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चौंकाने वाला सच, जमीन एक मरला भी नहीं, अनुदान मांग लिया 20 एकड़ का

पराली से बंडल बनाने की योजना में हेराफेरी करने का चौंकाने वाला सच सामने आया है। मामला कुरुक्षेत्र के इस्‍माईलाबाद का है। प्रदेश सरकार की पराली से बंडल बनाने की योजना के जरिए 20 एकड़ का अनुदान मांगा गया जबकि सच हैरान करने वाला था।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Tue, 29 Dec 2020 02:13 PM (IST)Updated: Tue, 29 Dec 2020 02:13 PM (IST)
चौंकाने वाला सच, जमीन एक मरला भी नहीं, अनुदान मांग लिया 20 एकड़ का
पराली से बंडल बनाने की योजना में हेराफेरी।

पानीपत/कुरुक्षेत्र, जेएनएन। एक मरला जमीन नाम नहीं और अनुदान मांग लिया 20 एकड़ का। ऐसे मामले प्रदेश सरकार की पराली से बंडल बनाने की योजना में सामने आ रहे हैं। ऐसे लोगों का फसल पंजीकरण तक नाम नहीं है। ऐसे में अनुदान में पेंच फंसना संभव है। अब इसके विकल्प तलाशे जा रहे हैं।

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ठेके पर जमीन लेकर काश्त करने वालों को अनुदान पाने के लिए कई प्रकार की जुगत लगानी पड़ रही है। ऐसे लोगों ने पहले पराली के बंडल बनवा लिए। इसके बाद सरकार ने प्रति एकड़ एक हजार अनुदान देने की घोषणा कर दी। इन लोगों ने बंडल बनाने वाली एजेंसी से अपने नाम के बिल बनवा लिए। यही नहीं कृषि विभाग के पास आवेदन सहित अन्य दस्तावेज जमा करवा दिए।

विभाग ने जब दस्तावेज पटवारी के पास भेजे तो सामने आया कि काफी आवेदकों के नाम जमीन ही नहीं है। यही नहीं ऐसे लोगों के नाम फसल पंजीकरण तक नहीं है। ऐसे में अनुदान को लेकर पेंच फंस गया है। हालत यह है कि जमीन मालिक के नाम और बंडल बनाने का बिल काश्तकार के नाम पर काटा गया।

यह मामला काश्तकार के साथ साथ कई विभागों के लिए परेशानी का सबब साबित हो रहा है। कृषि विभाग के अधिकारी शपथ पत्र साथ लगाकर बीच का रास्ता निकाल रहे हैं। मगर काफी जमीन मालिक शपथ पत्र देने को ही तैयार नहीं हैं। इसका हल किसी के भी पास नहीं है।

विभागीय पोर्टल ने किया वंचित

ऐसे भी लोग हैं जो कि विभागीय पोर्टल की गलती का खामियाजा भुगत रहे हैं। इनमें ऐसे लोग तक शामिल हैं जो कि खुद पराली के बंडल बनाने के कारोबारी हैं। इनमें शामिल खजान नैन ने बताया कि उन्होंने खुद की दस एकड़ जमीन में पराली के बंडल बनाए। अब अनुदान केवल चार एकड़ का मिलेगा। कृषि विभाग के अनुसार पोर्टल पर फसल पंजीकरण ही केवल चार एकड़ का है। ऐसे अनेक किसान हैं जिनका पंजीकरण ही सही नहीं हो पाया और अब अनुदान ना मिलने का दंश झेल रहे हैं। किसानों की मांग है कि सरकार को इसका विकल्प तलाशना चाहिए।


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