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विज के रिव्यू से पहले ही गृह विभाग मेहरबान, सिफारिश नजरअंदाज कर छिपाया फर्जीवाड़ा Panipat News

महिला अधिकारी को बड़े पद का चार्ज दे दिया गया है। गृहमंत्री के आदेश से पहले ही विभाग ने बीच का रास्ता निकालते ही मेहरबानी का रास्ता निकाल दिया।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Wed, 12 Feb 2020 04:15 PM (IST)Updated: Wed, 12 Feb 2020 04:15 PM (IST)
विज के रिव्यू से पहले ही गृह विभाग मेहरबान, सिफारिश नजरअंदाज कर छिपाया फर्जीवाड़ा Panipat News
विज के रिव्यू से पहले ही गृह विभाग मेहरबान, सिफारिश नजरअंदाज कर छिपाया फर्जीवाड़ा Panipat News

पानीपत/अंबाला, [दीपक बहल]। पुलिस महानिदेशक मनोज यादव की सिफारिश को नजरअंदाज कर फर्जीवाड़ा छिपा लिया गया। गृह विभाग ने विभागीय चार्जशीट या फिर क्रिमिनल केस दर्ज करने के बजाय विवादों में उलझी महिला अधिकारी पर मेहरबानी कर दी। फोरेंसिंक साइंस लैब (एफएसएल) में बड़े पद का चार्ज (आफिशिएटिंग) दे दिया है। 

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प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज ने रिव्यू करने के आदेश दिए थे, लेकिन इससे पहले ही आनन-फानन में गृह विभाग ने बीच का रास्ता निकालते हुए मेहरबानी कर दी। इस मामले में तीन आइपीएस अधिकारियों की विभागीय जांच को किस तरह नजरअंदाज कर दिया गया, अफसरशाही की कार्यप्रणाली विवादों में आ गई है। यह मामला अब पूरी तरह से पेचीदा हो गया है। जिस सीट पर महिला अधिकारी पर मेहरबानी की गई है, उस पर आइपीएस अधिकारी कार्यरत थे। इस पद पर किसी दूसरे आइपीएस अधिकारी को भी कार्यभार दिया जा सकता है, लेकिन इससे पहले ही गृह विभाग ने खेल कर दिया। 

दैनिक जागरण ने उजागर किया मामला

दैनिक जागरण ने इस मामले को उजागर किया था। 'डीजीपी ने महिला अधिकारी को दोषी ठहराया, गृह सचिव ने पदोन्नति की फाइल भेजी' शीर्षक से दैनिक जागरण ने इस मामले का पर्दाफाश किया। 

ये था मामला

19 अगस्त, 2007 को एफएसएल के निदेशक का फर्जी दस्तावेज तैयार किया गया, जिसमें बताया गया कि महिला अधिकारी ने पीएचडी करने के लिए एफएसएल के निदेशक से अनुमति ली थी। डायरेक्टर विजेंद्र सिंह 3 नवंबर, 2006 को सेवानिवृत्त हो चुके थे, जबकि उनके हस्ताक्षर का फर्जी दस्तावेज 29 अगस्त, 2007 को तैयार किया गया। जब इस प्रकरण में विजेंद्र सिंह को आइपीएस अधिकारी ने अपनी जांच में शामिल किया तो उन्होंने 29 अगस्त, 2007 की किसी भी अनुमति से इन्कार कर दिया था। इसी के आधार पर डीजीपी मनोज यादव ने 24 जनवरी को महिला अधिकारी के खिलाफ एक्शन के लिए गृह सचिव से सिफारिश की थी, जिस पर एक्शन नहीं लिया गया। इससे पहले एडीजीपी श्रीकांत जाधव ने भी महिला अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई और फर्जीवाड़े पर मुकदमा दर्ज करने की सिफारिश की थी, जिसे दबा दिया गया। 

अनिल विज ने लिया था संज्ञान

दैनिक जागरण में प्रकाशित समाचार पर संज्ञान लेते गृह मंत्री अनिल विज ने इस पूरे मामले में रिव्यू की बात कही थी, लेकिन मामले का निपटारा होने से पहले ही गृह विभाग ने मंगलवार को बीच का रास्ता निकाल लिया। प्रमोशन से पहले ही महिला अधिकारी पर मेहरबानी करते हुए उसे आफिशिएटिंग चार्ज दे दिया गया। 

इस तरह खेला गया खेल 

महिला अधिकारी ने मेरठ की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी से पीएचडी राज्य सरकार की बिना अनुमति से की थी। इतना ही नहीं जिस दौरान पीएचडी की गई, उस दौरान वह ड्यूटी पर भी हाजिर रही। एक ही व्यक्ति दो जगह पर एक ही समय कैसे रह सकता है। इसको लेकर अधिकारी अपने बुने जाल में उलझ गई। इसके बाद महिला अधिकारी ने निदेशक विजेंद्र सिंह का फर्जी दस्तावेज तैयार किया। इस मामले की सबसे पहले जांच आइपीएस आरके मीना ने की। मीना ने निदेशक विजेंद्र सिंह के दस्तावेज के आधार पर आरोपों को माइनर माना था जिसके चलते गृह विभाग ने मामला फाइल कर दिया था। जिस निदेशक की चिट्ठी के आधार पर मामले को फाइल किया गया, उसकी यह भी जांच नहीं कराई गई जो पत्र जांच दिया गया वह असली है या फर्जी। बाद में विजेंद्र ने जांच में शामिल होकर बताया कि जिस दिन दस्तावेज तैयार किया गया, उस से पहले ही रिटायर हो चुके थे। ऐसे में स्पष्ट है कि फर्जी दस्तावेज तैयार किया गया।


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