हिंदू, मुस्लिम व सिख समुदाय की आस्था का केंद्र है कपालमोचन तीर्थ, जानिए तीर्थ की खास बातें Panipat News
राज्यस्तरीय कपालमोचन मेला 8 से 12 नवंबर तक चलेगा। मेले में कार्तिक पूर्णिमा की रात 11 नंवबर को शाही स्नान होगा।
पानीपत/यमुनानगर, जेएनएन। राज्यस्तरीय ऐतिहासिक कपालमोचन मेले का आगाज 8 नवंबर से हो रहा है। तीर्थ स्थल हिंदू, मुस्लिम और सिख समुदाय की आस्था का संगम माना जाता है। यही कारण है कि इसके बारे में सारे तीर्थ बार-बार कपालमोचन एक बार... कहा जाता है। ऐतिहासिक गुरुद्वारा, कपालमोचन, ऋणमोचन और सूरजकुंड सहित तीनों सरोवरों में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं।
खरीदारी कर जगाधरी के बर्तन उद्योग और अन्य कारोबारियों की आर्थिक तंगी को दूर करने का काम भी करते हैं। मेला प्रशासक एसडीएम बिलासपुर गिरीश कुमार का कहना है कि राज्यस्तरीय मेला 8 से 12 नवंबर तक चलेगा। इसका शुभारंभ डीसी मुकुल कुमार करेंगे। कार्तिक पूर्णिमा की रात 11 नंवबर को शाही स्नान होगा।
कपालमोचन सरोवर
पंडित सुभाष शर्मा के मुताबिक श्रद्धालु सबसे पहले कपालमोचन सरोवर में स्नान करते हैं। पुराणों में इसका सोमसर के नाम से जिक्र हैं। यहां पर भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण जी, गुरु नानक देव, गुरु गोबिंद सिंह आए थे। सरोवर के निकट गुरु गोबिंद सिंह ने माता चंडी की मूर्ति की स्थापना की थी। उसके बाद यहां के पुजारियों को पुरोहित होने का हुक्मनामा दिया था।
ऋणमोचन सरोवर
कपालमोचन सरोवर के बाद श्रद्धालु ऋणमोचन सरोवर में स्नान करते हैं। पुराणों में मुताबिक यहां स्नान से सभी प्रकार के ऋणों से मुक्ति मिलती है। यहीं भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों के साथ ठहर कर यज्ञ किया। पांडवों के पूर्वजों का पिंड दान कराया। पांडव पितृ ऋण से मुक्त हुए। गुरु गोबिंद सिंह भी यहां दो बार आए। यहां 52 दिन रहकर पूजा-अर्चना की युद्ध के बाद यहां अपने अस्त्र-शस्त्र धोए थे।
सूरजकुंड सरोवर
सूरजकुंड सरोवर के साथ भी अनेक दंत कथाएं जुड़ी हुई हैं। कथाओं के अनुसार भगवान श्रीराम रावण का वध करने के बाद माता सीता और भाई लक्ष्मण हनुमान सहित पुष्पक विमान से कपालमोचन सरोवर में स्नान कर ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त हुए। यहां पर कुंड का निर्माण किया, जिसे सूरजकुंड के नाम से जाना जाने लगा। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस स्थान पर सिद्ध पुरुष दूधाधारी बाबा रहते थे। दूधाधारी समाज की मान्यता मुस्लिम धर्म से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि मुगल सम्राट अकबर भी यहां आए थे।
गुरुद्वारा श्री कपालमोचन साहिब
गुरु नानक देव हरिद्वार से सहारनपुर होते हुए कपालमोचन तीर्थ स्थान पर पहुंचे थे। वर्ष 1746 में, गुरु गोबिंद सिंह जी, भांगानी की लड़ाई जीतने के बाद, इस जगह पर आए और 52 दिनों तक आराम दिया। श्रद्धालु तीनों सरोवरों के साथ-साथ गुरुद्वारे वाले सरोवर में भी डुबकी लगाते हैं। यहीं से भगवा रंग के सिरोपे की शुरुआत हुई थी।