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Good News : पानीपत के उद्यमियों की रंग लाई मेहनत, रंग रसायन में चीन को बड़ा झटका

रंग रसायन यानी डाइज इंडस्‍ट्री में भारत अब आत्‍मनिर्भर बन चुका है। नए-नए प्लांट लगने से डाइज केमिकल पोलिस्टर यार्न का पानीपत हब बना। टेक्सटाइल का कारोबार बढ़ा दिया है। अपने देश में बना केमिकल सस्ता पड़ता है चीन से आयात अब महंगा।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Sun, 13 Jun 2021 06:01 AM (IST)Updated: Sun, 13 Jun 2021 06:01 AM (IST)
पानीपत टेक्‍सटाइल नगरी के उद्यमियों ने कमाल कर दिया।

पानीपत, [महावीर गोयल]। आत्मनिर्भर भारत। पानीपत के उद्यमियों की मेहनत की बदौलत हम इसी राह पर चल भी रहे हैं। पानीपत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री ने धागे की रंगाई के लिए रंग की मांग बढ़ाई तो देश की फैक्ट्रियों ने इनका उत्पादन बढ़ा दिया। इसका असर ये हुआ कि चीन से निर्भरता पूरी तरह से खत्म हो गई। अब तो रंग रसायन का निर्यात भी करने लगे हैं।

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दरअसल, गुजरात के सूरत और अहमदाबाद में बड़े स्तर पर रंग रसायन का उत्पादन होता है। पानीपत में मिंक, पोलर कंबल और थ्रीडी चादर का उत्पादन बढ़ गया तो प्रिंटिंग के लिए रंग की मांग बढ़ी। प्रति महीने एक हजार टन केमिकल की मांग रहती है। सूरत और अहमदाबाद में उत्पादन बढऩे से चीन से वही केमिकल महंगा पडऩे लगा। येलो ब्राइट केमिकल जो पानीपत में 220 रुपये किलो मिल जाता है, वही चीन से 240 रुपये पड़ता है।

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केन में रखा केमिकल, जिससे धागा रंगा जाएगा, चादर पर प्रिंटिंग की जा सकेगी।

इसी तरह ब्रिलियंट ब्लू यहां 2800 रुपये प्रति किलो है, जो चीन से 3200 रुपये मिल रहा है। पानीपत में केमिकल का कारोबार करने वालों की संख्या बढ़ रही है। अमृतसर, लुधियाना, सूरत, कोयम्बटूर, भीलवाड़ा, भदोई, बनारस टेक्सटाइल उत्पादन के घर माने जाते हैं। पानीपत अब इन शहरों को पीछे छोडऩे की राह पर है। टेक्सटाइल इंडस्ट्री में तेजी है। 2008-09 से पानीपत ने टेक्सटाइल क्षेत्र में विकास की रफ्तार पकड़ी है।

पोलर कंबल ने बनाया पानीपत को कंबल का हब

लुधियाना के पोलर कंबल ने पानीपत के कंबल की राह बिगाड़ दी। पहले यहां रैग्स से मोटा कंबल बनता था। 2008-09 में यहां पोलर कंबल के प्लांट लगे। पोलर के बाद मिंक कंबल बनना शुरू हुआ। उसके थ्रीडी चादर बनने लगी। इनमें पोलियस्टर का धागा लगता है। पूरे देश में पोलियस्टर यार्न की खपत सबसे अधिक पानीपत में होने लगी। अब मिंक का नया वर्जन कलाउडी, फ्लैनो कंबल के प्लांट भी पानीपत में लग गए हैं। चीन से कंबल आना बंद हो गया है।

पाइपलाइन में 25 से अधिक प्लांट

मिंक कंबल और थ्रीडी चादर के पानीपत में 25 से अधिक प्लांट लगने जा रहे है। केमिकल और डाइज की और अधिक खपत यहां बढऩे जा रही है। पानीपत में हर वर्ष डाइज केमिकल का कारोबार 1000 करोड़ से अधिक हो गया है। यहां 250 कारोबारी रंग केमिकल का काम करते हैं।

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पहले चीन पर थे निर्भर

डाइज एंड केमिकल ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रधान संजीव मनचंदा ने बताया कि अपने बलबूते पानीपत के कारोबारियों ने टेक्सटाइल ग्रोथ का ग्राफ बढ़ा दिया है। तीन साल पहले तक डाइज एंड केमिकल के मामले में हम चीन पर निर्भर थे। वर्तमान में चीन से कोई डाइज एंड केमिकल नहीं आ रहा। मिंक कंबल, फ्लैनो, कलाउडी और थ्रीडी चादर बनाने में भी हम आत्मनिर्भर हो चुके हैं।

इसलिए केमिकल का महत्व

पूरी टेक्सटाइल इंडस्ट्री डाई पर निर्भर करती है। धागों को अगर रंगीन नहीं किया जाएगा तो नए-नए डिजाइन नहीं बन सकेंगे। सो, डाई इंडस्ट्री भी तेजी से आगे बढ़ रही है। एक तरह से अगर डाई इंडस्ट्री मजबूत नहीं होगी तो टेक्सटाइल इंडस्ट्री भी आगे नहीं बढ़ सकेगी।

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