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पाकिस्तान से चली रामलीला की परंपरा को 73 साल बाद भी निभा रहा हैदराबादी समाज

कपिल पूनिया पानीपत देश बदला माहौल बदला लेकिन धार्मिक परंपरा और मजबूत होती गई। पाकिस्

By JagranEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 08:41 AM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 08:41 AM (IST)
पाकिस्तान से चली रामलीला की परंपरा को 73 साल बाद भी निभा रहा हैदराबादी समाज
पाकिस्तान से चली रामलीला की परंपरा को 73 साल बाद भी निभा रहा हैदराबादी समाज

कपिल पूनिया, पानीपत :

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देश बदला, माहौल बदला, लेकिन धार्मिक परंपरा और मजबूत होती गई। पाकिस्तान के हैदराबाद से चली रामलीला की परंपरा को बंटवारे के 73 साल बाद भी हैदराबादी समाज जारी रखे हुए है। कभी पाकिस्तान में लालटेन की रोशनी में रामलीला मंचन हुआ करता था, आज भारत में रंग-बिरंगी लाइट और साउंड सिस्टम के साथ रामलीला की भव्यता चरम पर रहती है। देशभर का हैदराबादी समाज रामलीला के दौरान अपने बच्चों को लोरी दिलाने लाता है।

हैदराबादी रामलीला एवं ड्रामेटिक क्लब के निदेशक भूषण वधवा ने जागरण को बताया कि हैदाराबादी समाज पाकिस्तान की पंजाब रिसायत के मियांवाली जिले के हैदराबाद गांव से बंटवारे के दौरान पानीपत में आकर बसा था। हैदराबाद एक कस्बे के समान था। जीटी रोड के एक ओर हिदू और दूसरी ओर मुस्लिम रहा करते थे। उनके बुजुर्ग रामलीला का आयोजन करते आए हैं। भारत आने पर रामलीला की परंपरा जारी रही। उस समय पाकिस्तान के अनेक क्षेत्रों में बिजली नहीं थी। हैदराबाद में भी लालटेन की रोशनी में रामलीला का मंचन होता था। पूरा गांव रामलीला देखने आता था। पानीपत आने पर लाइट की व्यवस्था थी। यहां भी उससे अधिक भव्यता से रामलीला का मंचन जारी है।

बच्चों को लोरी दिलाने देशभर से आते हैं लोग

रामलीला के दौरान नवजात बच्चों को लोरी दिलाई जाती है। यह परंपरा भी पाकिस्तान से ही चली थी। देशभर में बसे हैदराबादी समाज के लोग रामलीला में अपने नवजात बच्चों को लोरी दिलाते हैं। यह परंपरा पाकिस्तान में भी जारी है।

पहले उर्दू में लिखे थे रामलीला के संवाद

क्लब के स्टेज डायरेक्टर जवाहर जुनेजा ने बताया कि वह आज भी उन्हीं संवादों को दोहराते हैं, जो संवाद पाकिस्तान में उनके बुजुर्गों ने लिखे थे। ये संवाद उर्दू में थे, करीब 40 वर्ष पूर्व इन संवादों का हिदी रूपांतरण किया गया। अब उन्होंने आने वाली पीढ़ी के लिए इन संवादों के दो और रजिस्टर तैयार किए हैं। ताकि उनके बच्चे भी इस परंपरा को जारी रख सकें।


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