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कोरोना से कैथल के सूर्यकुंड मंदिर के महंत राजेश्वरपुरी का देहांत, मंदिर में दी समाधि

सूर्यकुंड मंदिर के गद्दीनशीन बाबा महंत राजेश्वरपुरी का बुधवार को देहांत हो गया। डेरे में महंत को शाम चार बजे समाधि दी गई। महंत राजेश्वरपुरी को कुछ दिन पहले ही कोरोना हुआ था।

By Manoj KumarEdited By: Published: Wed, 09 Sep 2020 07:27 PM (IST)Updated: Wed, 09 Sep 2020 07:27 PM (IST)
कोरोना से कैथल के सूर्यकुंड मंदिर के महंत राजेश्वरपुरी का देहांत, मंदिर में दी समाधि
कोरोना से कैथल के सूर्यकुंड मंदिर के महंत राजेश्वरपुरी का देहांत, मंदिर में दी समाधि

कैथल, जेएनएन। माता गेट स्थित सूर्यकुंड मंदिर के गद्दीनशीन बाबा महंत राजेश्वरपुरी का बुधवार को देहांत हो गया। डेरे में महंत को शाम चार बजे समाधि दी गई। महंत राजेश्वरपुरी को कुछ दिन पहले ही कोरोना हुआ था। जिसके बाद वह गुरुग्राम स्थित मेदांता अस्पताल में दाखिल रहे। उन्हें पहले से ही शुगर की बीमारी थी और इलाज के दौरान लेवल बढ़ गया था। इसके बाद उन्हें रोहतक पीजीआइ में दाखिल करवाया गया। यहां कोरोना संक्रमित होने के कारण तीन दिन पहले ही उन्हें सांस लेने की समस्या आई थी। बुधवार सुबह तीन बजे उनका देहावसान हो गया। पीजीआइ से उनके पार्थिव शरीर को कैथल लाया गया और बुधवार को शाम पौने चार बजे आनन-फानन में मंदिर परिसर में समाधि दी गई। इस दौरान मुख्य गेट को बंद किया गया था। प्रशासन का कोई भी अधिकारी या पुलिस कर्मी मौजूद नहीं थे।

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बता दें कि यह मंदिर शहर का प्रमुख मंदिर है। यहां प्रत्येक वर्ष में चैत्र नवरात्र पर प्रदेश स्तरीय मेला आयोजित किया जाता है। इस बार कोरोना की महामारी के चलते इस मेले का आयोजन नहीं हो पाया था। कोरोना को लेकर सावधानियां बरतते हुए महंत को समाधि दी गई है।  

यह है मंदिर का इतिहास :

सूर्यकुंड मंदिर से देशभर के श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी है। इस मंदिर में पूजा पाठ करने के लिए प्रदेश के साथ-साथ देशभर व विदेशों से भी श्रद्धालु आते हैं। विशेष त्योहारों पर यहां मेले का भी आयोजन होता है। मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। यह कुरुक्षेत्र की 48 कोस की परिधि में आता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार महाभारत काल में ज्येष्ठ पांडव पुत्र युुधिष्ठिर ने कैथल में नवग्रह कुंडों की स्थापना की थी। इनमें से सबसे बड़ा कुंड माता गेट पर सूर्यकुंड के नाम से स्थापित किया गया था। वे यहां कुंड में स्नान करने के बाद देवी-देवताओं का पूजन करते थे। तभी से श्रद्धालु यहां पर पूजा-पाठ करते आ रहे हैं।


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