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किसान आंदोलन को लेकर विज का बड़ा बयान, आंदोलनकारियों का एजेंडा कुछ और

दिल्ली में संसद सत्र के मौके पर आंदोलनकारी एकत्रित होने को लेकर हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने बड़ा बयान दिया। गृहमंत्री अनिल विज ने कहा कि आंदोलनकारी कानून न तोड़ें। आंदोलनकारियों का हिडेन एजेंडा कुछ और ही है।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Sat, 27 Nov 2021 11:56 AM (IST)Updated: Sat, 27 Nov 2021 11:56 AM (IST)
किसान आंदोलन को लेकर विज का बड़ा बयान, आंदोलनकारियों का एजेंडा कुछ और
हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज ने दिया बड़ा बयान।

अंबाला, जागरण संवाददाता। दिल्ली में संसद सत्र के मौके पर आंदोलनकारी एकत्रित होंगे। इसको लेकर प्रदेश के गृह मंत्री अनिल विज ने कहा कि हरियाणा और दिल्ली प्रशासन पूरी तरह से अलर्ट है, इस पर किसी को कानून व्यवस्था भंग नहीं करने दी जाएगी। उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन को एक साल हो गया, जिसमें पहले तीन कानून वापस लेने की मांग थी और उस पर प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने तीन कानून वापस कर दिए। उनकी और मांगे हो सकती है, लेकिन पहले उसके लिए प्रधानमंत्री का धन्यवाद तो करो, उसके लिए कोई खुशी नहीं मनायी। आगे-आगे मांगें मनवाना आंदोलन की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा होता है। सरकार ने अपनी बातचीत के लिए कभी मना नहीं किया। प्रजातांत्रिक देश है सभी को मांग रखने का अधिकार है। सभी के लिए दरवाजे खुले हैं और इन्हें कई बार कहा कि बताएं। लेकिन इनका हिडन एजेंडा कोई और लगता है। किसानों के हित से कोई तालुक नहीं लगता है।

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उन्होंने कहा कि एक आंदोलन पहले भी हुआ था नेता थे जयप्रकाश नारायण, नारा था संपूर्ण क्रांति और देश में सत्तारूढ़ पार्टी थी कांग्रेस। उस वक्त इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थी और उन्होंने बात मानने की बजाय 25 जून 1975 को देश में एमरजेंसी लगाकर नेताओं को जेल में डाल दिया था। एक आंदोलन अब हुआ है किसानों का तीन बिलों को लेकर, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदर के साथ तीनों बिलों को वापस लेने की घोषणा कर दी। यह अंतर है कांग्रेस और भाजपा में। ऐसा करने से नरेंद्र मोदी का कद आज और बढ़ गया है। सबको उनकी बात का सम्मान करना चाहिए।

पहले भी आंदोलन नेतृत्‍व पर खड़े किए थे सवाल

अनिल विज ने पहले भी आंदोलन के शीर्ष  नेतृत्‍व पर सवाल खड़े किए थे। विज ने कहा था कि अगर आंदोलन लंबा चल रहा और सरकार से बात नहीं हो पा रही है तो शीर्ष नेताओं के मंसूबे कुछ और ही हैं। उन्‍हें किसानों के हित से कोई मतलब नहीं है।


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