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जींद के इस गांव से मिल चुकीं रामायणकालीन ईंटें और बर्तन, पुरातात्विक संग्रहालय बनाने की मांग

जींद में गांव नचार खेड़ा से दुर्जनपुर के बीच धरोंद खेड़ा बेचिराग गांव है। धरोंद खेड़ा की 72 एकड़ जमीन अब पुरातात्विक विभाग ने अब अपने अंतर्गत ले ली है। करीब ढाई साल पहले दिल्ली के पूर्व मंत्री योगानंद शास्त्री यहां आए थे। उनकी नजर रामायणकालीन ईंटों पर पड़ी थी।

By Umesh KdhyaniEdited By: Published: Sun, 25 Jul 2021 03:31 PM (IST)Updated: Sun, 25 Jul 2021 03:31 PM (IST)
जींद के इस गांव से मिल चुकीं रामायणकालीन ईंटें और बर्तन, पुरातात्विक संग्रहालय बनाने की मांग
जींद के धरोंद खेड़ा की जमीन। जहां से रामायणकालीन धरोहर मिली थीं।

प्रदीप घोघड़ियां, जींद। जींद जिले के उचाना हलके के बेचिराग गांव धरोंद खेड़ा की 72 एकड़ जमीन को संरक्षित पुरातात्विक धरोहर घोषित किया गया है। यहां से खोदाई के दौरान मिली ईंटों और मिट्टी के बर्तनों को दिल्ली पुरातात्विक संग्रहालय में रखवाया गया है। इन ईंटों की बनावट रामायणकालीन है और ऑस्ट्रेलिया में हुए अंतरराष्ट्रीय सदन में भी यह मामला उठ चुका है।

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अब आसपास के गांवों के लोग यहां पुरातात्विक संग्रहालय या बड़ा शोध संस्थान बनाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि 72 एकड़ जमीन खाली पड़ी है और साथ लगते गांव नचार खेड़ा की भी करीब 15 एकड़ जमीन पंचायती है और पंचायत इसे यूनिवर्सिटी या कालेज के लिए देने को तैयार है। 

गांव नचार खेड़ा से दुर्जनपुर के बीच बेचिराग गांव है धरोंद खेड़ा। इस गांव में कोई रिहाइश नहीं है या यूं कहें कि इस गांव की अपनी कोई आबादी नहीं है। इसलिए इस गांव को बेचिराग कहा जाता है। लेकिन राजस्व विभाग में इसका रिकॉर्ड दर्ज होता है। धरोंद खेड़ा की 72 एकड़ जमीन अब पुरातात्विक विभाग ने अब अपने अंतर्गत ले ली है। उचाना के पूर्व विधायक उदयपुर गांव से सूबे सिंह पूनिया ने बताया कि यहां सदियों पहले कभी आबादी होती थी लेकिन अब नहीं है।

इस तरह मिली थीं रामायणकालीन ईंटें

करीब ढाई साल पहले दिल्ली के पूर्व मंत्री और स्पीकर योगानंद शास्त्री जींद में आए हुए थे। उन्हें पुरातात्विक और ऐतिहासिक वस्तुओं का अच्छा ज्ञान था। इसी दौरान उनका नचार खेड़ा की तरफ घूमने के लिए जाना हुआ तो वहां उन्होंने खेतों में बने टीले पर ईंटें देखीं। इस पर वह उन ईंटों और टूटे हुए मिट्टी के बर्तन के टुकड़ों को अपने साथ ले गए। दिल्ली पुरातात्विक संग्रहालय में इनकी टेस्टिंग करवाई गई। विशेषज्ञों की जांच में पता चला कि धरोंद खेड़ा की जमीन से ली गई ईंटों का आकार और बनावट हुबहू रामायण काल की इंटों से मिलता है। इसके बाद 2019 में इन ईंटों को ऑस्ट्रेलिया में हुए अंतरराष्ट्रीय सदन में भी रखा गया और इन पर शोध करने की मांग की गई। 

राखी गढ़ी से ज्यादा संभावना धरोंद खेड़ा में 

पूर्व विधायक सूबे सिंह पूनिया और नचार खेड़ा निवासी किसान नेता सुरेश पंघाल ने बताया कि पुरातात्विक शोध संस्थान के लिए धरोंद खेड़ा में हिसार के गांव राखी गढ़ी से ज्यादा संभावनाए हैं, क्योंकि राखी गढ़ी गांव में दो गांवों की जमीन और वहां अतिक्रमण भी काफी ज्यादा है लेकिन धरोंद कलां में करीब 72 एकड़ जमीन खाली पड़ी है। किसी तरह का अतिक्रमण यहां नहीं है। नचार खेड़ा की ग्राम पंचायत भी पंचायती जमीन देने के लिए तैयार है। इसलिए यहां बिना किसी दिक्कत के बड़ा संस्थान बनाया जा सकता है। यहां खोदाई कर शोध भी किया जा सकता है। 

बन सकता है पर्यटन स्थल : सुरेश पंघाल

सुरेश पंघाल ने कहा कि धरोंद खेड़ा को पुरातात्विक विभाग द्वारा राज्य संरक्षित धरोहर घोषित किया जा चुका है। यहां बड़ा पर्यटन स्थल बनकर ऊभर सकता है। हाल ही में बनने वाले सिरसा-डबवाली-पानीपत नेशनल हाईवे भी यहीं से होकर गुजरेगा। अगर यहां पर विश्वविद्यालय बन जाए तो सरकार के साथ-साथ क्षेत्र के लोगों के लिए काफी फायदा होगा।

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