ये है हरियाणे की होली, पानीपत में डाट होली तो रोहतक में कोरड़े से देवरों की पिटाई
आज होली है। हरियाणा में अलग-अलग हिस्सों में होली कैसे खेली जाती है हम आपको रूबरू करवाते हैं। पानीपत के नौल्था की डाट होली सुप्रसिद्ध है। वहीं रोहतक के सुंडाना में देवरों की कोरड़े से पिटाई होती है। फरीदाबाद में लट्ठ मार होली खेली जाती है।
पानीपत, जेएनएन। आज होली का पर्व मनाया जा रहा है। रंगों का उत्सव। आपको हरियाणा के अलग-अलग जिलों में मनाई जानी वाली खास होली से रूबरू कराते हैं। पानीपत के नौल्था में जहां डाट होली खेली जाती है, वहीं रोहतक के सुंडाना में देवरों की कोरड़े से पिटाई होती है। फरीदाबाद में खेली जाती है लट्ठ मार होली। वैसे, पिछले कई वर्षों से फूलों की होली खेलने की परंपरा बढ़ी है। पानी और केमिकलयुक्त रंगों से जहां बचते हैं। वहीं पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचता।
पानीपत के नौल्था की डाट होली
आपने ज्यादातर देखा होगा कि किसी पर रंग लगाएं तो वो भागने लगता है। पर नौल्था में युवाओं के युवा एक दीवार के साथ लगकर बैठ जाते हैं। जितना चाहे रंग डालो, पीछे नहीं हटते। इसी तरह दो टोलियां एक-दूसरे के सामने हो जाती हैं। ऊपर से रंग बरसाया जाता है। जो टोली, दूसरी टोली को पीछे धकेल देती है, वो जीत जाती है। इसे कहते हैं डाट होली। पानीपत के नौल्था में खेली जाती है। 1942 में अंग्रेजों ने होली खेलना बंद करवा दिया था। तब ग्रामीण अंग्रेजों से भिड़ गए थे। आखिरकार एक महीने बाद अंग्रेज झुके। ग्रामीणों ने महीने बाद डाट होली खेली। कहते हैं कि मथुरा के पास ऐसी होली खेली जाती थी। लाठे वाले बाबा वो होली देखकर आए थे। लौटकर उन्होंने नौल्था में यह परंपरा शुरू कराई।
रोहतक के सुंडाना में कोरड़ा मार होली
रोहतक के गांव सुंडाना में फलसा चौक पर ग्रामीण एकजुट हो जाते हैं। पानी की बड़े-बड़े कढ़ाहे भरे जाते हैं। महिलाएं चुन्नी से बने कोरड़े से पुरुषों की पिटाई करती हैं। गांव की लड़कियां कढाहे में पानी भरती हैं। पुरुष इन्हीं में से पानी लेकर उड़ेलते हैं। महिलाएं रिश्ते में देवरों के साथ ही होली खेलती हैं। आसपास के गांव से भी लोग सुंडाना का फाग देखने के लिए पहुंचते हैं। इस बार गांव में कई युवाओं की मौत होने और कोविड महामारी के कारण सामूहिक रूप से फाग नहीं खेला जाएगा।
फरीदाबाद की लट्ठ मार होली का आनंद लेते हैं ग्रामीण
फरीदाबाद-पलवल के बृज क्षेत्र में लट्ठ मार होली खेली जाती है। इस दिन साकी व रसिया गाए जाते हैं। ओम नाम सबसे बड़ा, उससे बड़ा ना कोय, हुरियारी तेरा मन रसिया ते लग रहो, इस साकी को सुनते ही महिलाएं पुरुषों पर लट्ठ बरसा देती हैं। आखिरी साकी में पुरुष गाते हैं, होरी खेलन हारी, नौवें महीना में तोपे हुजो छोरा, धरियो नाम हजारी, जुग-जुग जिये होरी खेलन हारी। होली वाले दिन सुबह से ही महिलाएं एक तरफ और पुरुष दूसरी ओर खड़े हो जाते हैं। महिलाओं की ओर हाथ के इशारे करके उन्हें साकी व रसिया के माध्यम से नाचने पर विवश कर देते हैं।
पानीपत की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें