यमुनानगर में सर्व धर्म एकता और सद्भावना का प्रतीक है डेरा बाबा चाय वाला गुरुद्वारा, जानें विशेषता
डेरा बाबा चाय वाला करीब एक एकड़ में बना हुआ है। बाबा दीना नाथ ने जहां तपस्या की थी वह धुना आज भी है। यह धुना हर समय प्रचंड रहता है। चाय का भंडारा लगातार चलता है। धुने के साथ ही गुरुद्वारा बना है।
यमुनानगर, जागरण संवाददाता। यमुनानगर के सोम के तट व यमुना नदी के समीप स्थित डेरा बाबा चाय वाला गुरुद्वारा फतेहगढ़। एक ऐसा धाम जहां जो सर्व धर्म एकता व सद्भावना का प्रतीक है। यहां न केवल सिख बल्कि हिंदू, मुस्लिम व सिख समाज के लोग भी आकर नतमस्तक होते हैं। यह धाम करीब 150 वर्ष पुराना है। यहां न केवल आसपास गांवों से बल्कि दूर-दराज से भारी संख्या में श्रद्घालु पहुंचते हैं। बाबा दीना नाथ की तपोस्थली पर 24 घंटे चाय का भंडारा चलता है।
डेरा के बारे में यह जानिए
संत बाबा गजेंद्र सिंह ने बताया कि गुरु नानक देव के बड़े साहिबजोदे बाबा चंद्र जी उदासीन महाराज के संप्रदा में से बाबा दीना नाथ पौंटा साहिब के बैराल पिंड से चलकर यहां आए थे। उन्होंने ही इस धरती को भाग लगाए। महापुरुष व ब्रह्मज्ञानी थे। उनका वचन कभी निरर्थक नहीं जाता था। बाबा दीना नाथ करीब 50 वर्ष यहां रहे। उनके बाद गांव के ही सेवादार बाबा बालक दास और उनके चेले बाबा पृथ्वी दास ने गदी संभाली। बाबा पृथ्वी दास सरहिंद पंजाब से थे। उनके बाद कई साधु महात्मा आए। बाबा दीना नाथ की कृपास से अब 30 वर्ष से वे ही इस धाम की देखभाल कर रहे हैं। साध संगत का पूर्ण सहयोग रहता है।
बाबा दीना नाथ की तपोस्थली के प्रति गहन आस्था
डेरा करीब एक एकड़ में बना हुआ है। बाबा दीना नाथ ने जहां तपस्या की थी, वह धुना आज भी है। यह धुना हर समय प्रचंड रहता है। चाय का भंडारा लगातार चलता है। धुने के साथ ही गुरुद्वारा बना है। बाबा गजेंद्र सिंह बताते हैं कि इस स्थान पर चारों वर्णों के लोग पहुंचकर पूजा अर्चना करते हैं। क्षत्रिय, ब्राह्मण, शुद्र व वैश सभी वर्णों के लोग बराबर बैठते हैं। सभी मिलकर भोजन तैयार करते हैं। साथ बैठक भोजन खाते हैं। सभी को एक समान समझा जाता है। इस धार्मिक स्थल के प्रति क्षेत्र के लोगों की गहन आस्था है। फतेहगढ़ निवासी विनोद कुमार, संदीप कुमार, अमित, रमेश, मांगा राम, नीरज, परिक्षित व पारस का कहना है कि वह नियमित डेरे पर पूजा अर्चना के लिए जाते हैं। समय-समय पर सेवा भी करते हैं।
दिया जाता है सभी को बराबर उपदेश
संत बाबा गजेंद्र सिंह के मुताबिक इस स्थान की विशेषता यही है कि यहां चारों वर्णों को बराबर उपदेश दिया जाता है। महाराज गुरु नानक देव के वचनों को पूरी तरह निभाया जा रहा है। गुरु नानक देव जी कहते थे कि हम सब एक परमपिता परमात्मा की संतान हैं। उनका कहना है कि धुने पर माथा टेककर सभी मनोकामना पूर्ण होती है। उन्होंने बताया कि यहां आसपास के गांवों के साथ-साथ दूर-दराज से भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। ऐसे बहुत कम स्थान हैं जहां सभी धर्मों के लोग पहुंचकर नत मस्तक होते हैं। महापुरुषों की सलाना मीठी याद में हर वर्ष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। तीन दिन तक विशेष रूप से समागम होता है। दूर दराज से रागी जत्थे व सत्संगी जन पहुंचते हैं।