आर्थिक तंगी ने पहलवान बनने से रोका पिता का रास्ता, बेटों ने लगा दी पदकों की झड़ी
आर्थिक तंगी से कुराना गांव के भीम सिंह पहलवान नहीं बन पाए तो बेटों ने पदकों की झड़ी लगा दी। भीम सिंह के बेटे मोनू और सोनू पहलवान है।
पानीपत, [विजय गाहल्याण]। कुराना गांव के किसान भीम सिंह जागलान कुश्ती में पदक जीतना चाहते थे। आर्थिक तंगी की वजह से आगे नहीं बढ़ सके। बड़े बेटे सोनू व छोटे मोनू में प्रतिभा देखी को इन्हें पहलवान बनाने की ठान ली। दोनों को सोनीपत के खरखौदा स्थित प्रताप स्कूल में कुश्ती अभ्यास के लिए भेज दिया। खेती करने के साथ-साथ दूध बेचा। बेटों को खुराक की कमी नहीं आने दी। सोनू ने पिता के सपनों का साकार किया और राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदकों की झड़ी लगी दी। सोनू अब नेवी में हवलदार हैं। मोनू ने भी 4 से 6 मार्च को हिमाचल प्रदेश के मंडी में हुई जूनियर नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में 87 किलोग्राम वर्ग में स्वर्ण पदक जीता। उनका चयन जूनियर एशियन कुश्ती चैंपियनशिप के लिए हुआ है।
कंधे मे चोट लगी थी, डॉक्टर ने मुकाबले लडऩे से किया था मना
मोनू ने बताया कि 6 जनवरी को अभ्यास करते हुए कंधे में चोट लग गई थी। इसी वजह से राज्यस्तरीय कुश्ती प्रतियोगिता में भाग नहीं ले पाया। डॉक्टर ने सलाह दी थी कि तीन महीने आराम करो, नहीं तो कंधे में ज्यादा तकलीफ हो सकती है। बड़े भाई मोनू ने खेलने के लिए प्रेरित किया। ट्रायल में सोनीपत के अंकित को हराकर प्रदेश के कुश्ती दल में शामिल हुआ। चोटिल होने के बावजूद नेशनल प्रतियोगिता में पांच पहलवानों को पटखनी दे स्वर्ण पदक जीता।
भाई को देख वुशू छोड़ बना पहलवान
मोनू ने बताया कि उसने वुशू में राज्य में चार स्वर्ण और राष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता में दो स्वर्ण पदक जीते। बड़े बाई सोनू को कुश्ती करते देख वुशू छोड़ दी। कुश्ती का अभ्यास किया। तकनीक में परेशानी हुई। कोच ओमप्रकाश दहिया, सुनील हुड्डा और देवेंद्र दहिया ने कड़ा अभ्यास कराकर खामियों को दूर कराया। पिता भीम ङ्क्षसह गांव के दूध व घी देने अखाड़े आते हैं। मां बिमला देवी ने भी साथ दिया। इन्हीं की वजह से उसने कामयाबी हासिल की।
मैट पर मोनू की सफलता
साई नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक।
जूनियर नेशनल प्रतियोगिता में एक स्वर्ण और एक कांस्य पदक।
सब जूनियर नेशनल स्पर्धा में कांस्य पदक।
खेल महाकुंभ में स्वर्ण पदक।