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सोच पॉजिटिव रखी और कोरोना से जीत गई

सितंबर 2020 में सभी शिक्षकों अन्य स्टाफ के स्वाब सैंपल लिए गए थे। हम दो शिक्षक पॉजिटिव आए थे। पहले दिन बहुत तनाव में थी। परिवार के सदस्यों ने हौसला दिया और मैंने अपनी सोच को पॉजिटिव रखा।

By JagranEdited By: Published: Wed, 26 May 2021 07:07 AM (IST)Updated: Wed, 26 May 2021 07:07 AM (IST)
सोच पॉजिटिव रखी और कोरोना से जीत गई
सोच पॉजिटिव रखी और कोरोना से जीत गई

मैं राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूल, मॉडल टाउन में शिक्षिका हूं। सितंबर 2020 में सभी शिक्षकों, अन्य स्टाफ के स्वाब सैंपल लिए गए थे। हम दो शिक्षक पॉजिटिव आए थे। पहले दिन बहुत तनाव में थी। परिवार के सदस्यों ने हौसला दिया और मैंने अपनी सोच को पॉजिटिव रखा। चिकित्सकों के दिशा-निर्देशों पर अमल किया और जीत गई।

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होम आइसोलेट रहकर सुबह-शाम व्यायाम करती रही। ध्यान में मन लगाती, पाठ करती रही। स्कूल के बच्चों की आनलाइन पढ़ाई चल रही थी, कोर्स पूरा कराया। मैं परीक्षा की इंचार्ज भी थी, वह भी काम निपटाया। स्कूल संबंधित डाक का जवाब देती थी। यूं कहिए कि खुद को पूरी तरह व्यस्त रखा। मसाला चाय, काढ़ा का सेवन भी दिन में दो-तीन बार करती रही। पहले दिन जो डर-तनाव था, उसे हावी नहीं होने दिया। पति मनप्रीत कलसी, सास सुरेन्द्र कौर और बेटा कबीर ने भी अपनी सोच पॉजिटिव रखी। दूरी बनाकर मुझसे बात करते रहे। एकांतवास का खूब लाभ उठाया। ऐसे बहुत से परिचित जिनसे व्यस्तता के चलते बात नहीं कर पाती थी, उन्हें कॉल कर घर-परिवार का हालचाल जाना।

शिक्षिका दविदर कौर ने जैसा जागरण संवाददाता को बताया।

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होम विजिट में रजिस्टर तक फाड़ दिया, मैंने हार नहीं मानी

बुरा दौर सबक देकर जाता है, कोरोना महामारी ने असहनीय पीड़़ा तो दी समाज का मास्क पहनने, दूरी बनाकर बात करने और स्वच्छता का सबक भी दिया है। मैं अर्धशहरी पीएचसी उग्राखेड़ी में एएनएम (ऑक्सिलरी नर्स मिडवाइफरी) हूं। मरीजों के घर विजिट के दौरान कई घरों में अपमान का घूंट भी पीना पड़ा, लेकिन अपने कर्तव्य को पूरा किया।

मेरा गांव धनसौली, कार्य क्षेत्र विद्यानंद कालोनी है। हिदू-मुस्लिम की मिश्रित आबादी है। मार्च-2020 में विदेश से लौटे लोगों को होम क्वारंटाइन कराया। किसी को बुखार-खांसी के मामूली लक्षण भी हुए तो स्वाब सैंपल कराया। केस बढ़े तो वर्क लोड भी बढ़ गया। मरीजों के घर मेडिसिन की किट पहुंचाती थी। हर तीसरे दिन उनका हाल जानने पहुंचती, उस दौरान कई घरों में अपमान भी सहना पड़ा। मरीज के स्वजनों ने रजिस्टर छीनकर फाड़ दिया था। पति अनिल ने बहुत साथ दिया। वे एक्टिवा स्कूटर पर बैठाकर विद्यानंद कालोनी लाते, शाम को घर लेकर लौटते। पति की परेशानी को देख मैंने एक्टिवा चलाना सीखा। परिवार में ससुर भोपाल सिंह, सास शकुंतला देवी, बेटा-बेटी, देवर-देवरानी और उनके बच्चे हैं। मेरे कारण किसी को दिक्कत न हो, इसका ध्यान आज भी रखती हूं।

एएनएम पूनम, जैसा उन्होंने जागरण संवाददाता को बताया।


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