सोमवती अमावस्या पर पिंडारा तीर्थ में पहुंचे श्रद्धालु, महाभारत युद्ध के बाद यहां पांडवों ने किया था पिंडदान
सोमवती अमावस्या पर श्रद्धालुओं ने पिंडदान करके आस्था की डूबकी लगाई। आठ महीने से यहां पर श्रद्धालुओं के आने पर रोक लगी थी। लेकिन सोमवती अमावस्या के अवसर पर यहां पर श्रद्धालु पहुंचे। श्रद्धालुओं ने स्नान और दान किया।
पानीपत/जींद, जेएनएन। सोमवती अमावस्या पर गांव पांडू पिंडारा तीर्थ पर लोगों ने पिंडादान करके तालाब में आस्था की डूबकी लगाई। कोरोना के चलते आठ माह से श्रद्धालुओं के तीर्थ पर जाने पर रोक लगाई हुई थी। अमावस्या के दिन प्रशासन वहां पर सुरक्षा कर्मियों को तैनात कर देता था, इसके चलते श्रद्धालुओं ने बिना स्नान किए हुए ही वापस लौटना पड़ता था। इस बार की अमावस्या पर प्रशासन ने श्रद्धालुओं के आने पर रोक नहीं लगाई। इसके चलते रविवार शाम को ही काफी श्रद्धालु तीर्थ पर पहुंच गए और रात को कीर्तन किया।
इसके बाद पितृ की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया और उसके बाद आस्था की डूबकी लगाई। पिंडतारक तीर्थ के संबंध में किवदंती है कि महाभारत युद्ध के बाद पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पांडवों ने यहां 12 सालों तक सोमवती अमावस्या की प्रतीक्षा में तपस्या की। बाद में सोमवती अमावस्या के आने पर युद्ध में मारे गए स्वजनों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया। तभी से यह माना जाता है कि पांडू पिंडारा स्थित पिंडतारक तीर्थ पर पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है। महाभारत काल से ही पितृ विसर्जन की अमावस्या, विशेषकर सोमवती अमावस्या पर यहां पिंडदान करने का विशेष महत्व है। यहां पिंडदान करने के लिए विभिन्न प्रांतों से श्रद्धालु आते हैं।
गांव पांडू पिंडारा तीर्थ में पूजन करते श्रद्धालु।
जमकर की खरीदारी
पिंडारा तीर्थ पर सोमवती अमावस्या पर पहुंचे श्रद्धालुओं ने जमकर खरीददारी की। तीर्थ पर जगह-जगह लोगों ने सामान बेचने के लिए दुकानें लगाई हुई थी। जिस पर बच्चों तथा महिलाओं ने खरीददारी की। बच्चों ने जहां अपने लिए खिलौने खरीदे तो वहीं बड़ों ने भी घर के लिए सामान खरीदे।
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