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पहाड़ों पर ही रमता था जींद के राजा का मन, जानिए इस जिले से जुड़ी और खास बातें

हरियाणा का जींद जिला ए‍ेतिहासिक रूप से खासा मायने रखता है। यहां के जींद रियासत के राजा अपना अधिकतर समय संगरूर और उसके आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों पर ही बिताते थे। यहां की रियासत का महल आज भी मौजूद है।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Sat, 05 Dec 2020 03:40 PM (IST)Updated: Sat, 05 Dec 2020 03:40 PM (IST)
हरियाणा के जींद रियासत के राजा की कोठी।

पानीपत/जींद, जेएनएन। आजादी से पहले जींद कई शताब्दी तक रजवाड़ाशाही के अधीन रहा। अंग्रेजी राज के अंतिम चरण तक सारा क्षेत्र जींद स्टेट की परिधि में आता था। इस रियासत का नाम जींद स्टेट होते हुए भी इसकी राजधानी संगरूर थी। रियासत जींद की तीन निजामतें संगरूर, जींद तथा दादरी थी। तीनों निजामतों की आर्थिक, सामाजिक स्थिति भिन्न थी। उन दिनों जींद के राजा की दृष्टि में इस इलाके का कोई विशेष महत्व नहीं था। यहां का राजा अपना अधिकतर समय संगरूर तथा उसके आसपास के क्षेत्र तथा पहाड़ों पर ही बिताता था। यहां तक की जींद जिले में दो रेलवे लाइनों दिल्ली-बठिंडा तथा जींद-पानीपत के अलावा बाहर की दुनिया से जींद का संपर्क किसी पक्की सड़क से भी नहीं था।

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Ramsharan

इतिहासकार रामशरण।

इतिहासकार रामशरण युयुत्सु बताते हैं की जींद क्षेत्र का विवरणात्मक परिचय महाभारत के युद्ध काल से मिलता है। जींद महाभारत काल में वन्य प्रदेश था। महाभारत युद्ध के लिए श्री कृष्ण ने उस समय की हिरण्यवती नदी व सरस्वती नदी के मध्य भाग का चयन किया था। पांडवों की सेना इस भूमि के दक्षिणी भाग रामह्रद रामराय से लेकर उत्तरी दिशा की ओर एकहंस यानी ईक्कस गांव से आगे जमदग्नि यानी जामनी गांव के मध्य में व्यवस्थित थी। युद्ध की समाप्ति और पांडवों की जीत के बाद भगवान श्री कृष्ण ने विजय दायिनी भगवती जयंती का मंदिर बनवा कर पांडवों से उपासना यही जयंतपुरी में करवाई।

उसी काल से यह जगह जयंती नाम से जाना जाने लगी। आज इस जगह पर जयंती देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। बाद में इसी जयंती के नाम से इस इलाके का नाम जींद पड़ा। यह क्षेत्र कुरु राज्य का अंग रहा, जो छठी शताब्दी पूर्व के कौरवों-पांडवों का महाभारत युद्ध, दुर्योधन वध यहीं पर होकर समाप्त हुआ। सोमतीर्थ पिंडारा में महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने इसी स्थान पर अपने पूर्वजों के तर्पण करके पिंड दान किए थे। ईसा की छठी शताब्दी के अंतिम काल में जयंत नाम के राजा जयंत ने इस नगर की दोबारा स्थापना की और इसका नाम जयंतपुरी रखा। इसका अवशेष (दड़ा) खंडहर के रूप में आज भी देखा जा सकता है।

राजा ने किया था महान यज्ञ

राजा ने यहां एक महान यज्ञ किया था। राजा जयंत की यज्ञ की परंपरा अनुसार आज से 100 साल पहले तक भी जींद के धनी लोग नगर नाम का नगर यज्ञ किया करते थे। इस यज्ञ में बिना किसी जाति भेदभाव के हर घर के सभी सदस्य खांड का सवा सेर अरोड़ा व चांदी का 1 रुपया दिया करते थे। विद्वान यह भी कहते हैं कि जींद नंद राज्य का भी हिस्सा था। बाद में चंद्रगुप्त ने इस क्षेत्र को नंद व विदेशी ग्रीकों से स्वतंत्रता दिलाई।

मौर्य काल के अवशेष मिलते हैं

पूर्व मौर्य काल वह मौर्य काल के कुछ तथ्य यहां मिले हैं। जींद भी उस समय मौर्य राज्य के अधीन आता था। सन 1193 में ईस्वी में जब मोहम्मद गोरी ने जींद नगर का विनाश कर दिया  तब राजा अनंगपाल के समय में इस नगर का दोबारा निर्माण हुआ और इसका नाम दोबारा जयंती रखा गया। यह भी मान्यता है कि किसी समय दिल्ली के हाकिम राय पिथौरा ने अपनी पुत्री जिंदी के दहेज में यह भूमि दी थी। इसी कारण इस जगह का नाम जींद पुकारा जाने लगा। सन 1526 में बाबर ने हिसार खंड को जिंदा क्षेत्र में मिलाकर अच्छे कार्यों के लिए हुमायूं को दे दिया। फिर क्षेत्र शेरशाह सूरी के अधीन आ गया। शेरशाह सूरी ने केवल 5 साल 1540 से 1545 तक राज किया। जींद क्षेत्र का फिर से मुगल सल्तनत के अधीन आ गया। अकबर के शासन में जींद व हिसार सरकार का एक परगना व सैन्य महत्व का दुर्ग था।


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