हरियाणा में यहां स्थापित है भगवान बलभद्र का मंदिर, खोदाई में निकली थी मूर्ति, हुआ था दैवीय चमत्कार
धार्मिक नगरी कुरुक्षेत्र से महज 25 किमी दूर गांव धौलरा में भगवान बलभद्र का मंदिर आस्था का केंद्र है। यहां पर खोदाई के दौरान भगवान बलभद्र की मूर्ति निकली थी। मूर्ति को जब ग्रामीण अपने साथ ले जाने लगा तो दैवीय शक्ति की वजह से उसे ले नहीं जा सका।
रादौर (यमुनानगर), [रविंद्र सैनी]। गांव धौलरा धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व समेटे हुए हैं। बलभद्र मंदिर गांव के धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व की पहचान बना हुआ है। मंदिर का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि पूरे भारतवर्ष में ऐसे केवल दो ही मंदिर है। जहां पर भगवान बलभद्र जी की स्वयंभू मूर्ति स्थापित है। इसमें से एक है गांव धौलरा, दूसरा मंदिर जग्रनाथ पूरी में है।
यह हर साल लगता मेला
मंदिर की महत्ता के कारण हर वर्ष अक्षया तृतीया के दिन यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। मेले व भंडारे में पहुंचे श्रद्धालु यहां आकर मन्नते मांगते हैं और जब मन्नते पूरी हो जाती है तो फिर बलभद्र जी का आभार जताने प्रसाद स्वरूप कुछ लेकर आते हैं और श्रद्धालुओं में बांटते है। हालांकि मंदिर की महत्ता के अनुसार प्रशासन यहां पर अधिक कुछ नहीं कर पाया है, जबकि इसे बड़े धार्मिक व पर्यटक स्थल के रूप में उभारा जा सकता है। जिससे गांव व आसपास के लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी पैदा हो सकते हैं।
खोदाई में निकली थी मूर्ति :
मंदिर के पुजारी अरूण पुरी ने बताया कि भगवान बलभद्र जी के पूरे भारत के केवल दो ही ऐतिहासिक मंदिर है। एक यहां गांव धौलरा में स्थित है तो दूसरा जग्रनाथ पुरी में है, यहां पिंडी रूप में भगवान श्री बलभद्र जी विराजमान है, लेकिन गांव धौलरा में उनकी प्राचीन मूर्ति स्थापित है। यह मूर्ति गांव में करीब 300 वर्ष पहले जोहड़ की खुदाई के समय मिली थी। तब से मूर्ति उसी रूप में यहां पर स्थापित है।
पूरी होती है मन्नत
कहा जाता है कि जब यह खुदाई में मूर्ति मिली तो इसे यहां से एक श्रद्धालु ने अपने साथ ले जाने का भी प्रयास किया था, लेकिन दैवीय शक्ति के कारण वह इसे गांव से बाहर नहीं ले जा सका। जिसके बाद गांव में ही इसे स्थापित किया गया और तभी से पूरे विधि विधान व धार्मिक आस्था के साथ ग्रामीण यहां मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं। हर वर्ष अक्षया तृतीया के दिन यहां पर विशाल मेले व कुश्ती दंगल का आयोजन होता है। दूर दराज के क्षेत्रों से श्रद्धालु माथा टेकने पहुंचते हैं। मंदिर की मान्यता है कि यहां आने वाले हर श्रद्धालु की मन्नत पूरी होती है।
प्रशासन दे ध्यान तो पर्यटक स्थल के रूप में उभर सकता है गांव
गांव के लाभसिंह व अन्य का कहना है कि गांव का धार्मिक महत्त्व काफी अधिक है। धार्मिक नगरी कुरूक्षेत्र से गांव की दूरी महज 25 किलोमीटर है। सरकार धार्मिक स्थानों को उभारने का कार्य भी कर रही है, लेकिन उनके गांव पर सरकार व प्रशासन की नजर अभी तक नहीं पड़ी है, अगर सरकार यहां के धार्मिक महत्त्व को देखते हुए ध्यान दे तो गांव की कायाकल्प हो सकती है। यह एक धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में उभर सकता है। जिससे गांव व आसपास के लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलेगें।