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ध्वज यात्रा निकालकर चुलकाना धाम पहुंचे श्रद्धालु

कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए वृंदावन ट्रस्ट ने एकल यात्रा का आयोजन किया। छह एकड़ में खुले क्षेत्र में चुलकाना सरपंच मदन लाल के सहयोग से खुली डोली व्यवस्था की गई।

By JagranEdited By: Published: Fri, 26 Mar 2021 06:58 AM (IST)Updated: Fri, 26 Mar 2021 06:58 AM (IST)
ध्वज यात्रा निकालकर चुलकाना धाम पहुंचे श्रद्धालु
ध्वज यात्रा निकालकर चुलकाना धाम पहुंचे श्रद्धालु

जागरण संवाददाता, पानीपत-समालखा : मेला ही नहीं.. नीले घोड़े पर पर चढ़कर मेरे श्याम आए हैं, टूट गई थी जिनकी आस इस दुनिया में बनकर उनका सहारा साक्षात सरकार आए हैं। ये शब्द चुलकाना धाम की यात्रा पर जाने वाले हर श्याम प्रेमी की जुबान पर थे। कड़े संघर्ष के बाद उन्हें चुलकाना धाम की यात्रा की स्वीकृति मिली। हर कोई हारे के सहारे का गुणगान कर रहा था। वीरवार एकादशी पर वृंदावन ट्रस्ट पानीपत द्वारा नवमी चुलकाना धाम यात्रा आयोजित की गई।

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कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए वृंदावन ट्रस्ट ने एकल यात्रा का आयोजन किया। छह एकड़ में खुले क्षेत्र में चुलकाना सरपंच मदन लाल के सहयोग से खुली डोली व्यवस्था की गई। यहां चुलकाना श्याम प्रेमियों को एक-एक करके 2 घंटे तक ध्वज बांटे गए। वृंदावन ट्रस्ट की ओर से यात्रा का शुभारंभ नारियल फोड़कर सूर्योदय के साथ किया गया मुख्य अतिथि मोहनलाल सिगला ने यात्रा का शंख बजाकर शंखनाद किया। इसके बाद पक्षी अपने घरों से निकले और श्याम प्रेमी एकल यात्रा के लिए रवाना होने शुरू हो गए ढोल की थाप और डीजे की धुन श्याम भजनों के गुणगान रास्ते पर चलते रहे। जब जिसका मन किया वह नाचा भी।

वृंदावन ट्रस्ट के संरक्षक विकास गोयल ने कहा कि यह यात्रा एक नया एकल एकात्म का अनुभव दे कर गई। जब व्यक्ति अकेला चला तो श्याम प्रभु का सिमरन किया भजन किया और उनकी छवि को मन में धारण किया। यात्रा का एकल अनुभव सभी के लिए स्मृतिकारी रहा। कार्यक्रम में वृंदावन ट्रस्ट के संजय गोयल नवीन गर्ग, आशीष गर्ग, जोगिदर कुंडू, बलदेव गांधी, गौरव बंसल, हरीश बंसल, सुनील रावल, राहुल गुप्ता, प्रिस जैन, पुनीत गर्ग, मुकेश गोयल, दिनेश गर्ग, हितेश जैन मौजूद रहे। बाबा का गुणगान करते हुए पहुंचे

दो दिवसीय मेले में पहले दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालु चुलकाना धाम स्थित खाटू श्याम मंदिर में पहुंचे। समालखा शहर से विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं द्वारा ध्वजा यात्रा निकाली गई। मंदिर को फूलों व लड़ियों से सजाया गया था। सुबह होते ही मंदिर में पूजा अर्चना शुरू हो गई थी।

आस्था में नहीं कमी

कोरोना महामारी के बावजूद आस्था में कोई कमी नहीं दिखाई दी। श्याम बाबा के जयकारों से चुलकाना धाम गूंज उठा। उड़े-उड़े रे गुलाल बाबा तेरी नगरी सहित विभिन्न भजनों पर श्याम के भक्त नाचते हुए दिखे।

ग्रामीणों ने किया सुरक्षा का इंतजाम

इस बार मेले में सुरक्षा व्यवस्था की कमान गांव वालों ने ही संभाल रखी है। निवर्तमान सरपंच मदन शर्मा ने बताया कि इस बार ट्रैफिक व्यवस्था को कंट्रोल करने के लिए गांव के दो सौ युवकों की टीम बनाई गई। विभिन्न प्वाइंटों पर दस-दस लड़कों को 20 जगह पर तैनात किया गया। पार्किंग स्थल से मंदिर तक पहुंचाने के लिए गांव वालों द्वारा 45 ई-रिक्शा का इंतजाम किया गया।

पांच वर्ष से यात्रा में आ रहे

सोनीपत के राजीव ने बताया कि वह 5 वर्ष से लगातार श्याम बाबा के दर्शन करने आ रहे हैं। भगवान ने उनकी सभी मन्नतें पूरी की हैं। रामनगर से आए श्रद्धालु अशोक कुमार ने बताया कि वह अपने परिवार सहित पहली बार श्याम बाबा के दर्शन करने आए हैं।

महाभारत से जुड़ा है चुलकाना धाम

चुलकाना धाम का संबंध महाभारत से जुड़ा है। भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह दैत्य की पुत्री कामकन्टकटा के साथ हुआ। इनका पुत्र बर्बरीक था। बर्बरीक को महादेव एवं विजया नामक देवी का आशीर्वाद प्राप्त था। उनकी आराधना से बर्बरीक को तीन बाण प्राप्त हुए, जिनसे वह सृष्टि तक का संहार कर सकते थे। बर्बरीक की माता को संदेह था कि पांडव महाभारत युद्ध में जीत नहीं सकते। पुत्र की वीरता को देख माता ने बर्बरीक से वचन मांगा कि तुम युद्ध तो देखने जाओ, लेकिन अगर युद्ध करना पड़ जाए तो तुम्हें हारने वाले का साथ देना है।

मातृभक्त पुत्र ने माता के वचन को स्वीकार किया, इसलिए उनको हारे का सहारा भी कहा जाता है। माता की आज्ञा लेकर बर्बरीक युद्ध देखने के लिए घोड़े पर सवार होकर चल पड़े। यहां पर पांडव जीत रहे थे। तब उनको कौरवों की तरफ से लड़ना पड़ता। इससे पहले बर्बरीक कुरुक्षेत्र पहुंचते, श्रीकृष्ण ने उन्हें बीच में रोक लिया और उनसे उनका शीश दान में मांग लिया। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में उनको हारे का सहारा, खाटू वाले श्याम बाबा के नाम से पूजा जाएगा। चुलकाना से ही उन्होंने युद्ध देखा।


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