दूरी व दिशा की पहचान कोस मीनार शाहाबाद और फरीदाबाद में गायब, जानिए क्या कह रहा पुरातत्व विभाग
शेरशाह सूरी के शासन काल में दूरी और दिशा के लिए बनाई गई कोस की मीनार गायब हो गई है। शाहाबाद और फरीदाबाद में कोस की मीनार का पता नहीं लग पा रहा। एएसआइ सर्वे में शाहाबाद में कोस मीनार की एक बीघा छह बिस्वा जमीन थी।
कुरुक्षेत्र, [जगमहेंद्र सरोहा]। एक समय में दूरी व दिशा की पहचान कोस मीनार धीरे-धीरे गायब हो रही हैं। कुरुक्षेत्र के शाहाबाद और फरीदाबाद के मुजेसर में दो कोस मीनार नहीं मिल रही हैं। पुरातत्व विभाग भी इन सबको लेकर पीछे हटने लगा है। कोस मीनार न होने की सूचना देकर विभाग ने इतिश्री कर ली है।
संसद में 2016-17 में संस्कृति मंत्री ने कोस मीनार को तलाश करने के दावे भी किए थे। पुरातत्व विभाग ने इसके लिए प्रयास भी किए, लेकिन प्राथमिकता में ही दो कोस मीनार नहीं मिली। विभाग इन्हीं पर आकर अटक गया। अमित कुमार ने विलुप्त होती पहचान को जानने के लिए आरटीआइ के तहत सूचना भी मांगी, लेकिन विभागीय अधिकारी पत्रों का हवाला देकर पल्ला झाड़ने लगें। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने भी दो कोस मीनार के गायब होने की बात को माना है।
शाहाबाद में वह स्थान जहां थी कोस मीनार, अब आवासीय सेक्टर कालोनी है।
शाहाबाद में प्लाटिंग की
कुरुक्षेत्र के शाहाबाद में एक कोस मीनार है। पुरातत्व विभाग के 1914 के सर्वे में एक बीघा छह बिसवा जमीन खसरा नंबर 1925 में थी। यह जमीन वली मोहम्मद के नाम थी। विभाजन के बाद जमीन में बदलाव किया। यह जमीन नौ नंबर खसरे में दिखाई गई और आठ कनाल जमीन रही। 2004-05 में चमनलाल के नाम जमीन दिखाई गई। इसको बाद में हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने एक्वायर कर लिया और जमीन पर सेक्टर काट दिया गया। अब यहां लोगों ने मकान बना लिए हैं।
फरीदाबाद के मुजेसर में फैक्टरी बनाई
कोस मीनार नंबर-13 फरीदाबाद के बल्लभगढ़ तहसील के मुजेसर क्षेत्र में थी। पुरातत्व विभाग के 11 मार्च 1919 के सर्वे में कोस मीनार को दिखाया गया था। इस जमीन को बाद में एक कंपनी को दे दिया गया। विभाग की रिपोर्ट है कि कंपनी मालिक ने इसको तोड़ दिया गया। चार फरवरी 1984 को इसको लेकर कानून कार्रवाई करने की भी बात उठी।
इसलिए बनवाई थी कोस मीनार
डीएवी कालेज अंबाला में इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. चांद कादियान ने बताया कि शेरशाह सूरी ने वर्ष 1540-45 तक शासन किया था। उसने ग्रांड ट्रंक रोड के किनारे कोस मीनार और सराय बनवाई थी। हर दो कोस (यानी 4.3 किलोमीटर) की दूरी पर कोस मीनार का निर्माण कराया था। कोस मीनार में 21 गुना 21 फुट का प्लेटफार्म, इसके ऊपर 10 फीट का अष्ट भूजाकार व उसके ऊपर 14 फीट गोलाकार होता है। यह लाखौरी ईंटों और चूने से बनाया गया है। इसके बाद अकबर और जहांगीर ने इसको मजबूत बनाया। इन्हीं मीनारों को देखकर सैनिक काफिले व राहगीर यात्र करते थे। पुराने समय में डाक भी इन्हीं मीनारों की तर्ज पर चलती थी। जहांगीर ने कोस मीनारों को पक्की ईंटों और पत्थरों से बनवाया था। कोस मीनारों को समय के साथ भूलते चले गए। कुछ मीनारों का अस्तित्व ही मिट चुका है।
शाहाबाद में सेक्टर के लिए जमीन नियमानुसार एक्वायर की गई थी। अब जमीन संबंधित लोगों को अलाट कर दी गई है। उनके पास किसी ने कोई दावा पेश नहीं किया। अब किसी तरह की मांग उठती है तो नियमानुसार हर संभव सहयोग किया जाएगा। वह कोस मीनार को लेकर कुछ नहीं कह सकते।
योगेश रंगा, ईओ, एचएसवीपी, कुरुक्षेत्र।
शाहाबाद में एक कोस मीनार मिस है। इसको तलाशा गया है। यह अभी नहीं मिल रही है। इससे अधिक जानकारी चंडीगढ़ के वरिष्ठ अधिकारी दे पाएंगे।
कुलदीप, जूनियर कंजर्वेशन असिस्टेंट, पुरातत्व विभाग, कुरुक्षेत्र