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आइएमए के आह्वान पर कैथल डॉक्‍टर हड़ताल पर, जानिए क्‍या है बड़ी वजह

जीएएमएस-बीएएसएम चिकित्सकों को सर्जरी करने की परमिशन पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बिफरी। आईएमए के आह्वान पर कैथल में भी चिकित्सक हड़ताल पर चले गए हैं। इससे ओपीडी के लिए मरीजों और उनके परिजनों को इंतजार करना पड़ रहा है।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Fri, 11 Dec 2020 11:30 AM (IST)Updated: Fri, 11 Dec 2020 11:30 AM (IST)
आइएमए के आह्वान पर कैथल डॉक्‍टर हड़ताल पर, जानिए क्‍या है बड़ी वजह
आईएमए के आह्वान पर कैथल में भी चिकित्सक हड़ताल पर।

पानीपत/कैथल, जेएनएन। आयुर्वेद का कोर्स कर मेडिकल प्रेक्टिस करने वाले जीएएमएस और बीएएमएस डाक्टरों को आठ माह का कोर्स करने के बाद सर्जरी करने का भी अधिकार होगा। सरकार के इस निर्णय का इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने विरोध किया है। इसके चलते शुक्रवार को सभी प्राइवेट डाक्टर हड़ताल पर चले गए हैं।

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आइएमए के प्रधान डा.विनोद मित्तल का कहना है कि सरकार ऐसा करके गलत कर रही है। जीएएमएस और एमबीबीएस में कुछ तो फर्क होगा ही। आठ महीने का कोई भी कोर्स करके कोई कैसे एमबीबीएस डाक्टर की बराबरी कर सकता है। दूसरी तरफ आयुर्वेदिक चिकित्सकाें ने सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए शुक्रवार को ओपीडी जारी रखी है। इस मुद्​दे को लेकर  आइएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) और नीमा (नेशनल इंटीग्रेटिड मेडिकल एसोसिएशन) आमने-सामने आ गई है। एक-दूसरे पर आरोप लगाना शुरु कर दिया है।

एलोपैथी दवाएं प्रयोग करते हैं -डा.मित्तल

आइएमए के प्रधान डा.विनोद मित्तल का कहना है कि आठ माह का कोई कोर्स करके जीएएमएस-बीएएमएस को सर्जरी करने का अधिकार देना कतई सही नहीं है। यह कहने मात्र काे ही आयुर्वेदिक डाक्टर हैं, लेकिन यह सभी एलोपैथी दवाएं इस्तेमाल करते हैं। इससे पहले भी सरकार ने इन्हें अल्ट्रासाउंड करने की परमिशन देने की योजना बनाई थी, लेकिन तब भी आइएमए के विरोध के चलते इसे वापस लेना पड़ा था। अब भी अगर इस योजना को वापस नहीं लिया गया तो कोई भी चिकित्सक ओपीडी नहीं करेगा।

अंग्रेजों की बपौती नहीं चिकित्सा-डा.ठुकराल

नीमा के पूर्व प्रधान डा.राजेंद्र ठुकराल ने कहा कि आयुर्वेद में आने वाले विद्यार्थियों को स्नातकोत्तर स्तर पर सर्जरी का कोर्स कराने की योजना सरकार की है। इसके लिए सरकार को साधुवाद देते हैं, जिसने भारत की मिट्टी में पैदा होने वाले औषधियों को प्रमोट करने के लिए आयुर्वेद को तरजीह दी। अंग्रेजी में पढ़ाई करने वाले नहीं चाहते कि हिंदी और हिंदुस्तानी पद्धति में चिकित्सा पद्धति मजबूत हो। अंग्रेजों के तरीके से डिग्री लेने वाले अपनी मोनोपली टूटने नहीं देना चाहते। उन्हें समझ जाना चाहिए कि चिकित्सा पद्धति किसी की बपौती नहीं। देश का गरीब आदमी आज इलाज कराने से डरता है। कोरोना काल में इन चिकित्सकों ने तीन-तीन हजार रुपये कंसलटेंसी फीस वसूली और सीधे पेटीएम से पेमेंट ली।


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