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Kargil Vijay Diwas 2020: पिता की चिट्ठी ने रोम-रोम में भर दिया था देश पर मर-मिटने का जज्बा

Kargil Victory Day कैथल के जवान को कारगिल में पाकिस्‍तानी घुसपैठियों से लोहा ले रहे जवान को पिता की चिट्ठी मिली तो उसका रोम-राेम जोश व जज्‍बे से भर गया।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Wed, 22 Jul 2020 02:45 PM (IST)Updated: Wed, 22 Jul 2020 02:52 PM (IST)
Kargil Vijay Diwas 2020: पिता की चिट्ठी ने रोम-रोम में भर दिया था देश पर मर-मिटने का जज्बा
Kargil Vijay Diwas 2020: पिता की चिट्ठी ने रोम-रोम में भर दिया था देश पर मर-मिटने का जज्बा

कैथल, [सुरेंद्र सैनी]। 'Kargil Vijay Diwas 2020: कारगिल विजय दिवस: कैथल के जांबाज जवान राजेश ढ़ुल की आखों में कारगिल के युद्ध को याद करते ही अनोखी चमक आ जाती है और उनका सीना चौड़ा हो जाता है। कारगिल में पाकिस्‍तानी घुसपैठियों के खिलाफ जंग के दौरान उनको पिता की चिट्ठी मिली तो उनका रोम-राेम देश पर मर-मिटने के जज्‍बे से भर उठा।

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मां भारती का रक्षक बना चाचा-भतीजा का सीना

सेना में हवलदार के पद से रिटायर हुए सैनिक राजेश ढुल ने कारगिल की लड़ाई में दुश्मन से लोहा लिया था। आज भी जब कारगिल का जिक्र होता है तो उनका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। राजेश सैनिक परिवार से संबंध रखते हैं। परिवार के कुल 14 सदस्य सेना से जुड़े हैं, जिनमें से छह बॉर्डर पर दुश्मनों से लोहा ले रहे हैं। कारगिल की लड़ाई चाचा सूबेदार रणधीर सिंह और उन्होंने साथ लड़ी थी।

आज भी कारगिल जंग का जिक्र होता है तो गर्व से सीना हो जाता चौड़ा

राजेश बताते हैं कि हमारे सैनिकों का कोई जवाब नहीं। पाकिस्तान हो या चीन, हमारे सैनिक दुश्मन के दांत खट्टे कर देते हैं। पाकिस्तान की हिम्मत नहीं कि हमारी जांबाज सेना का सामना कर सके। दोस्तों की शहादत को याद करते हुए राजेश कहते हैं, हमें शहीद होने का मौका नहीं मिला।

कैथल के हवलदार राजेश ढुल और चाचा सुबेदार रणधीर सिंह ने साथ लड़ी थी कारगिल की लड़ाई

20 मार्च 1996 को सेना में भर्ती हुआ। वर्ष 1998 में बंगाल इंजीनियर ग्रुप सेंटर रुड़की में ट्रेनिंग के बाद वर्ष 1999 में कारगिल युद्व में उतार दिए गए। 16 कोर ग्रुप में शामिल था। मेरा काम माइंस बिछाने का था। लड़ाई के दौरान कई बार ऐसे मौके आए जब शहीद होते-होते बचा। उस समय मोबाइल फोन नहीं थे, घर से चिट्ठी ही पहुंचती थी।

राजेश बताते हैं, लड़ाई के दौरान पिता नर सिंह ढुल की चिट्ठी मिली। इसमें लिखा था-

भरा नहीं जो भाव से, बहती उसमें रसधार नहीं,

इंसान नहीं वह पत्थर है, जिसे मातृ भूमि से प्यार नहीं।

'' पिता ने लिखा बेटा तुम भारत मां की रक्षा कर रहे हो, अगर बलिदान भी देना पड़े तो पीछे नहीं हटना। पिता की इस चिट्ठी के बाद उनके हौसले और बुलंद हो गए। देश ने कारगिल की जंग जीत ली। इस बात का भी दुख था कि उन्होंने कई साथी खो दिए थे। जब लड़ाई जीतकर घर लौटा तो सभी का गर्व से सीना चौड़ा हो गया।

                                                                                                            - राजेश ढुल, भूतपूर्व सैनिक।

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परिवार के 14 सदस्य सेना मे रहे

राजेश ढुल ने बताया कि पिता नर सिंह ढुल वर्ष 1973 में भर्ती हुए थे, 1997 में रिटायर हुए। ताऊ सूबेदार मियां सिंह ने वर्ष 1962, 1965 और 1971 की लड़ाइयां लड़ीं। भतीजा नायब सूबेदार सुरेंद्र जफराण रुड़की और परविंद्र सिंह जम्मू-कश्मीर में कार्यरत हैं। फुफेरा भाई रमेश कुमार बीएसएफ, शमशेर सिंह बीएसएफ समेत कुल 14 सदस्य सेना में रहे। राजेश ढुल 22 वर्षों की सेवा के बाद वर्ष 2018 में रिटायर हुए थे।

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