मन और बुद्धि के मिलन से मिलते हैं भगवान: संतोषी माता
पड़ाव मोहल्ला स्थित संतोषी माता मंदिर के वार्षिकोत्सव में प्रवचन करते हुए महामंडलेश्वर संतोषी माता ने श्रीमद् भागवत गीता के 12वें अध्याय के सार से सभी को रूबरू किया।
जागरण संवाददाता, समालखा :
पड़ाव मोहल्ला स्थित संतोषी माता मंदिर के वार्षिकोत्सव में प्रवचन करते हुए महामंडलेश्वर संतोषी माता ने श्रीमद् भागवत गीता के 12वें अध्याय के सार से सभी को रूबरू किया। उन्होंने कहा कि भगवान के दर्शन के लिए मन और बुद्धि की एकाग्रता जरूरी है। बारहवां अध्याय भक्तियोग पर आधारित है। भगवान कृष्ण के ये संदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं पूरे विश्व के लिए है। मन और बुद्धि को नियंत्रण में रखने वालों को हमेशा सफलता मिलती है।
उन्होंने कहा कि मन और बुद्धि भगवान की मौलिक देन है। चंचल मन मुक्ति तो बुद्धि ज्ञान व विचार को दर्शाता है। मन में उपासना से भगवान भक्तों से जुड़े रहते हैं। मन से कर्म और बुद्धि से विचार का प्रवाह होता है। कर्म अंधा और विचार पंगु होता है। ज्ञान से विचारों को गति मिलती है और लोग अच्छे कर्म करने लगते हैं। उन्होंने कहा कि विचार से किया गया कर्म मनुष्य के लिए हमेशा सुखदायक होता है। बगैर विचार के जो काम किए जाते हैं वह दुखदायक सिद्ध होते हैं। इस अवसर पर संतोषी माता मंदिर के प्रधान नंद किशोर सिघल, सतनारायण बंसल, विजय गुप्ता, पवन सिगल, आत्मप्रकाश नंदवानी, कमलेश गर्ग, रेणू गोयल, सुधीर गुप्ता आदि मौजूद थे।