पानीपत में अब्दाली से मराठे क्यों हारे, जानिये सात कारण
पानीपत के मैदान पर लड़ी गई थी तीसरी जंग। 1761 की इस जंग में अफगान शासक से मराठे इतनी बुरी तरह हारे कि पूरे देश की राजनीतिक दशा बदल गई। मराठे अगर कुछ गलतियां न करते तो जीत जाते जंग।
By Ravi DhawanEdited By: Published: Tue, 15 Jan 2019 02:01 PM (IST)Updated: Wed, 16 Jan 2019 10:43 AM (IST)
पानीपत, जेएनएन। पानीपत के मैदान पर लड़ी गई तीसरी जंग अगर मराठे नहीं हारते तो आज देश का वर्तमान कुछ और ही होता। इस जंग ने देश का सामाजिक ताना-बाना भी बदल दिया। अफगान शासक अहमद शाह अब्दाली से ज्यादा ताकत होने के बावजूद मराठे बुरी तरह हार गए। कहा जाता है कि इस जंग में इतना बडा़ नुकसान हुआ कि महाराष्ट्र में कोई ऐसा घर नहीं था, जिसमें किसी एक मराठे की जान न गई हो। 258 वर्ष हो चुके हैं इस जंग को। पानीपत के काला अंब में वीर मराठों को याद किया गया। आइये, पढ़ते हैं मराठे ये जंग क्यों हारे, इसके सात मुख्य कारण रहे।
पहल कारण- मौसम
इतिहासकारों का कहना है कि मराठे सर्दी के मौसम की वजह से भी हारे। कंपकंपाती ठंड में उनके लिए जंग लड़ना आसान नहीं था। दूसरी तरफ, अब्दाली की फौजें सर्द मौसम से परिचित थीं। इसी वजह से अफगान फौज सर्दी के मौसम में मैदान पर बेहतर लड़ सकी।
दूसरा कारण - खाने की सप्लाई न हो सकी
कहते हैं कि मराठों को अब्दाली ने यमुना के पास घेर लिया था। नदी के पास अफगान फौजें थीं, जो आलू जैसी फसल उगाकर महीनों तक गुजारा कर सकती थीं। दूसरी तरफ मराठों के लिए दिल्ली से खाने-पीने की सप्लाई बंद हो गई। इसका उन्हें बड़ा नुकसान हुआ। जब खाने का सामान खत्म होने लगा तो मराठों ने सोचा कि भूखे मरने से अच्छा है कि जंग में मरें।
तीसरा कारण - युद्ध नीति पर एकमत नहीं थे
इतिहासकार कहते हैं कि मराठे लड़ाका युद्ध की रणनीति पर एकमत नहीं थे। होल्कर और सिंधिया गुरिल्ला युद्ध करना चाहते थे। दूसरी तरफ मराठों के कुछ सरदार जैसे भाऊ जी और इब्राहीम खान गरदी युद्ध में आर्टिलरी के खासे इस्तेमाल के पक्ष में थे। इसी गफलत में सेना रही और आखिरकार जंग हारनी पड़ी।
चौथा कारण - शासनतंत्र का अच्छा संदेश नहीं दिया था
मराठे हर तरफ सफलता के झंडे गाड़ रहे थे। लगातार जीत की वजह से उन्होंने शासन तंत्र का ख्याल ही नहीं रखा। जहां-जहां उन्होंने राज्य जीता, वहां अव्यवस्था ही फैली रही। लूट-खसोट बढ़ गई। जब मराठे पानीपत की जंग लड़ने के लिए निकले तो उन्हें अपने शासन तंत्र की वजह से आम जनता का कभी समर्थन नहीं मिला।
पांचवां कारण - अब्दाली की राजनीति, दुश्मनों को दोस्त बनाया
अफगानिस्तान का अहमद शाह अब्दाली केवल लुटेरा ही नहीं, एक कूटनीतिक शासक भी था। कई हिन्दू-मुस्लिम शासकों के साथ उसके मित्रता के संबंध थे। अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किया तो उसका सामना न ही भारत में मुगलों ने किया और न ही किसी और क्षत्रप ने।
छठा कारण - परिवार को साथ लाने का फैसला भारी पड़ा
मराठे अपनी जीत के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त थे। उन्होंने सोचा था कि अब्दाली को हराकर वे मकर संक्रांति पर कुरुक्षेत्र के ब्रह़मसरोवर पर स्नान करेंगे। इसके लिए वे महिलाओं और बच्चों को भी साथ ले आए। जंग में जब वे घिर गए तो महिलाओं और बच्चों को संभालने में ही उनकी आधी फौज लग गई। इसका नतीजा ये हुआ कि उन्हें बुरी हार का सामना करना पड़ा।
सातवां कारण- मराठों ने किसी का साथ न लिया, किसी ने दिया भी नहीं
मराठों के शत्रुओं ने भी इस लड़ाई में अपना अवसर देखा। ये वो शत्रु थे, जो सीधे-सीधे मराठों से टकरा नहीं सकते थे। इन्होंने सोचा कि अगर अफगान शासक जीता तो वो वापस लौट जाएगा। अगर मराठे जीते तो वो उन पर राज करेंगे। इसलिए कुछ राजाओं ने अब्दाली का साथ दिया। इतिहासकारों का कहना है कि मराठों ने कुछ राजाओं का साथ लेने से इन्कार कर दिया। उन्हें अतिआत्मविश्वास था कि वे अकेले ही जंग जीत जाएंगे। इन दो बड़े कारणों की वजह से तीसरी जंग भी पानीपत हार गया। यहां तक की पेशवा के भाई व बेटे भी मारे गए।
पहल कारण- मौसम
इतिहासकारों का कहना है कि मराठे सर्दी के मौसम की वजह से भी हारे। कंपकंपाती ठंड में उनके लिए जंग लड़ना आसान नहीं था। दूसरी तरफ, अब्दाली की फौजें सर्द मौसम से परिचित थीं। इसी वजह से अफगान फौज सर्दी के मौसम में मैदान पर बेहतर लड़ सकी।
दूसरा कारण - खाने की सप्लाई न हो सकी
कहते हैं कि मराठों को अब्दाली ने यमुना के पास घेर लिया था। नदी के पास अफगान फौजें थीं, जो आलू जैसी फसल उगाकर महीनों तक गुजारा कर सकती थीं। दूसरी तरफ मराठों के लिए दिल्ली से खाने-पीने की सप्लाई बंद हो गई। इसका उन्हें बड़ा नुकसान हुआ। जब खाने का सामान खत्म होने लगा तो मराठों ने सोचा कि भूखे मरने से अच्छा है कि जंग में मरें।
तीसरा कारण - युद्ध नीति पर एकमत नहीं थे
इतिहासकार कहते हैं कि मराठे लड़ाका युद्ध की रणनीति पर एकमत नहीं थे। होल्कर और सिंधिया गुरिल्ला युद्ध करना चाहते थे। दूसरी तरफ मराठों के कुछ सरदार जैसे भाऊ जी और इब्राहीम खान गरदी युद्ध में आर्टिलरी के खासे इस्तेमाल के पक्ष में थे। इसी गफलत में सेना रही और आखिरकार जंग हारनी पड़ी।
चौथा कारण - शासनतंत्र का अच्छा संदेश नहीं दिया था
मराठे हर तरफ सफलता के झंडे गाड़ रहे थे। लगातार जीत की वजह से उन्होंने शासन तंत्र का ख्याल ही नहीं रखा। जहां-जहां उन्होंने राज्य जीता, वहां अव्यवस्था ही फैली रही। लूट-खसोट बढ़ गई। जब मराठे पानीपत की जंग लड़ने के लिए निकले तो उन्हें अपने शासन तंत्र की वजह से आम जनता का कभी समर्थन नहीं मिला।
पांचवां कारण - अब्दाली की राजनीति, दुश्मनों को दोस्त बनाया
अफगानिस्तान का अहमद शाह अब्दाली केवल लुटेरा ही नहीं, एक कूटनीतिक शासक भी था। कई हिन्दू-मुस्लिम शासकों के साथ उसके मित्रता के संबंध थे। अब्दाली ने भारत पर आक्रमण किया तो उसका सामना न ही भारत में मुगलों ने किया और न ही किसी और क्षत्रप ने।
छठा कारण - परिवार को साथ लाने का फैसला भारी पड़ा
मराठे अपनी जीत के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त थे। उन्होंने सोचा था कि अब्दाली को हराकर वे मकर संक्रांति पर कुरुक्षेत्र के ब्रह़मसरोवर पर स्नान करेंगे। इसके लिए वे महिलाओं और बच्चों को भी साथ ले आए। जंग में जब वे घिर गए तो महिलाओं और बच्चों को संभालने में ही उनकी आधी फौज लग गई। इसका नतीजा ये हुआ कि उन्हें बुरी हार का सामना करना पड़ा।
सातवां कारण- मराठों ने किसी का साथ न लिया, किसी ने दिया भी नहीं
मराठों के शत्रुओं ने भी इस लड़ाई में अपना अवसर देखा। ये वो शत्रु थे, जो सीधे-सीधे मराठों से टकरा नहीं सकते थे। इन्होंने सोचा कि अगर अफगान शासक जीता तो वो वापस लौट जाएगा। अगर मराठे जीते तो वो उन पर राज करेंगे। इसलिए कुछ राजाओं ने अब्दाली का साथ दिया। इतिहासकारों का कहना है कि मराठों ने कुछ राजाओं का साथ लेने से इन्कार कर दिया। उन्हें अतिआत्मविश्वास था कि वे अकेले ही जंग जीत जाएंगे। इन दो बड़े कारणों की वजह से तीसरी जंग भी पानीपत हार गया। यहां तक की पेशवा के भाई व बेटे भी मारे गए।
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