अंग्रेजी हुकूमत की बिना परवाह किए कवि हरिकेश जगाते थे आजादी की लौ, जवाहरलाल नेहरू ने उपहार में दी थी पिस्तौल
कैथल के रहने वाले आशु कवि हरिकेश ने अंग्रेजी हुकूमत के आगे कभी नहीं झुके। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कवि हरिकेश पटवारी को उपहार स्वरूप भेंट की थी पिस्तौल। हरियाणा के पहले रेडियो सिंगर थे गांव धनौरी के आशु कवि हरिकेश।
कलायत(कैथल), रणबीर धानियां। ग़ुलाम भारत में 7 अगस्त 1898 को जन्मे गांव धनौरी के आशु कवि हरिकेश पटवारी अंग्रेजी हुकूमत की परवाह किए बिना अपनी कलम व मधुर आवाज से देशवासियों में आजादी की लौ जगाने वाले स्वतंत्रता सेनानी थे। आजादी की झलक, वैराग्य रत्न माला, प्रश्नोत्तरी, हरिकेश पुष्पांजलि जैसी रचनाएँ व स्नातक कक्षाओं में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में उनकी बेजोड़ लेखनी का बड़ा उदाहरण आज भी देखने को मिल रहा है।
उनके जज्बे व जोश से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी बेहद प्रभावित रहें। परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री ने वर्ष 1952 में जिला जींद के कस्बा नरवाना में एक कार्यक्रम में कवि से विशेष मुलाकात की थी। देश की आजादी के लिए तराना छेड़ने में अहम भूमिका अदा करने पर प्रधानमंत्री ने कवि हरिकेश को 5 हजार रुपए बतौर इनाम व उपहार स्वरूप पिस्तौल भेंट की थी।
कवि ने राशि को तत्काल राष्ट्र हित में खर्च करने की घोषणा करते हुए राशि वापिस प्रधानमंत्री को सौंपी। उनके कुशल व्यवहार व आदर्श जीवन से जवाहर लाल जुड़े रहना चाहते थे।इसलिए उनको दिल्ली आने का भी न्यौता दिया था। लेकिन 18 फरवरी 1954 को हरिकेश पटवारी ने जीवन की अंतिम सांस ली।
इसलिए उनकी फिर प्रधानमंत्री से भेंट नहीं हो पाई।जबकि पिस्तौल को आज भी उनके परिवार के लोगों द्वारा संभालकर रखा गया है। हरिकेश पटवारी हरियाणा के पहले रेडियो सिंगर थे। धनौरी गांव कलायत-दाता सिंह वाला मार्ग पर स्थित है। कवि के पिता का नाम उमाशंकर व माता का नाम बसन्ती देवी था। उस समय धनौरी पटियाला रियासत में पड़ता था। पं हरिकेश ने अपनी प्राथमिक शिक्षा गांव धनौरी मऔर माध्यमिक शिक्षा खन्ना पंजाब से प्राप्त की। पढ़ाई के बाद पहले तो उन्होंने अपना निजी व्यवसाय किया।बाद उनकी नियुक्ति राजस्व विभाग में पटवारी के पद पर हुई।
नहीं हो पाया सरकारी कालेज का निर्माण
कवि के पौत्र प्रवीण शर्मा बताते हैं कि हरियाणा सरकार में बतौर शिक्षा मंत्री रामविलास शर्मा ने दादा हरिकेश पटवारी के नाम पर गांव धनौरी में सरकारी कालेज खोलने की घोषणा की थी।जमीन उपलब्ध न होने के कारण ये सपना पूरा न हो सका।इसके साथ ही सत्यवान-सावित्री, जानी चोर, गौभक्त हरफूल जाट, ऊखा-अनिरुद्ध व कई अहम रचानाओं को प्रकाशन की दरकार है।परिवार को भी सरकार व प्रशासन द्वारा फिलहाल कोई बड़ी सहायता या पहचान नहीं दी गई है।