महात्मा गांधी जी की 73वीं पुण्य तिथि है। गांधी जी का पानीपत से गहरा नाता रहा है। पानीपत में दो बार आए थे और दोनों बाद किला मैदान भी गए। उनके प्रयास से ही आज पानीपत को टेक्सटाइल सिटी के नाम से जाना जाता है।
पानीपत, जेएनएन। क्या आप जानते हैं, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आजादी के बाद दो बार पानीपत में आए थे। पानीपत के किले से उन्होंने देश के नाम एकता का संदेश दिया। यह उनकी सोच का ही नतीजा रहा कि पानीपत आज टेक्सटाइल इंडस्ट्री बन सकी। पानीपत का ही किला था, जहां पर उनकी जान बचाई गई थी। आज उनकी पुण्य तिथि पर उन्हीं से जुड़ी दो यादों को आपसे साझा करते हैं।
पानीपत में महात्मा गांधी 10 नवंबर 1947 और दो दिसंबर 1947 को पानीपत आए थे। दोनों ही बार वह किला मैदान पर पहुंचे। यहीं पर सभा हुई। दोनों ही बार गांधीजी को लाने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई मौलवी लकाउल्ला खान ने। लकाउल्ला ही थे, जो पानीपत को छोड़कर नहीं गए थे। उनका पूरा परिवार उन्हें छोड़ पाकिस्तान चला गया था। जब उनसे पूछा जाता कि आप क्यों नहीं जाते पाकिस्तान तो वे कहते थे, गांधीजी ने कहा है, पानीपत छोड़कर नहीं जाना। उनसे वादा किया है। इस वादे को टूटने नहीं देंगे। अब बात करते हैं, पानीपत को टेक्सटाइल नगरी बनाने में गांधीजी की भूमिका कैसे महत्वपूर्ण रही। पानीपत में पहले से ही हैंडलूम का काम होता था। खड्डियां लगी हुई थी।
विभाजन के बाद जब इन कारीगरों ने भारत में नहीं रहने का फैसला किया तो गांधीजी इन्हें रोकने पानीपत आए थे। किसी तरह भी नहीं माने तो गांधीजी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से पूछा कि पाकिस्तान में खड्डी चलाने वाले लोग क्या भारत में आए हैं। तब कार्यकर्ताओं ने हैदरबाद से आए परिवारों को रोहतक, सोनीपत तक तलाशा। खड्डी चलाने वाले हैदराबादी परिवार रोहतक में ठहरे थे। उन्हीं में एक थे उस्ताद नंदलाल। उस्ताद नंदलाल ने भी गांधीजी को विचार दिया था कि उन्हें रोहतक की जगह पानीपत में जगह दी जाए। यहां वे खड्डी चलाकर अपना गुजारा कर लेंगे। मुस्लिमों की छोड़ी हैंडलूम उन्हें मिल गई। ताना-बाना लगा लगाया मिल गया। इस तरह, धीरे-धीरे कर हैंडलूम का काम करने वालों को पानीपत में बसाया गया। उस समय की नींव आज टेक्सटाइल सिटी के वृक्ष के रूप में हम सभी के सामने है।
एक वो किस्सा, जब बचाई गांधीजी की जान
एडवोकेट राममोहन राय ने बताया कि महात्मा गांधी 10 नवंबर, 1947 को किला ग्राउंड पर पहुंचे थे। कांग्रेसी नेता मौलवी लकाउल्ला की गुजारिश पर गांधीजी पानीपत पहुंचे। किला ग्राउंड पर ही मंच लगा। जैसे ही गांधीजी अपनी बात रखने लगे, कुछ उपद्रवियों ने हंगामा कर दयिा। तभी कामरेड टीका राम सुखन दौड़कर आए। उन्होंने गांधीजी को लाइब्ररी के कमरे में बंद कर दिया। इस दौरान उग्र भीड़ को शांत किया। अगर सुखन समझदारी न दिखाते तो कुछ भी हो सकता था। गांधीजी की जान को खतरा था। पानीपत पर एक बड़ा दाग लग जाता। इसके बाद सुखनराम ने करनाल -पानीपत में साम्प्रदायिक सद्भाव व विस्थापितों को बसाने का काम किया। सुखन शहीद भगत सिंह के साथी थे। हरियाणा बनने पर सीपीआइ के राज्य सचिव बने। सुखन दंपती ने ताम्रपत्र और पेंशन लेने से इन्कार कर दिया था। कहा था कि इस सम्मान के लिए सजा नहीं काटी।
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