अपनों को खोया और नौकरी छूटी, फिर 22 गांवों की बेटियों के लिए फरिश्ता बना पूर्व फौजी
देश का एक रखवाला पहले खुद घायल होे गया और फिर अपनों को गंवा दिया। नौकरी भी छूट गई तो जींद का यह पूर्व सैनिक 22 गांवों की बेटियों के लिए फरिश्ता बन गया।
जींद, [कर्मपाल गिल]। सरहद की रखवाली करते-करते घायल हुए, फिर एक हादसे में अपनों को खोया, नौकरी छूटी, मगर जिंदगी में कुछ कर गुजरने की तमन्ना बरकरार रही। गांव पहुंचकर बेटियों की दिक्कतों से रूबरू हुए तो ठान लिया कि अब बेटियों के मान-सम्मान के लिए ही जीना है। उन्होंने जिले के दूर-दराज के गांवों की सैकड़ों बेटियों के लिए दो निश्शुल्क बसें चलाने का फैसला किया। आज इनमें 22 गांवों की 200 से अधिक छात्रएं स्कूल-कॉलेज आती-जाती हैं।
22 गांवों की छात्राओं के लिए चलते हैं निश्शुल्क दो बसें
जींद के गांव भंभेवा निवासी विनोद समरा आज जिले की बेटियों के लिए फरिश्ता बन चुके हैं। बेटियां उन्हें यही नाम देती हैं। विनोद की उम्र करीब 36 साल है। हरियाणा के नामी अंतराष्ट्रीय बॉक्सरों के साथ विनोद ने रिंग भी में दम दिखाया है। 2002 में दिल्ली में हुई प्रतियोगिता में जीत हासिल कर नेशनल चैंपियन का खिताब जीता था।
बेटियों की मुश्किलें देखकर शुरू किया मदद का अभियान, दोनों बसों में हैं महिला कंडक्टर
समरा बताते हैं कि बॉक्सिंग के दम पर उनका चयन सेना में हवलदार के पद पर हुआ था। हालांकि सड़क हादसे में उन्हें हेड इंजरी हुई, इसके बाद उनका खेल छूट गया और सेना की नौकरी भी छोड़नी पड़ी। बाद में कुछ समय दिल्ली और मुंबई में नौकरी की। इसी दौरान पत्नी सुमन की प्रेरणा से गुरुग्राम में एलएंडएल सिक्युरिटी सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड कंपनी शुरू की। लेकिन, जब भी गांव की बेटियों को स्कूल जाने में होने वाली परेशानियों का जिक्र छिड़ता, तो मन में उनके लिए कुछ कर गुजरने की इच्छा होती।
गांव के आसपास कोई कॉलेज नहीं
गांव भंभेवा के आसपास कोई कॉलेज नहीं होने से छात्रओं को उच्च शिक्षा के लिए शहर जाने में काफी परेशानी होती थी। विनोद बताते हैं, पत्नी सुमन के साथ चर्चा की और दोनों ने पिता चौ. अभे राम समरा नंबरदार के नाम पर दो बसें चलाने का फैसला किया। बसों के चलने से अब कई बेटियां उच्च शिक्षा हासिल कर रही हैं। बसों में महिला कंडक्टर नियुक्त हैं।
कॉलेज जाने लगीं लड़कियां
गांव भंभेवा की राखी ने बताया कि कॉलेज के समय पर तो कोई बस नहीं आती है। आती है तो भीड़ इतनी रहती है कि चढ़ नहीं पाते। प्राची ने कहा कि उन समेत काफी लड़कियां ऐसी हैं, जिन्हें इस सेवा के कारण ही घरवालों ने कॉलेज में दाखिला दिलवाया है। यह बस नहीं चलती तो शायद माता-पिता रोडवेज की बसों में उन्हें कॉलेज भेजते ही नहीं।
हर माह सवा लाख रुपये खर्च
विनोद समरा ने बताया कि दोनों बसों का हर महीने 15 हजार रुपये रोड टैक्स के रूप में सरकार को देते हैं। करीब 65 हजार रुपये डीजल खर्च हो जाता है और 30 हजार रुपये दोनों ड्राइवरों व महिला कंडक्टरों का वेतन है। रखरखाव व अन्य खर्चों पर करीब सवा लाख रुपये महीना खर्च होता है। यह सारा खर्च उनकी कंपनी उठाती है।
-----
'' हरियाणा रोडवेज की जींद डिपो में बसों की कमी है। फिर भी प्रयास रहेगा कि जींद से गोहाना रूट पर रोडवेज बसों की संख्या बढ़ाई जाए ताकि छात्रओं को परेशानी न हो।
- बिजेंद्र हुड्डा, महाप्रबंधक, हरियाणा रोडवेज, जींद डिपो
------
'' मामला संज्ञान में आया है। आरटीए को निर्देश दिया जाएगा कि छात्रओं की परेशानी को दूर करने के लिए संबंधित अधिकारियों की मीटिंग लें।
- डॉ आदित्य दहिया, जिला उपायुक्त, जींद।
पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
यह भी पढ़ें: शहादत के बाद खूब किए वादे, समय गुजरा तो भूल गई सरकार, न दी नौकरी न बनी यादगार