जानिए एक स्वीमिंग कोच की कहानी, एक मौत से आहत होकर पूरे गांव के बच्चों को बना डाला तैराक
स्वीमिंग कोच सफाखेड़ी का अशोक लॉकडाउन के दौरान गांव में आया तो खाली बैठने की बजाय गांव के बच्चों को बना दिया कुशल तैराक। खटकड़ गांव में बच्चे की डूबने से मौत हुई तो बच्चों को कुशल तैराक बनाने का आया ख्याल।
पानीपत/जींद, [प्रदीप घोघडिय़ां]। आपदा को अवसर में कैसे बदला जाता है, इसका शानदार उदाहरण पेश किया है उचाना ब्लॉक के सफाखेड़ी गांव के स्वीमिंग कोच अशोक श्योकंद ने। मार्च के अंत में कोरोना के कारण जब पूरे देश में लॉकडाउन लग गया था तो गुरुग्राम में प्रोफेशन स्वीमिंग सीखाने वाला खरकभूरा गांव का अशोक श्योकंद गांव में लौट आया था। लॉकडाउन के दौरान खाली बैठने की बजाय अशोक श्योकंद ने गांव के बच्चों को फ्री में स्वीमिंग सीखाना शुरू कर दिया। तीन से चार महीने में अशोक ने खरकभूरा और आसपास के गांवों के करीब 100 कुशल तैराक तैयार कर दिए। अशोक ने बच्चों को स्वीमिंग ही नहीं सिखाई, बल्कि यह भी सीखाया कि डूबते हुए व्यक्ति को किस तरह से बचाया जा सकता है।
खरकभूरा गांव का अशोक पिछले कई सालों से गुरुग्राम में स्कूली से लेकर दूसरे बच्चों को अशोक प्रोफेशनल स्वीमिंग सीखाता आ रहा है और उनके सीखाए बच्चे नेशनल प्रतियोगिता में भाग ले चुके हैं। लॉकडाउन में अशोक गांव में आया हुआ था। उसी दौरान खटकड़ गांव में बच्चे की डूबने से मौत हो गई थी तो इस घटना पर अशोक काफी आहत हुआ। अपने दोस्त सुरेंद्र श्योकंद के साथ खेत में बैठे-बैठे अशोक ने कहा कि क्यों न अपने गांव के बच्चों को तैराकी में इतना कुशल बनाया जाए कि गांव में इस तरह की कोई घटना न हो।
सुरेंद्र श्योकंद ने भी अशोक की बात पर सहमति जताई तो गांव में अनाउंसमेंट करवाया गया कि जो भी बच्चा तैराकी सीखना चाहता है तो वह उनसे मिले। शुरूआत में अशोक के दोस्त सुरेंद्र के बागवानी के खेत में ड्रिप सिंचाई के लिए बनाए गए पानी के टैंक में बच्चों को स्वीमिंग सिखाने से हुई। पानी के टैंक की लंबाई 40 फुट तो चौड़ाई 10 फुट है, इसलिए बच्चों को स्वीमिंग सीखने में कोई परेशानी नहीं आई। उसके बाद बच्चों की संख्या बढ़ी तो गांव के बाहर बने तालाब में स्वीमिंग सीखाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे आसपास के गांवों में भी अशोक का नाम गूंजने लगा।
उचाना, पालवां तक के बच्चे आ रहे तैराकी सीखने
अशोक श्योकंद ने बताया कि उसने स्वीमिंग का कोर्स किया हुआ है। पहले वह कुश्ती करता था लेकिन एक बार अपने दोस्तों के साथ गुरुग्राम गया हुआ था तो उस दौरान स्वीमिंग करते युवा देखे तो उसके मन में स्वीमिंग सीखने का ख्याल आया। गांव के बच्चों को उसने तैराना सीखाया, जिसके बाद उचाना और पालवां के बच्चे भी स्वीमिंग सीखने के लिए आने लगे हैं। 6 साल से ऊपर की उम्र के बच्चे उसके पास स्वीमिंग सीखने आ रहे हैं, जो अब कुशल तैराक बन चुके हैं।
स्वीमिंग सीखाने के साथ बनाया जा रहा लाइफ गार्ड
अशोक बच्चों को केवल स्वीमिंग ही नहीं सीखा रहे हैं। स्वीमिंग के साथ-साथ वह बच्चों को लाइफ गार्ड की भी ट्रेनिंग दे रहे हैं। अगर कोई व्यक्ति पानी में डूब रहा है तो उसे कैसे बचाया जा सकता है। उसे पानी से कैसे निकाला जाए, बाहर निकालने के बाद अगर उसके शरीर में पानी चला गया है तो उसे कैसे निकाला जाए, इन सब की ट्रेङ्क्षनग भी बच्चों को दी जा रही है।
सरकार नजरें इनायत करे तो निखर सकती है बांगर की प्रतिभा
अशोक ने कहा कि स्वीमिंग सेहत के लिए वरदान है। पिछले कुछ समय से तैराकी से युवा दूर होते जा रहे थे। उचाना और जींद में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। अफसोस इस बात है कि जिले में एक भी स्वीमिंग पूल नहीं है, जहां बच्चे अपने हुनर को तरास सकें। अगर सरकार नजरें इनायत करे तो बांगर की प्रतिभा निखर सकती है।