यहां तो लड़कों का भी हो रहा बाल विवाह, पानीपत में लगातार मिल रहीं शिकायतें
सख्त कानून के बावजूद कम नहीं हो रहे मामले। पानीपत में हर साल 60 से अधिक शिकायतें मिल रही हैं। कई मामलों में बाल विवाह रुकवाए। कई मामलों में शादी हो चुकी। बाद में केस दर्ज करने पड़े।
पानीपत, जेएनएन। हरियाणा में बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान के लिए बाल विवाह कुप्रथा कलंक बनी हुई है। जिले में हर साल 60 से अधिक शिकायतें मिलती रही हैं। इनमें 25 से 40 बाल विवाह ऐन वक्त पर पुलिस की मदद से रुकवा दिए जाते हैं। चिंताजनक पहलू यह कि बाल विवाह के 10 फीसद से अधिक मामले लड़कों से जुड़े होते हैं। यह संख्या साल-दर-साल बढ़ भी रही है।
जिला महिला संरक्षण एवं बाल विवाह निषेध अधिकारी रजनी गुप्ता ने बताया कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में एक अप्रैल से 30 सितंबर 2020 तक 26 बाल विवाह की शिकायतें मिली। इनमें 10 बाल विवाह मौके पर रुकवाए गए। तीन शिकायतें झूठी मिली। आठ शिकायतों में शादी हो चुकी है, और जांच करने पर उनकी आयु पूरी मिली है। एक केस में मुकदमा दर्ज कराया गया है, चार बाल विवाह में कार्रवाई जारी है।
बता दें कि बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006 के तहत लड़की का विवाह 18 वर्ष से कम आयु में करना गैरकानूनी है। लड़के का विवाह 21 वर्ष से कम आयु में नहीं कर सकते। आरोपितों को दो साल की सजा, एक लाख रुपये जुर्माना हो सकता है। 18 वर्ष का युवक किसी नाबालिग लड़की से विवाह करता है तो सेक्शन-6 के तहत उस पर भी मुकदमा चलेगा।
वित्तीय वर्ष 2018-19 के आंकड़े
शिकायतें मिली 65
बाल विवाह रुकवाए 24
पुलिस को सौंपे केस 08
झूठी शिकायत 01
बालिग मिले 31
लंबित केस 01
वित्तीय वर्ष 2019-20 के आंकड़े
शिकायतें मिली 61
बाल विवाह रुकवाए 34
पुलिस को सौंपे केस 06
झूठी शिकायत 03
बालिग मिले 13
लंबित केस 05
बाल विवाह में शामिल होने वाले भी आरोपित
बाल विवाह बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006 की धारा 10 में माता-पिता को आरोपित बनाया जाता है। सेक्शन-11 में मंडप स्वामी, फोटोग्राफर, पंडित, हलवाई, रिश्तेदार, परिचित, सामूहिक विवाह कराने वाली संस्थाएं आदि को आरोपित बनाया जाता है।
बाल विवाह के मुख्य कारण
-गरीबी, शिक्षा-जागरूकता का अभाव।
-माता-पिता की आपसी अनबन।
-बेटियों की सुरक्षा, राह से भटकने का डर।
-आटा-साटा कुप्रथा, दो बहनों का एक साथ विवाह।
-संस्थाओं द्वारा सामूहिक विवाह आयोजन
शारीरिक विकास रुक जाता है
अर्बन हेल्थ सेंटर के मेडिकल आफिसर डा. अमित ने बताया कि बाल विवाह की शिकार लड़कियों की विवाह उपरांत गृहस्थ जीवन के दबाव से शारीरिक विकास रुक जाता है। तनाव बढ़ता है। गर्भपात, मृत प्रसव, शिशु मृत्यु दर का डर बना रहता है। लड़कों की कम आयु में शादी से आर्थिक तंगी का डर बना रहता है।
बेटियों को शिक्षित करना जरूरी
बाल विवाह निषेध अधिकारी रजनी गुप्ता ने बताया कि बाल विवाह निषेध अधिनियम-2006 सभी जाति-धर्मों के लिए समान रूप से लागू है। बाल विवाह न हो, इसके लिए बेटियों को उच्च शिक्षित बनाना जरूरी है। समाज अपने आसपास हो रहे बाल विवाह की सूचना दे को कुप्रथा का अंत हो सकता है।