कपालमोचन में आए थे गुरु नानक देव जी, दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने दिया था प्रकाश पर्व का हुकम
गुरु नानक देव जी 1584 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन यमुनानगर के कपालमोचन में आए थे। दसवें गुरु गोबिंद सिंह ने उनका प्रकाश पर्व मनाने का हुकम दिया था। तभी से कार्तिक पूर्णिमा के दिन कपालमोचन में श्रद्धालु आते हैं।
यमुनानगर, जागरण संवाददाता। वर्ष 1584 में सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी भी कपालमोचन मेले में आए थे। उन्होंने इसी जगह पर संगत को उपदेश भी दिया था। देश के जिस भी हिस्से में मेले होते थे या फिर लोग जहां पर ज्यादा जुटते थे, गुरु नानक देव जी उस जगह पर ज्यादा जाते थे। क्योंकि प्रवचन के लिए वहां लोगों की भीड़ आसानी से जुट जाती थी। जब गुरु नानक देव कपालमोचन में आए थे, उस दिन कार्तिक पूर्णिमा थी। कपालमोचन में गुरु नानक जी का प्रकाश उत्सव मनाने का हुकम गुरु गोबिद सिंह जी ने दिया था। कार्तिक पूर्णिमा पर मेले में स्नान करने के लिए कपालमोचन में लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं।
कपालमोचन से की थी सिरोपा देने की शुरुआत
कपालमोचन से ही गुरु नानक देव जी ने सम्मान के रूप में सिरोपा देने की शुरुआत की गई थी। गुरु नानक देव का मानना था कि जो लोगों के लिए अच्छा व साहसिक काम कर रहा है उसका सम्मान भी होना चाहिए। इसलिए जब किसी को सिरोपा भेंट करते हैं तो उसकी लंबाई सिर से पांव तक होती है। तब से इसे सिरोपा कहा जाने लगा। देश में किसी भी स्थान पर जहां कार्तिक पूर्णिमा, एकादशी, द्वादशी व अमावस्या व अन्य अवसरों पर जहां धार्मिक कार्यक्रम होता था तो वहां पर गुरु नानक देव मानवता व भाईचारे का संदेश देने के लिए जाते थे।
लाखों दीप जलाकर करते हैं पूजा अर्चना
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर देश के विभिन्न प्रदेशों से लाखों श्रद्धालु हर साल कपालमोचन में सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी का प्रकाशोत्सव मनाने पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं के द्वारा सबसे पहले कपालमोचन सरोवर, ऋण मोचन सरोवर, सूरजकुंड सरोवर व गुरुद्वारा के सरोवर में स्नान कर सरोवरों के किनारे दीपदान कर पूजा अर्चना की जाती है। पंचभीखी स्नान से शुरू हुए मेले का आयोजन पांच दिन चलता है।
गुरु गोबिंद सिंह रुके थे 52 दिन
कपालमोचन में सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज भंगानी साहिब का युद्ध जीतने के बाद 52 दिन तक रुके थे। गुरु गोबिंद सिंह ने कपालमोचन व ऋणमोचन में स्नान कर अपने अस्त्र-शस्त्र धोए थे। उन्होंने कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुरु नानक देव के पर्व गुरु पर्व को मनाने वालों की सारी कामनाएं पूरी होने का वरदान दिया। जिस कारण कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु आकर गुरुद्वारा में गुरुपर्व मनाते है। गुरु गोबिंद सिंह पहली बार इस स्थान पर विक्रमी संवत 1742 में आए थे। उसके बाद संवत 1746 में भंगानी का युद्ध जीतकर वापसी में यहां 52 दिनों तक रुके।
गुरुद्वारा पहली एवं दसवीं पातशाही के मैनेजर नरेंद्र सिंह ने बताया कि गुरु गोबिंद सिंह ने ही पवित्र सरोवरों की बेअदबी करने वालों पर पाबंदी लगाई। यहां संवत 1584 में गुरु नानक देव जी हरिद्वार से आते हुए कुछ दिनों के लिए रुके थे। गुरु गोबिंद सिंह ने सिख संगत को हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा को गुरु नानक देव जी का प्रकाशोत्सव मनाने का हुकम जारी किया, ताकि इस स्थान पर गुरु नानक देव जी के आने की याद को ताजा रखा जा सके।