Chhath Puja 2021: भगवान राम व महाभारत काल में भी रहा है छठ पूजा का महत्व, पढ़ें
पौराणिक मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी के अस्ताचल सूर्य एवं सप्तमी को सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। ब्रह्मर्षि वशिष्ठ से प्रेषित होकर राजऋषि विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र नामक यजुष का प्रसव हुआ था।
कुरुक्षेत्र, जागरण संवाददाता। सूर्य उपासना के पावन पवित्र पर्व छठ पूजा का महत्व भगवान राम व महाभारत काल में भी रहा है। लंकापति रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने राम राज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी। वहीं महाभारत काल में द्रौपदी ने पांचों पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा और सूर्य की उपासना की थी। जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनका खोया राजपाट वापस मिल गया था।
धूमधाम से मनाया जाता है छठ पर्व
श्री दुर्गा देवी मंदिर पिपली के अध्यक्ष ज्योतिष और वास्तु विशेषज्ञ डा. सुरेश मिश्रा ने बताया कि छठ का पर्व हर वर्ष कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस वर्ष छठ पर्व की पूजा 10 नवंबर बुधवार,उ त्तराषाढ़ा नक्षत्र ,मकर राशि को होगी। यह पर्व बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। छठ पर्व षष्ठी तिथि से दो दिन पहले अर्थात चतुर्थी से नहाय-खाय से आरंभ हो जाता है और इसका समापन 11 नवंबर वीरवार को सप्तमी तिथि को पारण करके किया जाएगा। छठ पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है। इस पर्व में मुख्य सूर्य देव को अर्घ्य देने का सबसे ज्यादा महत्व माना गया है।
पौराणिक महत्त्व
पौराणिक मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल षष्ठी के अस्ताचल सूर्य एवं सप्तमी को सूर्योदय के मध्य वेदमाता गायत्री का जन्म हुआ था। ब्रह्मर्षि वशिष्ठ से प्रेषित होकर राजऋषि विश्वामित्र के मुख से गायत्री मंत्र नामक यजुष का प्रसव हुआ था। भगवान सूर्य की आराधना करते हुए मन में गद्य यजुष की रचना की आकांक्षा लिए हुए विश्वामित्र के मुख से अनायास ही वेदमाता गायत्री प्रकट हुई थी। ऐसे यजुष को वेदमाता होने का गौरव प्राप्त हुआ था। यह पावन मंत्र प्रत्यक्ष देव आदित्य के पूजन, अर्घ्य का अद्भुत परिणाम था। तब से कार्तिक शुक्ल षष्ठी की तिथि परम पूज्य हो गई।
भगवान श्री राम और सीता माता ने की थी सूर्य उपासना
डा. सुरेश मिश्रा ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार लंकापति राजा रावण का वध कर अयोध्या आने के बाद भगवान श्रीराम और माता सीता ने राम राज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी। वहीं पौराणिक कथाओं में द्रौपदी ने पांचों पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनका खोया राजपाट वापस मिल गया था। महाभारत के अनुसार दानवीर कर्ण सूर्य के पुत्र थे और प्रतिदिन सूर्य की उपासना करते थे। कथानुसार सबसे पहले कर्ण ने ही सूर्य की उपासना शुरू की थी। वह प्रतिदिन स्नान के बाद नदी में जाकर सूर्य को अर्घ्य देते थे।