अहमद बख्श थानेसरी की रामायण में भी हरियाणा के भाईचारे की मिसाल, जानें इतिहास
अहमद बख्श थानेसरी की रामायण में भी हरियाणा के भाईचारे की मिसाल पेश की है। दादा लख्मी चंद समेत कई हस्तियां ऐसी हुईं जिन्होंने सांग के जरिए आपसी समरसता का संदेश दिया। अंतरजातीय विवाहों को प्रोत्साहन देकर सरकार भी बढ़ा रही प्रदेश में सामाजिक सद्भाव।
अनुराग अग्रवाल, चंडीगढ़। हरियाणा का सामाजिक सद्भाव और भाईचारा गजब का है। यहां के भाईचारे की मिसाल दूर-दूर तक दी जाती है। प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कैसी भी स्थिति हो, लेकिन सामाजिक सद्भाव और भाईचारे पर कभी कोई आंच नहीं आती। दलित उत्पीड़न की दो-चार घटनाओं को अपवाद के रूप में लिया जाए तो ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जब जाति-बिरादरी से ऊपर उठकर लोग एक दूसरे की मदद करने के लिए किसी भी सीमा तक जाते देखे गए हैं। समाज की यह परंपरा कोई अचानक नहीं बन गई। बरसों से चला आ रहा भाईचारा आज समाज की ताकत बन चुका है।
अंतरजातीय कार्यक्रमों और विवाहों को प्रोत्साहन देकर सरकार इस भाईचारे को बढ़ाने में अहम योगदान दे रही है। अब तो स्थिति यह है कि राज्य की खाप पंचायतें भी धीरे-धीरे संकीर्ण विचारधारा का परित्याग कर सामाजिक समरसता के लिए हुंकार भरती नजर आ रही हैं। साधारण बोलचाल की भाषा में हम समाज को व्यक्तियों का समूह कहते हैं। किसी भी व्यक्ति को पता नहीं है कि उसका जन्म कब, कहां और किस मां के गर्भ में होगा, लेकिन जब उसका जन्म हो जाता है तो वह एक विशेष समाज, विशेष जाति, विशेष धर्म, विशेष समुदाय और विशेष क्षेत्र में बंट जाता है।
कुछ दिन के बाद वह बोलने लगता है, समझने लगता है, फिर उसकी मां उसे बताने लग जाती है कि उसकी जाति कौन सी है, उसका धर्म कौन सा है, उसका समुदाय कौन सा है, वह किस समाज का हिस्सा है। व्यक्ति समाज की एक इकाई है, लेकिन जब वह समूह में परिवर्तित होता है तो समाज कहलाता है। समाज में इतनी विविधताएं होती हैं, जिनके होते हुए कोई कल्पना नहीं कर सकता कि समाज प्रेम-प्यार, भाईचारे, आपसी सौहार्द और सद्भावना से रहता होगा। इसका कारण है भगवान राम, जिनके चरित्र पर भारत की लगभग सभी भाषाओं और बोलियों में रामायण लिखी जा चुकी है।
इसी सामाजिक समरसता की बड़ी उदाहरण है, अहमद बख्श थानेसरी की हरियाणवी 'रामायणÓ। अहमद बख्श थानेसरी का जन्म 1850 में हुआ। सांग कला अहमद बख्श का व्यवसाय न होकर शौक था। उन्होंने रामायण, जयमल फत्ता, गूगा चैहान, सोरठ, चंद्रकिरण, कृष्ण लीला और नवलदे सरस सांगों का सर्जन एवं मंचन किया। अहमद बख्श थानेसरी कृत 'रामायण' के संपादक बालकृष्ण मुजतर थे। अहमद बख्श थानेसरी का हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। वह ज्योतिषशास्त्र में भी सिद्धहस्त थे। हालांकि उनकी 'रामायण' देवनागरी लिपि में रचित है, किंतु हरियाणवी बोली पर आधारित है। राज्य में दादा लख्मी चंद समेत कई हस्तियां ऐसी हुई, जिन्होंने सांग के जरिए आपसी समरसता बढ़ी।
हरियाणवी लोगों में सामाजिक समरसता कूट-कूट कर भरी
हरियाणा साहित्य अकादमी ने इसे 1983 में प्रकाशित किया था। 1857 की क्रांति का श्रीगणेश भी हरियाणा के अंबाला छावनी से हुआ था। जब-जब देश पर संकट आया, हरियाणा के वीर बांकुरे अपना बलिदान देने से पीछे नहीं हटे। हरियाणवी समाज में वीर भावना के साथ-साथ सामाजिक समरसता की भावना कूट-कूट कर भरी हुई है। हरियाणवी समाज को छत्तीस बिरादरी का समाज कहा जाता है। हरियाणवी समाज में आपसी रिश्तों मजबूती इतनी है कि सब लोग दादा, ताऊ, चाचा, भाई, बहन, दादी, ताई और चाची को इन्हीं संबोधन से बुलाते हैं, भले ही वह किसी भी जाति के लोग हों। स्वर्ण जाति के लोगों द्वारा दलित जाति के लोगों के लिए भी इन्हीं संबोधन का इस्तेमाल किया जाता है।
जाट आरक्षण आंदोलन में भी नहीं टूटा भाईचारा
हरियाणा में पिछले दिनों जाट आरक्षण आंदोलन हुआ, लेकिन समाज के भाईचारे पर कोई विपरीत असर नहीं पड़ा। प्रदेश में आपसी भाईचारे, प्रेम प्यार, सद्भावना और सामाजिक समरसता को बरकरार रखने के लिए सर्व समाज के प्रतिष्ठित लोगों और साधु संन्यासियों द्वारा सद्भावना सम्मेलन किए गए। दोबारा फिर हरियाणा इस बात का साक्षी बना कि यहां के मेहनतकश लोग छल-प्रपंच और प्रतिद्वंदिता से कोसों दूर हैं।