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लिजवाना से संघर्ष के बाद जींद के राजा ने बनवाया था किलाजफरगढ़, काफी रोचक है यह कहानी

इस संघर्ष में किलाजफरगढ़ पौली हथवाला निंदाना सहित आसपास के गांवों के लोगों ने लिजवाना के भूरा व निंघाइया नंबरदार की मदद की थी। जींद के राजा सरूप सिंह ने इन गांवों पर नजर रखने के लिए किला बनवाया। उस समय तक इस गांव का नाम खुडाली था।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Sun, 17 Jan 2021 05:14 PM (IST)Updated: Sun, 17 Jan 2021 05:14 PM (IST)
लिजवाना से संघर्ष के बाद जींद के राजा ने बनवाया था किलाजफरगढ़, काफी रोचक है यह कहानी
किलाजफरगढ़ को बहुत सुंदर तरीके से बनाया गया था। चारों तरफ बड़ी चौड़ी दीवार थी।

पानीपत/जींद [कर्मपाल गिल]। जींद-रोहतक के बीच बसा है गांव किलाजफरगढ़। पहले इस गांव का नाम खुडाली होता था। जींद के राजा सरूप सिंह ने 1858 में इस गांव में किला बनवाया था। तबसे इस गांव का नाम कागजों में किलाजफरगढ़ पड़ गया। राजा ने इस गांव में किला क्यों बनवाया, इसके पीछे भी रोचक कहानी है। इस किले का प्रयोग राजा कब करता था? कब तक यह किला सही हालत में रहा? आइए जींद को जानें श्रृंखला में आज  जानते हैं किलाजफरगढ़ की कहानी।

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लिजवाना कलां व जींद रियासत में संघर्ष के बाद बनवाया था किला

गांव किलाजफरगढ़ के ग्रामीणों से बात करेंगे तो बहुत कम लोगों को इस किले के बारे में जानकारी है। युवा पीढ़ी तो कुछ नहीं जानती। गांव के रिटायर्ड हेडमास्टर ओमप्रकाश को इस किले का पूरा इतिहास याद है। दैनिक जागरण से बातचीत में वह कहते हैं कि 1854 में लिजवाना कलां व जींद रियासत के बीच हुए तगड़े संघर्ष के बाद यहां किला बनवाया गया था।

ग्रामीणों ने लिजवाना के भूरा व निंघाइया नंबरदार की मदद की थी

इस संघर्ष में किलाजफरगढ़, पौली, हथवाला, निंदाना सहित आसपास के गांवों के लोगों ने लिजवाना के भूरा व निंघाइया नंबरदार की मदद की थी। जींद के राजा सरूप सिंह ने इन गांवों पर नजर रखने के लिए किला बनवाया। उस समय तक इस गांव का नाम खुडाली था। उसके बाद यह किलाजफरगढ़ बना। फारसी के जफर का मतलब बहादुर और गढ़ यानि किला। जींद से सफीदों व दादरी जाते समय राजा रास्ते में इसी किले में ठहरता था।

अंग्रेजों की मदद पर मिले थे दादरी, बावल व कांटी के इलाके

मा. ओमप्रकाश बताते हैं कि किलाजफरगढ़ किले के निर्माण के बारे में यह भी बताते हैं कि 1857 के गदर में महाराजा नाभा, पटियाला व जींद रियासत ने अंग्रेजों की मदद की थी। जींद रियासत को इनाम के तौर पर दादरी, बावल व कांटी के इलाके मिले थे। तब जींद राजा के सरूप सिंह के पास दादरी, सफीदों व जींद तीन जिले हो गए थे। दादरी जाने के लिए जफरगढ़ किला रास्ते में आराम करने के लिए 1858-59 में बनाया गया था। लिजवाना संघर्ष के समय उस गांव को पूरी तरह नेस्तनाबूद कर दिया था। तब लिजवाना में जिंदल गोत्र के बनिये रहते थे। वे भी गांव छोड़कर चले गए थे। उनकी हवेलियों की ईंटें लाकर किला बनवाया गया था।

दादरी जाते वक्त यहां ठहरता था राजा

जींद को राजा को जब दादरी जाना होता था तो वह पहले सफीदों, वहां से किलाजफरगढ़ होते हुए दादरी जाता था। हालांकि से किलाजफरगढ़ होते भी कच्चा रास्ता था। जिसे आजकल राजा वाली गोहर कहते हैं। इस रास्ते का भी राजा प्रयोग करता था और सफीदों तक दादरी वाया किलाजफरगढ़ वाली गोहर पर भी अब सड़क बनी हुई है।

किले में तीन-चार कमरे, दरबार व घुड़साल भी बना था

रिटायर्ड हेडमास्टर ओमप्रकाश बताते हैं कि किलाजफरगढ़ को बहुत सुंदर तरीके से बनाया गया था। चारों तरफ बड़ी चौड़ी दीवार थी। पीछे तीन-चार कमरे और बीच में दरबार टाइप बड़ा कमरा था। आगे आर्क टाइप बरामदा होता था। बराबर में एक-एक कमरा भी था। हाथी-घोड़ों के लिए किले के तीन तरफ घुड़साल व बरामदे-महराब भी बनी हुई थी। अभी किले के चारों तरफ नौ एकड़ जमीन है। राजा जब किले में ठहरता था, तब उसके साथ चलने वाले सैनिक पीछे तंबू लगाकर ठहरते थे। इस किले के चारों तरफ खाई भी बनी हुई थी।

आजादी तक महाराजा के कब्जे में रहा, फिर आर्म्ड फोर्स ट्रेनिंग सेंटर खुला

वर्ष 1858 से लेकर जींद की आजादी तक यानि मार्च 1948 तक यह किला जींद राजा के अधीन रहा। देश अगस्त 1947 में आजाद हुआ था, लेकिन जींद रियासत पर मार्च 1948 तक राजा का ही शासन था। फिर यह सरकार के अधीन आ गया और किले की जमीन को वन विभाग को सौंप दिया गया। हरियाणा गठन 1 नवंबर 1966 के बाद कुछ समय यहां हरियाणा आर्म्ड फोर्स का ट्रेनिंग सेंटर भी खुला। तब तक मधुबन ट्रेनिंग सेंटर बनना शुरू हुआ था। मधुबन में आर्म्ड ट्रेनिंग सेंटर बनने के बाद यह किला खाली हो गया। इसके बाद सरकार व प्रशासन ने इसकी संभाल नहीं की। 1970 तक यह बहुत बढ़िया हालत में था। बाद में यह खराब होना शुरू हो गया।


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