Gita Jayanti Mahotsav 2021: कुरुक्षेत्र गीता महोत्सव में पश्मीना शाल के दीवाने, खासियत जानकर रह जाएंगे दंग
Gita Jayanti Mahotsav 2021 कुरुक्षेत्र गीता जयंती महोत्सव में कश्मीरी पश्मीना शाल शिल्प मेले में है। यूरोप व मुस्लिम देशों में लोगों की खास पसंद है पश्मीना शाल। भारत में शाल का वजन 400 ग्राम है। जानिए कश्मीरी पश्मीना शाल की खासियत।
कुरुक्षेत्र, जागरण संवाददाता। कश्मीरी पश्मीना शाल का भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बेहद क्रेज है। यूरोप व मुस्लिम देशों में पश्मीना शाल खासतौर पर पसंद की जाती है। कोरोना काल के दौरान पश्मीना शाल के शिल्पकारों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा। न तो उनका उत्पाद विदेश में निर्यात हो पाया और न ही देश में लगने वाले शिल्प मेलों में प्रदर्शित हुआ। अब शिल्पमेलों की शुरुआत हुई और शिल्पकारों में नुकसान की भरपाई की नई उम्मीद भी जगी है।
अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में कश्मीरी पश्मीना शाल के अच्छे खासे कद्रदान हैं। पश्मीना शाल लेकर पहुंचे शिल्पकार मुस्ताक अहमद व जहूर का कहना है कि देश भर में आधा दर्जन शिल्प मेलों में उनका हुनर प्रदर्शित हुआ है। दो साल के बाद शिल्प मेलों की शुरुआत हुई है। इसकी शुरुआत दिल्ली के प्रगति मैदान के बाद अब अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव से हो रही है।
अब राजस्थान के उदयपुर, गुजरात व अन्य प्रदेशों में लगने वाले शिल्प मेलों में भी वे जाएंगे। राष्ट्रीय अवार्डी मुस्ताक अहमद का कहना है कि कश्मीरी पश्मीना शाल को शिल्प मेलों में खूब पसंद किया जाता है। देश में बिकने वाली शाल का वजन 400 से 500 ग्राम के बीच होता है। अंगूठी के बीच से पूरी शाल निकल जाती है।
एक साल में बन कर तैयार होती है एक पश्मीना शाल
शिल्पकार मुस्ताक अहमद ने बताया कि पश्मीना शाल को बनाने में एक साल का समय लगता है। इसे बनाने के लिए पहाड़ी जानवरों के कांटों में फंसे बालों का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें प्रमुख रूप से याक, भेड़-बकरी खरगोश व अन्य जानवर के बाल होते हैं। ये जानवर पहाडों की चरगाह में जाते हैं और उनके बाल पेड़ों की झांडियों में फंस जाते हैं, जिन्हें कारीगर एकत्रित करते हैं और फिर उन्हें बारीकी से काता जाता और फिर पश्मीना शाल बनती।
कोरोना में उठाना पड़ा बहुत नुकसान
शिल्पकार जहूर का कहना है कि कोरोना काल में शिल्पकारों का बहुत नुकसान हुआ है। उन्होंने अपने कारोबार को चलाने के लिए 40 लाख का ऋण लिया हुआ है। उनके साथ तकरीबन 600 कारीगर भी जुड़े हुए हैं, जोकि पश्मीना शाल से लेकर कई तरह की कारीगरी करते हैं। कोरोना के चलते उन्हें ऋण चुकता करने और शिल्पकारों काे वेतन देने में परेशानी का सामना करना पड़ा।