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कभी ठुमकों पर गूंजती थी तालियां, अब बेच रहे फल-सब्जी

यूथ फेस्टिवल नाटक मंचन सांस्कृतिक कार्यक्रम बंद होने से कलाकारों के लिए रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल हो रहा है। आलम ये है कि कई कलाकार सब्‍जी बेचने तक को मोहताज हो रहे हैं।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Wed, 27 May 2020 01:26 PM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 01:26 PM (IST)
कभी ठुमकों पर गूंजती थी तालियां, अब बेच रहे फल-सब्जी
कभी ठुमकों पर गूंजती थी तालियां, अब बेच रहे फल-सब्जी

पानीपत/जींद, [कर्मपाल गिल]। यूनिवर्सिटी या कॉलेज में यूथ फेस्टिवल हो या नाटक का मंचन। गाने की शूटिंग हो या सांस्कृ़तिक कार्यक्रम। डांसर दीपक खन्ना, साहिल, रवि, कमल पेगां, सोनू ढिगाणा, अनवर लाल के ठुमकों पर जमकर तालियां बजती थी और किलकारियां गूंजती थी। ठहाकों के साथ लोग हंस कर लोट-पोट हो जाते थे। जिस तरह पनिहारी पानी पिलाकर प्यास बुझाती है, उसी तरह इनके ठुमके भी कला के दीवानों को तृप्त कर देते थे। अब कोरोना ने इनकी ठुमकाई तो बंद कर ही दी है, फल व सब्जी बेचने के लिए भी मजबूर कर दिया है।

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डांसर साहिल, सुधीर, प्रशांत, जयकृष्ण, सुरजीत ही नहीं, देश-दुनिया तक हरियाणवी कला संस्कृति को पहुंचाने वाले प्रदेशभर के सभी कलाकार आज घर चलाने के लिए दूसरे काम धंधे करने को मजबूर हैं। वरिष्ठ डांसर पवन राज बताते हैं कि कोरोना ने कला की बेकद्री कर दी है। इसीलिए मजबूरी में फलों व सब्जी की रेहड़ी लगानी पड़ रही है। राज कहते हैं कलाकार जहां होगा, वहां भीड़ तो होगी ही। लेकिन कोरोना से बचने को फिजिकल डिस्टेंस रखना जरूरी है। इस कारण कलाकारी ठप हो गई है। पहले कॉलेजों में यूथ फेस्टिवल का काम मिल जाता था। उसका कांट्रैक्ट लेते थे। डांस-थिएटर करवाते थे। हर महीने 10 से 15 हजार रुपये कमा लेते थे। अब प्रदेश सरकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम बंद हो गए हैं। डांसर आर्यन व सुभाष बामला कहते हैं कि स्कूल, कॉलेज व अन्य कार्यक्रमों में ग्रुप डांस की तैयारियां बंद हो गई हैं। यह भी नहीं पता कि यह बुरा समय कब तक रहेगा। कब दोबारा मंच सज पाएगा। पैरों में कब घुंघरू बंधेंगे और कब सीटियां बजाने को मजबूर करने वाले ठुमके लगेंगे। 

पवन टैक्सी स्टैंड पर लगा रहे गाड़ी

प्रदेश के बेहतरीन डांसर पवन राज ने अपना ओम विद्या डांस थिएटर म्यूजिकल ग्रुप बना रखा है। वह कहते हैं उनके साथ करीब 20-25 लड़के काम करते थे। सभी बेहतरीन कलाकार हैं। अब कोरोना ने सभी कार्यक्रम बंद कर दिए हैं। नाटकों के शो बंद हो चुके हैं। फिल्मों, एलबम व गानों की शूङ्क्षटग स्थगित हो गई हैं। आखिर घर तो चलाना ही है। ऐसे हालात में कोई फल बेचने लग गया है तो कोई सब्जी की रेहड़ी लगा रहा है। वह खुद टैक्सी स्टैंड पर अपनी किराए के लिए गाड़ी लगाने को मजबूर हैं। सरकार को चाहिए कि कलाकारों को दस हजार रुपये महीना राहत भत्ता देना शुरू करे।

दुखद: इंस्ट्रूमेंट बेचने को मजबूर हुए कलाकार

कलाकारों पर कोरोना की मार कितनी भयंकर है, यह बखान करना भी मुश्किल है। डांसर पवन बताते हैं उनके एक साथी के पास इलेक्ट्रिक बेंजू, ढोलक सहित कई इंस्ट्रूमेंट हैं। अब कोई काम-धंधा न होने पर उसने इन इंस्ट्रूमेंट को बेचना निकाल दिया है। एक कलाकार के लिए इससे दुखद कुछ नहीं हो सकता। वह कहते हैं उनकी पार्टी में शामिल ढोलक प्लेयर सुरजीत अब फल बेच रहा है। रिदम प्लेयर अनिल सब्जी की रेहड़ी लगा रहा है। बैंजू प्लेयर जितेंद्र दिहाड़ी पर जाता है। पवन कहते हैं कलाकार भावुक होता है। संवेदनशील होता है। वह तंगहाली में गुजर-बसर कर लेगा, लेकिन स्वाभिमान को ठेस नहीं लगने देगा। 

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राहत भत्ता या पेंशन दे सरकार: रंगकर्मी रमेश कुमार

वरिष्ठ रंगकर्मी रमेश कुमार कहते हैं कि प्रदेशभर के कलाकारों की हालत बहुत पतली है। सरकार को उनकी आर्थिक मदद करनी चाहिए। ये लोग हरियाणा की संस्कृति को ङ्क्षजदा रखे हुए हैं। कहीं ये कलाकार बड़े राजनेताओं के कार्यक्रमों में सिर्फ शो-पीस बनकर न रह जाएं। इसलिए इस मौके पर मदद की जरूरत है। जब तक सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू नहीं होते, तब सरकार इनको राहत भत्ता या मासिक पेंशन शुरू करे।


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