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यमुना में बन रहे मौत के कुंड, भूलकर भी न जाएं यहां, पल भर में खत्‍म हो जाती जिंदगी

यमुना में मौत के कुंड। यमुनानगर करनाल और पानीपत में इस तरह के कुंड बनते जा रहे हैं। लोग इसमें समा जाते हैं। कुंड की वजह है अवैध खनन। आप भी पढ़िये कितने खतरनाक हैं ये कुंड।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Thu, 17 Sep 2020 07:35 PM (IST)Updated: Thu, 17 Sep 2020 07:35 PM (IST)
यमुना में बन रहे मौत के कुंड, भूलकर भी न जाएं यहां, पल भर में खत्‍म हो जाती जिंदगी
यमुना में बन रहे मौत के कुंड, भूलकर भी न जाएं यहां, पल भर में खत्‍म हो जाती जिंदगी

पानीपत, जेएनएन। अवैध खनन। यानी रेत का कारोबार। ये कारोबार अब रेत चुराने तक ही सीमित नहीं रहा। आम लोगों की जान भी ले रहा है। जिस जगह पर अवैध खनन होता है, वहां पर कुंड बन जाते हैं। कई बार देखने में आता है कि यमुना केवल चार फीट गहरी है। आसानी से पार हो जाएगी। जब कोई इसमें जाता है तो विशाल कुंड में धंस जाता है।

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अवैध खनन की वजह से यमुना में 40 फीट से ज्‍यादा गहराई हो जाती है। कोई बड़े से बड़ा तैराक भी इसे पार नहीं कर पाता। मौत के आगोश में चला जाता है। पानीपत में छह लोगों की जान इसी कुंड की वजह से गई।

दो वजहों से लोगों की जान आफत में

अवैध खनन के कारण यमुना नदी और नहर में खुदे गहरे कुंड मौत का कारण बन रहे हैं। कारण दो हैं। पहला यमुना में खनन से बने 40-50 फीट गहरे गड्ढे और आपात स्थिति से निपटने के लिए प्रशासन के पास गोताखोर भी व्यवस्था नहीं है।

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बड़ा कारण यह भी

प्रशासन का ध्यान बाढ़ राहत प्रशिक्षण शिविर पर होता है। हथनीकुंड बैराज से लेकर गुमथला तक विभिन्न घाटों पर इन कुंडों के कारण अकसर हादसे होते रहते हैं। गत माह कनालसी व गुमथला घाट पर नहाने के लिए पहुंचे युवकों की मौत हो गई थी। नहर और नदी में हर वर्ष डूबने वालों की संख्या 100 का आंकड़ा पार कर जाती है।

जगह-जगह बन गए कुंड

यमुना नदी में अवैध खनन भी धड़ल्ले से होता है। न केवल दिन में बल्कि रात के समय भी पोकलाइनों को चलते हुए देखा जा सकता है। कितनी गहराई से रेत निकालना है, इसका भी कोई मापदंड नहीं है। कहीं 40 फीट गहरा कुंड बना दिया तो कहीं 50 फीट। एक दो घाट पर नहीं बल्कि लगभग सभी घाटों पर ऐसा ही है। हथनीकुंड बैराज से लेकर गुमथला तक हर यमुना नदी के किनारे 123 गांव हैं। विशेष अवसरों पर पूजा अर्चना के लिए पहुंचे श्रद्धालु स्नान करने के लिए यमुना घाट पर पहुंचते हैं।

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कई-कई दिन तक नहीं मिलते शव

यमुना नदी व नहर में डूब जाने के बाद कई-कई दिन तक शव नहीं मिलता। इस बार तो प्रशासन के पास गोताखोर की भी व्यवस्था नहीं है। तीन गोताखोर थे, उनको हटा दिया गया। उसके बाद किसी की नियुक्ति नहीं हुई। आपात स्थिति में कुरुक्षेत्र से गोताखोर बुलाए जाते हैं। यमुना नदी के अलावा जिले से दो नहरें और करीब आधा दर्जन नदियां बहती हैं। डूबने की घटनाएं अकसर होती रहती हैं। शव निकालने के लिए गोताखोरों की जरूरत पड़ती है। पश्चिमी यमुना नहर, आवर्धन नहर सहित यमुना नदी में भी डूबने के मामले सामने आते रहते हैं।

गर्मियों में बेरोकटोक नहाते युवा

गर्मियों का सीजन शुरू होते ही नहाने का खेल शुरू हो जाता है। हथिनीकुंड बैराज से यमुना नदी, पश्चिमी यमुना नहर निकलती है। हमीदा हेड से आवर्धन नहर पश्चिमी यमुना नहर से करनाल होते हुए दिल्ली जा रही है। हथनीकुंड से 74 किलोमीटर नदी, नहर का क्षेत्र यमुनानगर में आता है, क्योंकि नदी में पानी कम होता है। इसलिए पश्चिमी नहर और आवर्धन नहर में सबसे ज्यादा लोग डूबते हैं। अधिक मामले तीर्थ नगर पुल और फतेहपुर पर नहाते नजर आते हैं।

यमुना नदी पार करना जोखिम भरा

करनाल के इंद्री क्षेत्र में यमुना के किनारों से अक्सर हरियाणा के हिस्से में उत्तर प्रदेश के लोग रेत चुराते हैं जिससे यमुना नदी का बहाव बदल जाता है। ऐसे में हरियाणा व यूपी के किसानों के बीच कई बार खूनी विवाद भी हो जाते हैं। यमुना क्षेत्र में खनन होने से बड़े गड्ढे भी बन जाते हैं, इनकी वजह से यमुना नदी पार करना बेहद जोखिम भरा हो जाता है। ये खतरनाक गड्ढे आए दिन लोगों की जान ले लेते हैं। वहीं, प्रशासनिक अधिकारियों का तर्क है कि यमुनानदी क्षेत्र में लगातार नजर रखी जाती है और नियमानुसार कार्रवाई भी अमल में लाई जाती है।

लगातार रेत निकालने से बनते हैं गड्ढे

गौरतलब है कि क्षेत्र के गढीबीरबल, चौगावां, चंद्राव, गढपुर, नगली, नबियाबाद समेत दर्जनों गांवों के किसान यमुनापार भी खेती करते हैं। नतीजन, उस पार के खेतों में भी किसानों को जाना पड़ता है। पानी कम होने पर लोग पैदल ही यमुनापार करते हैं जबकि ज्यादा पानी होने पर नाव का सहारा लेते हैं। कुछ लोग देसी जुगाड़ के सहारे भी सब्जी वगैरा तोड़कर इस पार लाते हैं। लेकिन यमुना नदी क्षेत्र से अंधाधुंध रेत निकालने की वजह से कई जगह बड़े गड्ढे बन गए हैं। ऐसे स्थानों पर यमुना का पानी भंवर की तरह घूम-घूमकर चलता है, जिनमें डूबकर हर साल काफी लोग हादसों के शिकार बन जाते हैं।

मालिकाना हक को लेकर होते हैं विवाद

यमुना में रेत खनन होने से यमुना की धार दूसरी ओर टक्कर मारती है और पानी उतरने पर किसानों की जमीन ढह जाती है, जिससे दोनों प्रदेशों के किसानों के बीच मालिकाना हक को लेकर अक्सर जमीनी विवाद हो जाता है। ऐसे में किसान आमने-सामने आ जाते हैं। पिछले दो-तीन वर्ष में कई बार ऐसे जमीनी विवाद सामने आ चुके हैं, जिनमें हरियाणा व यूपी के किसान आमने सामने हुए।

उभर आता है विवाद

यमुना नदी में चौगांवा, चंद्राव, गढपुर टापू, कलसौरा, गढीबीरबल, समसपुर, मुसेपुर, नबियाबाद, सैयद छपरा, जपती छपरा, नगली, डबकौली आदि दर्जनों गांवों के किसान खेतीबाड़ी करते हैं। जब नदी में बाढ आती है तो पानी का बहाव कभी यूपी और कभी हरियाणा की तरफ हो जाता है। ऐसे में जमीन के मालिकाना हक को लेकर दोनों प्रदेशों के किसान भिड़ जाते हैं। गत वर्षों में करनाल के चौगांवां व यमुनानदी के समीप के यूपी के गांवों के किसानों के बीच करीब 70 एकड़ जमीन को लेकर विवाद हो चुका है, जो काफी समय चला।

नियमित रूप से होता है खनन

कुछ जगह यमुना में नियमित रूप से अवैध खनन होता है। कई बार इस किनारे पर ज्यादा पानी बहने के कारण इधर के किसान दूसरी ओर कम ही जा पाते हैं। उनका आरोप है कि इसका फायदा उठाकर यमुना नदी से सटे यूपी के गांवों के अनेक लोग रेत चोरी करने लग जाते हैं। यमुना के इस पार से देखने पर दूसरी ओर खनन करने वाले साफ नजर आते हैं। झोटा-बुग्गी व ट्रेक्टर ट्रालियों में खनन का धंधा चलता हैं। वहीं, कुछ जगह यमुना के इसपार भी खनन का धंधा होता है।

प्रशासन रख रहा नजर

इंद्री के तहसीलदार दर्पण कांबोज का कहना है कि उनके पास कुछ समय से यमुना नदी में खनन को लेकर शिकायत नहीं आई, यदि शिकायत आती है तो नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। खनन से संबंधित मामलों के लिए खनन विभाग के अधिकारियों को तुरंत रिपोर्ट दी जाती है। प्रशासन यमुना नदी क्षेत्र में पूरी निगरानी रख रहा है।

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