Politics: हरियाणा का रण नहीं लड़ी कांग्रेस, भाजपा को भी नुकसान हो गया...जानिये हर क्यों का जवाब
पानीपत से नेता सिरसा पहुंचे। ऐलनाबाद में शुरू-शुरू में उत्साह भी दिखाया। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें आभास हो गया कि चुनाव हारने वाले हैं। चुनाव कार्यालय में ही स्थितियां विपरीत दिखीं। यहां पर पार्टी के झंडे नहीं होते थे। कार्यकर्ता प्रचार के लिए आते लेकिन उन्हें निराश लौटा दिया जाता।
जागरण संवाददाता, पानीपत। हरियाणा के सोनीपत जिले की बरोदा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में धमाकेदार जीत दर्ज करने वाली कांग्रेस को आखिर ऐलनाबाद उपचुनाव में इतनी बड़ी हार क्यों देखनी पड़ी, इस सवाल और इस पर चर्चा हर तरफ हो रही है। सीधे-सीधे एक जवाब जरूर निकलकर आता है कि हरियाणा के इस रण में कांग्रेस कहीं थी ही नहीं। एक तरह से तो प्रत्याशी पवन बेनीवाल ने हार ही मान ली थी।
अभय चौटाला के कटते तो कांडा की जय तय थी
इसका सबसे बड़ा सुबूत तो यही है कि पार्टी के कार्यालय में पार्टी का झंडा तक नहीं होता था। कार्यकर्ताओं के लिए गाड़ियां, डीजल का इंतजाम तो किया ही नहीं गया। यानी, प्रत्याशी को मालूम था कि हार तय है। इस वजह से प्रचार पर खर्च क्यों किया जाए। दरअसल, बरोदा उपचुनाव में कांग्रेस का पूरा खेमा एकजुट था तो ऐलनाबाद में गुटबाजी ने पूरा खेल बिगाड़ दिया। भाजपा को उम्मीद थी कि पवन बेनीवाल अच्छे वोट लेकर अभय चौटाला के वोट काट देंगे। बीच में से भाजपा प्रत्याशी गोविंद कांडा सीट निकाल ले जाएंगे। रणनीति ठीक भी थी। इसी वजह से महज 6739 वोट से पीछे रह गए। सात हजार वोट अभय चौटाला के कटते तो कांडा की जय तय थी।
पहला सवाल- कांग्रेस ने क्या गलतियां कीं, पांच जवाब
जवाब-1 : पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे राज्यसभा सदस्य दीपेंद्र हुड्डा ने प्रचार से किनारा किया। हुड्डा यहां से भरत बेनीवाल को टिकट दिलाना चाहते थे।
जवाब-2 : भरत बेनीवाल ने प्रचार नहीं किया। रणदीप सुरजेवाला समेत कई स्टार नेता दूर रहे। प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा अकेले ही चुनाव रण में थीं। पर सफल नहीं हो सकीं।
जवाब-3 : किसान आंदोलन को भुना नहीं सके। किसान संगठन ही अलग-अलग तरफ थे। चढ़ूनी यहां पर कांग्रेस के साथ तो टिकैत चाहते थे कि अभय जीतें।
जवाब-4 : प्रत्याशी पवन बेनीवाल ने प्रचार पर जोर नहीं दिया। पार्टी कार्यालय तक उनका सूना रहा। कार्यकर्ताओं को कोई सुविधा नहीं दी। बाहर से आने वाले कार्यकर्ताओं व नेताओं को खास तवज्जो नहीं मिली।
जवाब -5 : कांग्रेस के दूसरे नेता भी प्रचार करने आए भी तो केवल चेहरा दिखाकर चले गए। हुड्डा समर्थक नेताओं धर्मसिंह छौक्कर तो कुछ देर के लिए ही आए और फिर गायब हो गए।
दूसरा सवाल- भाजपा ने क्या गलती की
जवाब : भाजपा ने जिस तरह प्रदर्शन किया, उससे अब कहा जा रहा है कि यहां पर सीट निकाली जा सकती थी। कुछ जगहों पर तो भाजपा ने प्रचार तक नहीं किया। प्रत्याशी वहां पहुंचा ही नहीं तो मतदाताओं ने वोट नहीं देने का फैसला किया। पवन बेनीवाल को यहां पर अभय चौटाला के वोट काटने के तौर पर देखा गया था। ऐसा हुआ भी। लेकिन मार्जिन कम रहा। अगर और ज्यादा वोट कटते तो सीधे सीधे भाजपा को फायदा होता।
पानीपत के नेता सिरसा पहुंचे
पानीपत से काफी नेता सिरसा पहुंचे। ऐलनाबाद में शुरू-शुरू में उत्साह भी दिखाया। लेकिन धीरे-धीरे उन्हें आभास हो गया कि चुनाव हारने वाले हैं। पहले तो चुनाव कार्यालय में ही स्थितियां विपरीत दिखीं। यहां पर पार्टी के झंडे नहीं होते थे। कार्यकर्ता प्रचार के लिए आते लेकिन उन्हें निराश लौटा दिया जाता। कांग्रेस के नेताओं ने बताया कि पवनी बेनीवाल ने चुनाव लड़ा ही नहीं। अगर लड़ते तो कम से कम जमानत तो जब्त न होती। इस हार से गलत संदेश गया है।
टिकट के चाहवान जरूर पहुंचे
आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट हासिल करने की जरूर दौड़ दिखी। कांग्रेसी यहां पर प्रचार करने पहुंचे। उन नेताओं ने यहां ज्यादा वक्त दिया, जो टिकट की दौड़ में थोड़ा कमजोर हैं। कांग्रेस के पानीपत से ग्रामीण सीट से नेता धर्मपाल गुप्ता ने कार्यालय प्रबंधन संभाला। वह दो सप्ताह तक वहां रहें। वहीं बिजेंद्र उर्फ बिल्लू कादियान ने भी काफी दिन वहां बिताए। जब भी मौका मिलता, कुमारी सैलजा के पास पहुंच जाते। यानी, बार-बार चेहरा दिखाया। इससे इन्हें उम्मीद है कि सैलजा उनके लिए टिकट का रास्ता खोलेंगी।
क्या आप जानते हैं
1- कांग्रेस से चुनाव लड़ने वाले पवन बेनीवाल तीसरी बार पराजित हुए हैं। वर्ष 2014 और 19 में वह भाजपा की तरफ से सियासी मैदान में थे। पर जीत नहीं सके। उपचुनाव से पहले कांग्रेस में शामिल हुए। सैलजा की मदद से टिकट लाए। पर ये चुनाव भी हार गए।
2- गोबिंद कांडा की भी यह तीसरी ही हार है। रानिया से दो बार पराजित हो चुके हैं। वैसे ऐलनाबाद में 16 प्रत्याशियों की इस बार जमानत जब्त हुई।
क्या हुड्डा चलेंगे कैप्टन की राह
जिस तरह पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह बाहर हुए, क्या ठीक उसी तरह भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी बाहर हो सकते हैं, ये सवाल जरूर उठ रहे हैं। वह हरियाणा में खुद को सर्वेसर्वा चाहते हैं। सैलजा की कप्तानी उन्हें मंजूर नहीं। पर हाईकमान को यह स्वीकार नहीं। जिस तरह से ऐलनाबाद चुनाव में हाईकमान तक संदेश गया है, उससे हुड्डा पर सख्ती हो सकती है।