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कैथल के इस गांव में होली मनाने से डरते हैं लोग, 170 साल से श्राप से मुक्त होने का इंतजार

कैथल का दुसेरपुर गांव। 170 वर्षों से यहां होली नहीं मनाई गई। ग्राम पंचायत की तरफ से गांव में बाकायदा एक सूचना पट लगाया गया है। इसके पीछे स्नेही राम नाम के साधु का श्राप है। इस संबंध में गांव में कई कथाएं प्रचलित हैं।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Mon, 29 Mar 2021 09:21 AM (IST)Updated: Mon, 29 Mar 2021 11:41 AM (IST)
कैथल के इस गांव में होली मनाने से डरते हैं लोग, 170 साल से श्राप से मुक्त होने का इंतजार
होली न मनाने को लेकर गांव की पंचायत ने बाकायदा एक सूचना पट्ट भी लगा रखा है।

कैथल/गुहला-चीका [रामकुमार मित्तल]। जिलेभर में होली का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। परंतु जिले के गुहला खंड के गांव दुसेरपुर में होली के दिन जलती होली में कूदने वाले बाबा के श्राप के भय से होली नहीं मनाई जा रही है। ऐसा करीब पिछले 170 वर्ष से हो रहा है।

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श्राप देने के पीछे यहां के ग्रामीणों को भय है कि यदि उन्होंने होली मनाई तो उनके साथ कुछ अनहोनी न हो जाए। इसे लेकर ग्राम पंचायत की तरफ से गांव में बाकायदा एक सूचना पट लगाया गया है। इस पर होली न मनाए जाने के संबंध में लिखा गया है। जिसमें होली न मनाने को लेकर सूचना दी गई है। गांव में होली न मनाए जाने का कारण करीब 170 वर्ष पहले एक साधु द्वारा दिया श्राप बताया जा रहा है। साधु द्वारा दिए श्राप से ग्रामीण आज भी इतने भयभीत हैं कि वे होली नहीं मनाते। 

यह कथा है प्रचलित

इस श्राप को लेकर ग्रामीणों में कई प्रकार कथाएं प्रचलित हैं। गांव की युवा महिला सरपंच सीमा रानी के मुताबिक करीब 170 वर्ष पहले गांव में स्नेही राम नाम का एक साधु रहते थे जो ठिगने कद थे। बताया जाता है कि साधु स्नेही राम ने होली के दिन ग्रामीणों के समक्ष कोई मांग रखी थी, जिसे ग्रामीण पूरा नहीं कर पाए थे। ग्रामीणों के मुताबिक अपनी मांग पूरी न होने से गुस्साए बाबा स्नेही राम ने होली के दिन समाधि लेकर अपने प्राण त्याग दिए थे।

दूसरी मान्यता यह भी है कि घटना के दिन गांव में होली के उल्लास का माहौल था और लोगों ने मिल जुलकर एक स्थान पर होलिका दहन के लिए सूखी लकड़ियां, उपले व अन्य समान इकट्ठा कर रखा था। परंतु होलिका दहन के निश्चित समय से पहले गांव के ही कुछ युवकों को शरारत सूझी और वे समय से पहले ही होलिका दहन करने लगे। युवाओं को ऐसा करते देख वहां मौजूद बाबा स्नेही राम ने उन्हें ऐसा करने से रोकना चाहा। बताया जाता है कि उन युवकों ने बाबा के ठिगनेपन का मजाक उड़ाते हुए समय से पहले ही होली का दहन कर दिया। युवाओं द्वारा किए गए इस कार्य से बाबा गुस्से से जलती होली में कूद पड़े।

बाबा ने दिया था यह श्राप

कथा के अनुसार, होलिका में जलते-जलते बाबा ने ग्रामीणों को श्राप दे दिया कि आज के बाद इस गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाएगा। यदि किसी ने होली का पर्व मनाने की हिम्मत की तो उसे इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा। सच्चाई कुछ भी रही हो, लेकिन इस घटना के बाद से आज तक गांव में किसी भी व्यक्ति ने होली नहीं मनाई।

श्राप मुक्ति का 170 वर्षों से इंतजार

बताया यह भी जाता है कि लोगों ने बाबा से गलती के लिए माफी मांगी थी। परंतु बाबा ने माफी देने से तो इन्कार कर दिया था, लेकिन गांव वालों को श्राप से मुक्त होने का वरदान देते हुए कहा था कि होली के दिन गांव में किसी भी ग्रामीण की गाय को बछड़ा व उसी दिन गांव की ही किसी बहू को बेटा होता है तो उन्हें श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। लेकिन पिछले 170 वर्षों से यह संयोग नहीं बना। अपने बुजुर्गों की बताई परंपरा का पालन करते हुए कुछ ग्रामीण आज भी मिठ्ठी रोटी बना बाबा स्नेही राम की समाधि पर पूजा करते हैं। वहीं, कुछ लोग बाबा की याद में केवल एक दीपक जलाते हैं।

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