सीएम मनोहर लाल के निर्देशों के बावजूद भी यमुना नहर से दूर नहीं हुए प्रदूषण के झाग, पढ़ें खबर
सीएम मनोहर लाल व एनजीटी के निर्देशों के बावजूद शहर की औद्योगिक इकाइयों से निकल रहा केमिकल युक्त पानी व सीवरेज का बहाव सीधे यमुना में गिर रहा है। हमीदा कालोनी व अन्य क्षेत्रों से कई नाले नहर में गिर रहे हैं। पूरा मामला क्या है इस रिपोर्ट से समझें...
यमुनानगर, जागरण संवाददाता। वर्ष 2021 में सात साल बाद आखिर कचरे का धाग धुल गया है। कैल पर लगे कचरे के पहाड़ सिमट गए। हालांकि यह काम काफी चुनौती भरा था, लेकिन कचरे का प्रबंधन करवाकर निगम अधिकारियों ने स्वच्छता में बढ़त बनाई है। शहर से निकल रहे कचरे के प्रबंधन के लिए औरंगाबाद में प्लाट लगवा दिया गया है, लेकिन पश्चिमी यमुना नहर में गिर रहे गंदे नालों को डाइवर्ट करने की योजना अभी अधर में है। औद्योगिक इकाइयों से निकल रहा केमिकल युक्त पानी आज भी सीधे नहर में गिर रहा है। जबकि इस एनजीटी सख्ता रवैया अपना चुकी है।
न सीएम न एनजीटी के आदेशों की परवाह
नवंबर-2016 में सीएम मनोहर लाल व एनजीटी के निर्देशों के बावजूद शहर की औद्योगिक इकाइयों से निकल रहा केमिकल युक्त पानी व सीवरेज का बहाव सीधे यमुना में गिर रहा है। हमीदा कालोनी व अन्य क्षेत्रों से कई नाले नहर में गिर रहे हैं। नाले का पानी नहर में गिरते हुए पूरे के पूरे नहर के पानी का रंग ही बदल देता है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की ओर से भी नालों का बहाव रोकने के आदेश दिए जा चुके हैं। दूषित पानी सिर्फ नहर के पानी को ही प्रदूषित नहीं कर रहा है, इससे भूजल भी प्रदूषित हो रहा है। इसके साथ ही केमिकल युक्त दूषित पानी के नहर में गिरने से श्रद्धालुओं की आस्था आहत होती है।
संकट में जलीय जीव
केमिकल युक्त पानी के कारण जलीय जीवों का जीवन संकट में है। विशेषेज्ञों केमिकल युक्त दूषित पानी से टाइफाइड, डायरिया जैसे जल जनित बीमारी हो जाती हैं। हैवी मेटल (इंडस्ट्री से निकलने वाला दूषित पानी) से कैंसर, दिमाग का विकसित नहीं होना, किडनी फेल होना, फेफड़े सहित अन्य बीमारी हो जाती है। यमुनानगर-जगाधरी शहर के अलावा आसपास के गांवों से भी गंदे पानी की निकासी के नाले नहर में गिर रहे हैं। जबकि शहरी एरिया से निकल रहे नालों को डाइवर्ट कर एसटीपी तक ले जाने की योजना है। उधर, नदियों को स्वच्छ रखने का संदेश देने के लिए सरकार की ओर से विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करवाया जा रहा है।
एक लाख टन कचरे का प्रबंधन
सात साल बाद आखिर कचरे का धुल गया। वर्ष-2014 से बंद पड़े प्लांट से करीब एक लाख टन ठोस कचरे का प्रबंधन हो गया है। कचरे का प्रबंधन कर आरडीएफ (रिफ्यूज डिलाइव फ्यूल), बायो सोयल व ईंट-कंकड़ अलग-अलग किया गया है। जो रह गया है, उसका प्रबंधन जल्द हो जाएगा। 20 से अधिक औद्योगिक इकाइयों में आरडीएफ सप्लाई हो रहा है। जिसे ईंधन के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।
जनवरी-2021 में शुरु हुआ था प्रबंधन
प्लास्टिक, पेपर, फोम आदि से आरडीएफ (रिफ्यूज डिलाइव फ्यूल) तैयार कराया जा रहा है। यह एक तरह से कचरे का गोला होता है। जिसे सीमेंट फैक्ट्री या अन्य फैक्ट्रियों को ईंधन के रूप में इस्तेमाल के लिए बेचा जा रहा है। शहर से निकलने वाले कचरे के प्रबंधन के लिए कैल गांव में 18.74 करोड़ रुपये की लागत से सालिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बनाया गया था। दिसंबर 2014 में प्लांट बंद हो गया। जिसके कारण यहां करीब सवा लाख टन कचरा जमा हो गया। इसके प्रबंधन के लिए जनवरी 2021 में बायोरेमेडिएशन तकनीक से कचरे का प्रबंधन करना शुरू किया।