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ब्रिटेन के वैज्ञानिक जीरो बजट खेती के कायल, बारीकियां जानने पहुंचे कुरुक्षेत्र के गुरुकुल

वैज्ञानिक प्रोफेसर करिस कोलिन्स और डॉ. सारन डूडीगन ने कुरुक्षेत्र के गुरुकुल फार्म का दौरा किया। उन्‍होंने जीरो बजट की खेती के बारे में जानकारी ली।

By Anurag ShuklaEdited By: Published: Fri, 21 Feb 2020 03:23 PM (IST)Updated: Sat, 22 Feb 2020 09:37 AM (IST)
ब्रिटेन के वैज्ञानिक जीरो बजट खेती के कायल, बारीकियां जानने पहुंचे कुरुक्षेत्र के गुरुकुल
ब्रिटेन के वैज्ञानिक जीरो बजट खेती के कायल, बारीकियां जानने पहुंचे कुरुक्षेत्र के गुरुकुल

पानीपत/कुरुक्षेत्र, [जगमहेंद्र सरोहा]। गुजरात के राज्यपाल महामहिम आचार्य देवव्रत के द्वारा शुरु की गई शून्य लागत प्राकृतिक कृषि की मुहिम अब विदेशों में भी अपना असर दिखाने लगी है। इसी संदर्भ में ब्रिटेन के वैज्ञानिक प्रोफेसर करिस कोलिन्स एवं डॉ. सारन डूडीगन तथा सीएसएसआइआर करनाल के वैज्ञानिक डॉ. आर. के. सिंह ने गुरुकुल कुरुक्षेत्र के फार्म का दौरा किया और फार्म पर किये गये शोध एवं कार्य की जानकारी ली। 

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गुरुकुल के प्रधान कुलवन्त सिंह सैनी ने आगंतुक वैज्ञानिकों का स्वागत किया और गुरुकुल की गतिविधियों की जानकारी दी। सह प्राचार्य शमशेर सिंह ने गुरुकुल फार्म पर पिछले 10 साल से कृषि पद्धतियों पर किये गये कार्यों के बारे में बताया और शून्य लागत प्राकृतिक खेती के लाभ और किसानों व देश की भलाई के लिए शून्य लागत प्राकृतिक कृषि के महत्त्व एवं आर्थिक पहलुओं पर जानकारी दी।

कृषि विज्ञान केन्द्र में कार्यरत वैज्ञानिक डॉ. हरिओम ने गुरुकुल फार्म पर शून्य लागत प्राकृतिक कृषि के ऊपर शोध कार्यों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि पूरे विश्व को दवाइयों व रासायनिक खादों से होने वाले दुष्परिणामों और आगे आने वाले ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों से यदि बचना है तो शून्य लागत प्राकृतिक कृषि बहुत उपयोगी कृषि पद्धति हो सकती है। डॉ. विजय ने बताया कि छोटे और सीमित किसानों की स्थिति बेहतर करने के लिए एवं भूमि, वातावरण और जल की स्थिति में सुधार के लिए यह पद्धति बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकती है।

गुरुकुल फार्म पर किये गये कार्यों को देखकर डॉ. करिस अत्यन्त प्रभावित हुए। उन्होंने कहा कि यह मॉडल आन्ध्र प्रदेश व दक्षिण के प्रदेशों में किये शून्य लागत प्राकृतिक कृषि से भिन्न है और यहाँ की परिस्थिति के अनुसार बहुत ही बेहतर मॉडल है। यह देश और विश्व के किसानों के लिए समय की आवश्यकता है, इससे न केवल भूमि और वातावरण का स्वास्थ्य सुधरेगा बल्कि पानी की भी बचत होगी और वायुमण्डल में बढ़ती हुई गर्मी और ग्रीन हाउस गैसों के प्रभाव को कम करने में यह मॉडल महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।


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