क्या आप जानते हैं 35 बरस पहले मनोहर ने देखा था सरस्वती सपना, अच्छे दिन अब आने वाले हैं
सरस्वती की धारा अब दिखेगी। हिमाचल प्रदेश के साथ हुआ करार। इस सप्ताह सियासत की गतिविधियों के बारे में जानिये। पानीपत के केजरीवाल कौन हैं अब क्यों हो गए चिंतामुक्त पढ़िए विशेष खबर। हरियाणा में छोटी सरकार में किसी की चलती ही नहीं ये भी आपके लिए जानना होगा रोचक।
पानीपत, [रवि धवन]। कोई काम नहीं है मुश्किल,जब किया इरादा पक्का, मैं हूं आदमी सड़क का। शत्रुघ्न सिन्हा की आदमी सड़क का नाम की फिल्म में यह गाना 1977 में आया था। वैसे तो शत्रुघ्न सिन्हा भी कुछ वर्ष तक भाजपा में ही थे, लेकिन इस गाने को एक अन्य भाजपाई ने साकार कर दिखाया। वह हरियाणा में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री है। 35 बरस पहले, जब मनोहर सड़क के आदमी होते थे तो उन्होंने सरस्वती नदी को धरा पर उतारने का जो सपना देखा था, उसे वह पूरा करने जा रहे हैं। तब मनोहर ने आदिबद्री से लेकर कच्छ तक रास्ता नाप लिया था। उस समय दूर दूर तक संभावना नहीं थी कि कभी मुख्यमंत्री बनेंगे पर वह सरस्वती को धरा पर लाने का पक्का इरादा जरूर रखते थे। जबसे हिमाचल प्रदेश के साथ डैम बनाने का समझौता हुआ है, तय हो गया है कि सरस्वती के अच्छे दिन आने वाले हैं।
अब शाह-विज वाली बात कहां
बाजार के प्रधानों के बीच चर्चा छिड़ी थी। उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार में अपने-अपने नेताओं के साथ शशि थरूर की तरह सज धज कर जाने की तैयारी हो रही थी। लेकिन तभी एक प्रधान ने कहा, उत्तर प्रदेश और पंजाब तो ठीक है। अपना पानीपत भी देख लो। नेताजी फेसबुक पर त्योहार मना लेते हैं। बात करनी हो तो वाट्सएप कालिंग। रिकार्डिंग से इनको डर लगता है। अब वो दिन नहीं रहे। हाथ वाले एक नेता ने हाथ नचाते हुए कहा- बलबीरपाल शाह जैसे नेता बाजार में आते थे। जाम लग जाता तो गाड़ी से उतरकर पैदल बातें करते हुए निकलते। खिले हुए कमल सा फूल बनाते हुए मोदी भक्त बुजुर्ग कहां रुकने वाले थे। बोले, फतेहचंद विज वाली बात अब नेताओं में कहां रही। बाजार में बच्चों के साथ खड़े हो जाते थे। चंडीगढ़ जाना होता तो बस में अपने साथ किसी न किसी को जरूर ले जाते।
पानीपत के केजरीवाल चिंतामुक्त
पानीपत के केजरीवाल। समझ तो गए ही होंगे आप। पूर्व मेयर भूपेंद्र सिंह। अब वह भी चिंतामुक्त हो गए हैं। उन पर दर्ज मारपीट का मुकदमा खत्म होने जा रहा है। हरियाणा सरकार ने पार्षद अंजली शर्मा सहित जाम लगाने वाले सभी लोगों पर दर्ज केस वापस लेने का फैसला कर लिया था। डीसी और एसपी ने संस्तुति भेज दी थी। केस वापसी का आश्वासन तो भूपेंद्र सिंह को भी मिला था। पर पहली फाइल अंजली शर्मा की गई। भूपेंद्र के इंतजार की बर्फ अब जाकर पिघली है। वैसे, कहने वाले कहते हैं- भूपेंद्र को चुप्पी का फल मिला है। बेटी उनकी मेयर हैं। तब भी धरना देने से पीछे नहीं हटते थे। केस दर्ज हो ही गया। संगठन की ओर से कई संकेत पहुंचे। पर केजरीवाल फोबिया उनका दूर नहीं हुआ। जब से ये केजरी मफलर उन्होंने उतार फेंका है, तब से केस वापसी की राह भी खुल गई।
इस छोटी सरकार में चलती किसकी है
नगर निगम को लोग शहर की छोटी सरकार भी कहते हैं। शहर की सरकार चलाते हैं पार्षद, मेयर और उनके सीनियर व डिप्टी मेयर। इस सरकार में चलती किसकी है, यह किसी को पता नहीं। मेयर अवनीत कौर कहती हैं, मेरे पास पावर नहीं। सिंघम जैसी छवि लेकर सीनियर डिप्टी मेयर बने दुष्यंत भट्ट भी अब कहने लगे हैं, मेरे पास पावर नहीं। डिप्टी मेयर रवींद्र फुले को तो महीनों बाद अपना ही कार्यालय मिल सका। पार्षद तो जैसे किसी खाते में ही नहीं। प्रापर्टी आइडी हो या फिर नो ड्यूज सर्टिफिकेट लेना हो, आम आदमी को धक्के खाने ही पड़ते हैं। सवाल उठते हैं तो नेता कहते हैं, हमारी खुद की ही सुनवाई नहीं। विधायक कहते हैं, पार्षद-मेयर ही संभालें नगर निगम। बड़े कद वाले नेता भी यही कहते हैं, मेरे स्तर का मामला लेकर आओ। छोटी सरकार पालिका बाजार और ताऊ देवीलाल काम्पलेक्स में खड़ी सुबक रही है