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क्‍या आप जानते हैं सरस्‍वती नदी का ये रहस्‍य, मुस्लिम दंपती के फावड़े से फूटी थी जलधारा

एमओयू पर हस्ताक्षर होने से सरस्वती में जल प्रवाहित होने की संभावनाएं बढ़ी। 21 अप्रैल 2015 में शुरू हुई थी खोदाई। 21 तारीख को ही एमओयू पर हुए हस्ताक्षर-हरियाणा के विभिन्न जिलों से होती हुई पंजाब की घग्गर नदी में होगा संगम। जिले के 47 गांवों से गुजरेगी।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Sat, 22 Jan 2022 10:39 AM (IST)Updated: Sat, 22 Jan 2022 10:39 AM (IST)
क्‍या आप जानते हैं सरस्‍वती नदी का ये रहस्‍य, मुस्लिम दंपती के फावड़े से फूटी थी जलधारा
यमुनानगर के आदिबद्री में सरस्‍वती नदी का उद्गगम स्‍थल।

यमुनानगर, जागरण संवाददाता। 21 अप्रैल 2015 को वह ऐतिहासिक दिन था जब उपमंडल बिलासपुर के गांव रुलहाखेड़ी में सरस्वती नदी की खोदाई का कार्य शुरू हुआ था। अब 21 जनवरी को आदिबद्री में बांध बनाने के लिए ही हरियाणा व हिमाचल प्रदेश की सरकारों के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर हुए। जिसके बाद दोनों राज्यों की सीमा में नदी पर बांध बनाने का रास्ता साफ हो गया है। इसके साथ ही सरस्वती नदी में जल प्रवाह होने की संभावनाओं को भी बल मिल गया है। जिला से गुजर रहे ज्यादातर हिस्से में सरस्वती नदी की खोदाई का कार्य पूरा हो चुका है। इंतजार केवल इसमें पानी आने का है। खोदाई के समय प्रदेश सरकार ने सरस्वती की खोज के लिए 50 करोड़ रुपये की मंजूरी दी थी।

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मुस्लिम दंपती के फावड़े से फूटी थी जलधारा

2015 में सरस्वती नदी की खोदाई का कार्य शुरू हुआ था। इसकी खोदाई के लिए जिला प्रशासन ने दिनरात एक कर दिया था। सैकड़ों की संख्या में मजदूरों ने खोदाई की थी। खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इसकी खोदाई का जायजा लिया था। नदी की खुदाई करने वाले मुस्लिम दंपती सलमा और रफीक के फावड़े से सात फीट गहराई में सरस्वती नदी में पानी की जलधारा फूट पड़ी थी। जिसके बाद प्रदेश के कई मंत्री वहां पर सरस्वती के जल का आचमन व पूजा करने पहुंचे थे।

आदिबद्री में है उद्गम स्थल

सरस्वती नदी धार्मिक और ऐतिहासिक दोनों पहलुओं से अति महत्व रखती है। यह नदी हिमाचल प्रदेश के सिरमौर क्षेत्र के पर्वतीय भाग से निकलकर यमुनानगर, अंबाला व कुरुक्षेत्र, कैथल व जींद जिले से होते हुए पंजाब के घग्गर नदी में मिलेगी। यमुनानगर की बात की जाए तो 47 गांवों से होकर निकलेगी और इसकी लंबाई करीब 35 किलोमीटर है। यहां आदिबद्री में उद्गम स्थल पर सरस्वती बूंद-बूंद के रूप में बह रही है, लेकिन संधाय, आंबवाला, भीलछप्पर, ककड़ौनी, पीरुवाला, सरस्वतीनगर, साढौरा सहित अन्य कई स्थानों पर सरस्वती प्रकट रूप में है। पानी का बहाव न होने के कारण कई जगह तो भारत की इस ऐतिहासिक व पवित्र नदी नाले में तब्दील होकर रह गई हैं।

सेटेलाइट से हुआ था सर्वे

जानकारी के मुताबिक वर्ष 1980 में नासा ने इस इलाके का सर्वे किया था और कुछ सेटेलाइट तस्वीरें जारी की थी। इसमें यह दिखाया गया कि जमीन के नीचे सरस्वती नदी बह रही है। इसके बाद 1990 में नासा ने फिर से इस प्रोजेक्ट पर काम किया। नासा का जो मैप आया, उसमें जमीन के नीचे आदिब्रदी से लेकर राजस्थान तक में सरस्वती नदी व इसके चैनल को दर्शाया गया। वर्ष 1993 में इसरो ने इस पर काम किया। उसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि सरस्वती है। सर्वे ऑफ इंडिया के 1965 के नक्शे में भी सरस्वती नदी का जिक्र है। हरियाणा के राजस्व रिकार्ड में भी सरस्वती नदी मौजूद है। नासा का मैप भी सरस्वती का वही रूट बताता है जो राजस्व रिकार्ड में है।

स्व. दर्शन लाल जैन का अथक प्रयास काम आया

सरस्वती नदी की खोज के लिए हरियाणा में सरस्वती नदी शोध संस्थान के पूर्व अध्यक्ष स्व. दर्शन लाल जैन के अथक प्रयास रहे। करीब तीन दशक पहले सरस्वती की खोज के लिए उन्होंने काम शुरू किया। उन्होंने सरस्वती नदी शोध संस्थान की स्थापना की। राज्य में सरकार चाहे किसी भी दल की रही हो वे इस काम में जुटे रहे। वर्ष 2019 में केंद्र सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया था। गत वर्ष दर्शन लाल जैन 94 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कह गए।

केंद्रीय जल शक्ति मंत्री भी आए थे आदिब्रदी

23 नवंबर 2020 को केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी आदिबद्री में आए थे। उन्होंने सरस्वती उद्गमस्थल की पूजा की थी। तब केंद्रीय मंत्री ने कहा था कि हरियाणा में 200 किलोमीटर तक इस नदी में जल प्रवाह की कार्य योजना पर काम चल रहा है। सरस्वती नदी हरियाणा के अलावा उनके गृह क्षेत्र राजस्थान के जैसलमेर व गुजरात के कच्छ क्षेत्रों में भी मौजूद है। जब सरस्वती नदी में जल प्रवाहित होगा तो यह परियोजना जल संरक्षण, सिंचाई, पेयजल के साथ-साथ पर्यटन के लिए भी लाभकारी होगी। हिमाचल व हरियाणा की सीमा पर बांध के लिए एमओयू तैयार करने के निर्देश उन्होंने ही दोनों राज्यों की सरकारों को दिए थे।

597 करोड़ रुपये की बनी है योजना

सरस्वती नदी में पानी की उपलब्धता को लेकर ङ्क्षसचाई विभाग ने 597 करोड़ रुपये की योजना तैयार कर रखी है। जिसमें पहले चरण में 388 करोड़ व दूसरे चरण में लगभग 200 करोड़ रुपये खर्च होंगे। जिसमें आदिबद्री में सरस्वती नदी के उद्गम स्थल से ऊपर की ओर पहाड़ी क्षेत्र में डैम बनाकर पानी एकत्रित किया जाएगा। बड़े पाइप के माध्यम से पानी सरस्वती नदी के उद्गम स्थल से गुजार कर सरस्वती सरोवर में छोड़ा जाएगा। दूसरे प्रोजेक्ट में रामपुर गेंडा में जाने वाले पुल से 400 मीटर दूरी पर बनने वाले बैराज में पानी एकत्रित कर सरस्वती नदी के प्रवाह में शामिल किया जाएगा। इसके बाद तीसरे बड़े प्रोजेक्ट में रामपुर कंबोयान के समीप पंचायती जमीन पर रिजरवाइ बनाया जाएगा। जिससे 1405 क्यूसेक पानी सरस्वती नदी का प्रवाह होगा। इसके लिए ग्राम पंचायत से पंचायती भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा। सरस्वती नदी के प्रवाह में तीन महीने 200 क्यूसेक तथा नौ माह 20 क्यूसेक पानी उपलब्ध रहेगा। 88 एकड़ के डैम में हिमाचल प्रदेश की 77 एकड़ भूमि आएगी।

भूमि दान के लिए किसान भी आ रहे हैं आगे

हरियाणा सरस्वती हेरिटेज बोर्ड के डिप्टी चेयरमैन धुम्मन सिंह किरमच ने बताया कि सरस्वती नदी प्रोजेक्ट के लिए किसान भूमि देने के लिए आगे आ रहे हैं। गत दिनों संधाए के किसान बलङ्क्षवद्र ने भूमि किया। बलङ्क्षवद्र कहते है कि सरस्वती के लिए जितनी जमीन की आवश्यकता होगी। वह देने के लिए तैयार है। दूसरे किसान भी उनके संपर्क में हैं।

सड़क व रेलवे लाइन की उम्मीद जगी

हिमाचल के गांव भेंडो से आदिबद्री तक पांच किमी सड़क बनने से दोनों प्रदेश को सड़क से आपस में जोड़कर व्यापार व पर्यटन के नए मार्ग खुलेंगे। सड़क नाहन पांवटा हाईवे से जोड़ी जाएगी। श्रद्धालु सीधा सड़क मार्ग से माता मंत्रादेवी के दर्शन कर सकेंगे। अब आदिबद्री मंदिर से सोमनदी को पार कर पहाडिय़ों की चढ़ाई कर जाना पड़ता है। घाड़ क्षेत्र के प्रधान सुल्तान सिंह का कहना है कि कालका से देहरादून वाया आदिबद्री सड़क व रेलवे लाइन का सर्वे हो चुका है। एमओयू के बाद इस योजना की पूरी होने की उम्मीद बढ़ी है।


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