हरियाणा में हुड्डा नहीं चाहते कांग्रेस आलाकमान का हस्तक्षेप, शीर्ष नेतृत्व को सिद्धू जैसे नेता की तलाश
Haryana Politics हुड्डा यदि कांग्रेस से अलग हो जाएंगे तो हरियाणा में कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं है। यही कारण है कि वह कपिल सिब्बल गुलाम नबी आजाद जैसे असंतुष्ट नेताओं का खुलकर सपोर्ट करते हैं और कांग्रेस नेतृत्व किलस कर रह जाता है।
जगदीश त्रिपाठी, पानीपत। Haryana Politics बीते विधानसभा चुनावों के पहले से ही हरियाणा में यह चर्चा होती रही है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा कांग्रेस से अलग होकर नया दल बनाएंगे। कारण यह था कि हुड्डा प्रदेश की राजनीति में किसी अन्य नेता का हस्तक्षेप नहीं चाहते। इसलिए उनके समर्थक समय समय पर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से यह मांग करते रहे कि उन्हें उसी तरह फ्रीहैंड किया जाए जैसे पंजाब में कैप्टन अमरिंदर को किया गया है। सोनिया गांधी ऐसा नहीं चाहती थीं। वह तो कैप्टन अमरिंदर पर भी अंकुश लगाना चाहती थीं, लेकिन पंजाब कांग्रेस में कैप्टन को चुनौती देने वाला कोई नहीं मिल रहा था। उनकी तलाश पूरी की भाजपा से आयातित किए गए नवजोत सिंह सिद्धू ने।
सिद्धू ने ऐसी स्थितियां उत्पन्न कर दीं कि अमरिंदर कांग्रेस को अलविदा कहने पर विवश हो गए। सोनिया ने स्पष्ट कह दिया-आइएम सारी अमरिंदर। लेकिन हुड्डा के लिए सोनिया को सारी बोलना फिलवक्त संभव नहीं लगता। यद्यपि हरियाणा कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा और हुड्डा के बीच जो संग्राम चल रहा है, उसे देखते हुए यह स्पष्ट है कि हुड्डा को असहज करने पर गंभीरता से काम चल रहा है। हुड्डा इसे समझते हैं। इसलिए वह अपनी रणनीति भी उसी के अनुरूप बनाते हैं। कई मुकदमे ऐसे हैं जिसमें सोनिया को अपने परिवार को बचाने के लिए हुड्डा का सपोर्ट जरूरी है।
खास तौर से प्रियंका गांधी के पति राबर्ट वाड्रा के लिए, जो हरियाणा में हुए भूमि घोटाले में फंसे हैं। हुड्डा के पुत्र दीपेंद्र हुड्डा भी राहुल और प्रियंका से अपने पिता की पैरवी किया करते हैं। इसके बावजूद जिस तरह से कुमारी सैलजा और उनके समर्थक बयानबाजी करते रहते हैं, वह हुड्डा को क्षुब्ध करता रहता है। यह बात अलग है कि सैलजा के समर्थक विधायक संख्या पांच-छह है, दो तीन ऐसे हैं जो दोनों गुटों में नहीं हैं, जबकि हुड्डा के समर्थक विधायकों की संख्या 22 है। ये ऐसे विधायक हैं कि यदि हुड्डा आज कांग्रेस छोड़कर नया दल बनाएं तो उनके साथ जाने में जरा भी विलंब नहीं लगाएंगे, वैसे ही जैसे अमरिंदर समर्थक उनके साथ हैं। लेकिन अभी तक कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व हरियाणा में हुड्डा की काट के लिए कोई सिद्धू नहीं तलाश सका है।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर ने हुड्डा को चुनौती देने भरसक प्रयास किया था, लेकिन असफल रहे। हुड्डा समर्थकों ने उन्हें पीट तक दिया लेकिन पीटने वालों पर कांग्रेस नेतृत्व ने कोई कार्रवाई नहीं की। जब तंवर ने देखा कि अधिकतर टिकट हुड्डा समर्थकों को मिल रहे हैं तो उन्होंने खुला विरोध किया पर अंत में उन्हें ही कांग्रेस छोड़नी पड़ी। अब हुड्डा समर्थक दो प्लान बनाकर चल रहे हैं। पहला प्लान ए हरियाणा कांग्रेस का एकछत्र नेता बनना। दूसरा प्लान बी, यदि शीर्ष नेतृत्व उन्हें हाशिए पर ढकेलता है तो कांग्रेस से अलग होकर नया दल बनाना। यह भी रेखांकित कर लें कि हुड्डा भी राष्ट्रवादी सोच के हैं।
एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के पक्ष में हैं। सो, अमित शाह से मिलने के उनके विकल्प भी खुले हुए हैं। अब तक इसलिए नहीं मिले की अब तक वे कुछ सीमा तक अपने प्लान ए में सफल रहे हैं। वह हरियाणा कांग्रेस के एकछत्र नेता भले नहीं बन सके, लेकिन उनके कद का हरियाणा कांग्रेस में कोई दूसरा नेता भी नहीं है। कांग्रेस के अन्य नेताओं की अपेक्षा उनका बहुत बड़ा जनाधार है। यह बात कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व जानता है। कुछ करने का साहस नहीं जुटा पाता है।