Kisan Andolan: किसान आंदोलन के दौरान जींद के इन 12 किसानों ने गंवाई जान, ये रही वजह
Kisan Andolan बीते लगभग 1 सालों से दिल्ली से सट्टे तमाम बार्डरों पर किसानों का आंदोलन जारी है। सरकार ने कृषि कानून वापस लेने का ऐलान कर दिया है। बीते एक साल में आंदोलन के दौरान कई किसानों की जान गई। जिसमें जींद के 12 किसान शामिल है।
जींद, [बिजेंद्र मलिक]। Kisan Andolan: कृषि कानूनों के खिलाफ सालभर चले किसान आंदोलन में जींद जिले के 12 किसानों की जान चली गई। ये किसान आंदोलन के पहले दिन से ही कृषि कानूनों के खिलाफ तन-मन-धन से समर्पित थे। कृषि कानून वापस होने पर शुक्रवार को खटकड़ व बद्दोवाल टोल पर इन किसानों को याद किया गया और उन्हें श्रद्धांजलि दी गई।
कृषि कानूनों के विरोध में पंजाब के किसानों की जत्थेबंदियों ने जब जींद जिले की सीमा में प्रवेश किया, तभी से यहां के किसान भी आंदोलन में शरीर गए थे। शुरू में गांव-गांव में कमेटियां बनाई गईं और हर पाने से किसानों की बार्डर पर जाने की ड्यूटियां लगाई गईं। ये किसान जब बार्डर पर जाते थे तो अपने साथ दूध, लस्सी व सब्जियां भी लेकर जाते थे। किसानों में सेवाभाव का जज्बा देखते ही बनता था। कई किसानों ने लगातार छह महीने बार्डर पर ही बिताए और एक दिन भी घर नहीं आए। इनमें से कई किसानों की ठंड या अन्य बीमारी के कारण मौत भी हो गई। इन किसानों के अंतिम संस्कार के समय भारतीय किसान यूनियन का झंडा ओढ़ाकर किसान एकता की शपथ ली जाती रही। जिले के गांव राजपुरा भैण, घिमाना, कंडेला, नगूरां, अलेवा, दनौदा, उझाना सहित जिलेभर के सभी बड़े व छोटे गांवों के किसान आंदोलन में शरीक रहे।
धरनों में मातृ शक्ति की संख्या ज्यादा
जो किसान टीकरी व सिंघु बार्डर नहीं जा सकते थे, वे खटकड़ व बद्दोवाल टोल पर धरने में शामिल हुए। इन दोनों टोल पर चल रहे धरनों में मातृ शक्ति की संख्या पहले दिन से बहुत ज्यादा रही। इसी कारण ये धरने अनुशासित तरीके से चलते रहे और संघर्ष लंबा खींचता रहा। आंदोलन में सबसे सबसे पहले उझाना गांव के किसान किताब सिंह चहल की मौत हुई थी। लेकिन किसानों का हौसला न टूटा व उनके कदम पीछे हटे। कृषि कानून वापस होने पर किसान नेता आजाद पालवां, कैप्टन भूपेंद्र, सतबीर बरसोला ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा की तरफ से जो आदेश होगा, उसके बाद ही धरना समाप्त किया जाएगा। अभी खटकड़ पर बैठने वाले ज्यादातर किसान हांसी धरने में भी शामिल हो रहे हैं।
जिले के इन किसानों की गई जान
हंसडेहर का रलदू 11 वर्षीय बेटा छोड़ गया
नरवाना के गांव हंसडेहर के रलदू राम की घर से टीकरी बार्डर पर जाते समय मौत हो गई थी। करीब 38 वर्षीय रलदू राम अपने पीछे 11 वर्षीय बेटा छोड़ गया है। वह पहले दिन से किसान आंदोलन में शामिल था। छोटी जाेत पर खेती करने वाले रलदू को डर था कि कृषि कानून लागू हो गए तो उसे अपनी जमीन से हाथ धोना पड़ सकता है।
उझाना के दो किसानों की जान गई
नरवाना के गांव उझाना के दो किसानों ने आंदोलन में अपनी जान दी। किसानों के भारत बंद के आह्वान पर उझाना व गढ़ी के बीच धरने पर बैठे करीब 60 वर्षीय किसान किताब सिंह चहल की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी। वह अपने पीछे दो बच्चे छोड़कर गए। उनके अलावा करीब 55 वर्षीय इंद्र सिंहमार की टीकरी बार्डर पर मौत हुई थी। वह अपने पीछे एक लड़का छोड़कर गया है।
जुलाना के 39 वर्षीय देवेंद्र की हृदय गति रुकने से मौत
टीकरी बार्डर पर 29 अगस्त को जुलाना के वार्ड नंबर तीन निवासी 39 वर्षीय देवेंद्र की हृदय गति रुकने से माैत हुई। देवेंद्र किसान आंदोलन के दौरान लगातार नौ माह से दिल्ली के टीकरी बार्डर पर धरने पर था। वह अपनी वृद्ध माता का इकलौता सहारा था। उसके पिता की मौत होने के कारण वही खेतीबाड़ी करता था। देवेंद्र अविवाहित था और बुजुर्ग मां के साथ रहता था।
तीन बेटियों के पिता सिंगवाल के कर्मवीर ने लगाई थी फांसी
टीकरी बार्डर धरने पर गए सिंगवाल गांव के 50 वर्षीय कर्मबीर ने सात फरवरी को फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। उसने बहादुगढ़ में नए बस स्टैंड के पास एक पेड़ पर रस्सी का फंदा लगाकर जान दे दी। मृतक कर्मवीर की तीन बेटियां हैं। स्वजनों का कहना था कि किसानों की मांग सरकार द्वारा पूरी नहीं किए जाने से कर्मवीर काफी परेशान था। जिसके कारण ही उसने अपनी जान दी।
ईंटल कलां के जगबीर की हृदय गति रुकने से मौत
टीकरी बार्डर पर ईंटल गांव के किसान 60 वर्षीय जगबीर सिंह की तीन जनवरी को हृदय गति रुकने से मौत हो गई। जगबीर अपने पीछे एक लड़का, एक लड़की छोड़ गया। उनके पिता की कई साल पहले मौत हो चुकी है। जगबीर दो एकड़ का छोटा किसान था और उसी के सहारे अपना परिवार चला रहा था। आंदाेलन में शुरू से ही वह सक्रिय था।
डाहौला के पवन की हृदय गति रुकने से मौत
डाहौला गांव के पवन उर्फ पोमी की बहादुगढ़ बाईपास धरने पर हृदय गति रुकने से 16 जनवरी को मौत हो गई। वह 25 वर्ष का था। पवन आंदोलन की शुरुआत से ही सक्रिय था और जाखौदा गांव के नजदीक ठहरा हुआ था। रात को अचानक छाती में तेज दर्द होने पर किसान उसे अस्पताल ले जाने लगे। लेकिन रास्ते में ही उसकी मौत हो गई।
ढिंढोली के राधा की दिल का दौरा पड़ने से मौत
मार्च में ढिंढोली गांव के किसान 54 वर्षीय राधा की टीकरी बार्डर धरने पर दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई। मरने से कुछ दिन पहले ही वह टीकरी बार्डर पर आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए गया था। राधा के परिवार में पत्नी, एक बेटा व एक बेटी है। राधा की मौत से परिवार को काफी गहरा सदमा लगा। राधा ही परिवार में कमाने वाला सदस्य था।
शाहपुर के कर्ण सिंह की हृदय गति रुकने से मौत
पिछले महीने शाहपुर गांव के किसान कर्ण सिंह की टीकरी बार्डर धरने पर मौत हो गई। वहीं सुबह छह बजे दूध लेकर अपने टेंट में गया था। जहां वह बेहोश मिला और डाक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। हृदय गति रुकने से उनकी मौत की आशंका जताई गई। कर्ण सिंह 60 साल का था और शुरुआत से ही आंदोलन में काफी सक्रिय था।
चुहड़पुर के रोशन की हृदय गति रुकने से मौत
टीकरी बार्डर धरने से लगभग दो माह बाद लौटे चुहड़पुर गांव निवासी 58 वर्षीय रोशन सिंह की सात फरवरी को हृदय गति रुकने से मौत हो गई। आंदोलन की शुरुआत से ही रोशन टीकरी बार्डर पर था। सीने में दर्द होने पर वह गांव लौटा था और सात फरवरी की रात उसकी हृदय गति रुकने से मौत हो गई। जिससे परिवार में मातम छा गया।
खटकड़ टोल पर पाला ने की आत्महत्या
खटकड़ टोल धरने पर जून में 55 वर्षीय पाला ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। खटकड़ गांव का ही रहने वाला पाला रात को भी टोल धरने पर ही रहता था और चाय बनाता था। उसने रात को कोई जहरीला पदार्थ खा लिया, जिससे उसकी मौत हो गई। किसान नेताओं का कहना था कि सरकार द्वारा किसानों की मांगें नहीं माने जाने से वह परेशान रहता था।
छापड़ा के रणधीर की दिल का दौरा पड़ने से मौत
मोहनगढ़ छापड़ा गांव के किसान 49 वर्षीय रणधीर सिंह की पांच फरवरी को टीकरी बार्डर पर दिल का दौरान पड़ने से मौत हो गई। वह एक माह से टीकरी बार्डर धरने पर गया हुआ था। रात को अचानक दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हो गई। उसके शव को गांव में लाकर अंतिम संस्कार किया गया, जिसमें काफी संख्या में किसान पहुंचे थे।