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बतौर वॉलंटियर कोवैक्सीन का डोज लेकर नायक के रूप में उभरे हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज

हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज देश के पहले ऐसे मंत्री हैं जिन्होंने वैक्सीन के परीक्षण के लिए स्वयं को बतौर वॉलंटियर पेश किया और उसकी डोज ली। शायद दुनिया के किसी भी देश के पहले मंत्री हों।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 09:29 AM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 02:19 PM (IST)
बतौर वॉलंटियर कोवैक्सीन का डोज लेकर नायक के रूप में उभरे हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज
बतौर वॉलंटियर कोवैक्सीन का डोज लेते हरियाणा के गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज। फाइल

जगदीश त्रिपाठी। वरिष्ठ भाजपा नेता और हरियाणा के गृह एवं स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज का अपना अलग अंदाज है। अक्खड़, फक्कड़ और बेलौस, अपने सिद्धांतों से समझौता न करने वाले विज के विचारों से आप असहमत हो सकते हैं, लेकिन उनकी कर्तव्यनिष्ठा पर प्रश्नचिह्न नहीं लगा सकते। वैसे भी जब से भारत बायोटेक की तरफ से बनाई जा रही कोवैक्सीन के परीक्षण के तीसरे चरण में बतौर वॉलंटियर उन्होंने कोवैक्सीन का डोज लिया है, तब से वह नायक बनकर उभरे हैं। वह देश के पहले ऐसे मंत्री हैं जिन्होंने वैक्सीन के परीक्षण के लिए स्वयं को बतौर वॉलंटियर पेश किया और उसकी डोज ली। शायद दुनिया के किसी भी देश के पहले मंत्री हों।

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उल्लेखनीय है कि देश के स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने कुछ दिन पहले कहा था कि वैक्सीन तैयार हो जाने के बाद वह स्वयं इसकी पहली खुराक लेंगे, जिससे वैक्सीन के प्रति लोगों का भय समाप्त हो सके, लेकिन विज ने तो उनसे भी आगे जाकर वैक्सीन के परीक्षण के दौरान ही स्वयं को प्रस्तुत कर दिया। वैसे हरियाणा में उन्हें गब्बर कहा जाता है, लेकिन गब्बर इज बैक वाले गब्बर (अक्षय कुमार), शोले वाले गब्बर (अमजद खान) नहीं।

शायद उनका आखिरी हो ये सितम : यमुना के किनारे के किसान दूसरे किनारे वाले उत्तर प्रदेश के किसानों से कई दशकों से पीड़ित हैं। हरियाणा के किसान हर बार यह सोचकर रह जाते हैं कि शायद उनका आखिरी हो ये सितम, लेकिन उनकी सोच सोच ही रह जाती है। उत्तर प्रदेश के किसानों पर उत्तर प्रदेश सरकार भी कोई अंकुश नहीं लगाती है। उत्तर प्रदेश सरकार को तो छोड़िए, हरियाणा सरकार भी अपने किसानों के उत्पीड़न को गंभीरता से नहीं लेती। वह इसके लिए गंभीर होती तो दोनों तरफ के किसानों के बीच सीमा विवाद को लेकर होने वाले खून-खराबे कब के बंद हो गए होते।

अभी कुछ दिन पहले सोनीपत जिले के गांव जाजल के किसान खेत में बिजाई करने गए थे तो उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के निवाड़ा गांव के किसानों ने उन्हें धमकाकर जाने के लिए कह दिया। उसके तीन चार दिन बाद जाजल से कई किसान राई थाने की पुलिस को लेकर यमुना के खादर क्षेत्र में जमीन पर बिजाई करने गए तो फिर बागपत के निवाड़ा गांव से दर्जनों लोगों ने हरियाणा के किसानों पर हमला कर दिया। इस हमले में हरियाणा के किसान तो घायल हुए ही, एक पुलिसकर्मी भी घायल हो गया। विचारणीय है कि यमुना किनारे बसे गांवों के किसानों को अपनी जमीन पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने की आज्ञा पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय से मिल चुकी है, लेकिन वे तार भी नहीं लगा पा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के किसान कोई न कोई बाधा पैदा कर देते हैं। वैसे तो इस सीमा विवाद को 14 फरवरी, 1975 को दीक्षित अवार्ड और सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार सुलझाया जा चुका है। उत्तर प्रदेश के किसानों की हठर्धिमता है कि वे मानने को तैयार नहीं। यहां तक कि दीक्षित अवार्ड के अनुसार सीमा को रेखांकित करने के लिए जो खंभे लगाए गए थे, उनमें से भी बहुत से गायब किए जा चुके हैं, जिससे सीमा को चिह्नित ही न किया जा सके। इसलिए हरियाणा सरकार को भी खुद पहल करके इस विवाद का हल करना-कराना चाहिए, अन्यथा यमुना के किनारे स्थित यमुनानगर, करनाल, पानीपत, सोनीपत, फरीदाबाद और पलवल के किसान त्रस्त होते रहेंगे।

किसानों के हितों पर डाका : उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब के लोग कुछ बिचौलियों से साठगांठ कर हरियाणा से खाद अपने प्रदेशों में ले जाकर बेचते हैं। सिरसा और यमुनानगर में अक्सर उनके ट्रक पकड़े जाते रहते हैं। लंबे समय से ऐसा हो रहा है। हरियाणा सरकार खाद पर अपने किसानों को अनुदान देती है, जिससे उनके किसान अपने खेतों में समुचित मात्रा में खाद डाल सकें, लेकिन इसमें भी उनके हिस्से की खाद कालाबाजारी करने वाले पड़ोसी प्रदेश वालों को दे देते हैं। प्रदेश के कुछ व्यापारी और किसान राजस्थान का बाजरा भी हरियाणा लाकर बेच रहे हैं। हरियाणा की सरकार बाजरे को समुचित मूल्य पर खरीदती है। अन्य प्रदेशों में उतना मूल्य नहीं मिल पाता है। उत्तर प्रदेश वाले इसी तरह धान और गेहूं लाकर यहां बेचते हैं। दूसरी तरफ हरियाणा के किसानों की फसल बिकने में दिक्कत आती है, क्योंकि आढ़ती अन्य प्रदेशों से चोरी-छिपे लाई गई फसल को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हरियाणा सरकार को बेच देते हैं और हरियाणा सरकार का खरीद का लक्ष्य पूरा हो जाता है।

[प्रभारी, हरियाणा राज्य डेस्क]


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