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म्हारी छौरियां के छोरों से कम सै के

म्हारी छौरियां के छौरों से कम हैं। दंगल फिल्म का यह डॉयलाग यहां सटीक बैठता है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 08 Mar 2018 02:34 AM (IST)Updated: Thu, 08 Mar 2018 02:34 AM (IST)
म्हारी छौरियां के छोरों से कम सै के
म्हारी छौरियां के छोरों से कम सै के

विजय गाहल्याण, पानीपत: म्हारी छौरियां के छौरों से कम हैं। दंगल फिल्म का यह डॉयलाग शिवाजी स्टेडियम में बॉ¨क्सग ¨रग में लड़कों को नाक आउट करने वाले लड़कियों पर सटीक बैठता है। इनमें से तीन बॉक्सर ऐसी हैं, जिनके पिता व भाई खिलाड़ी नहीं बन पाए। ये बेटियां राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुकी हैं। उनकी सफलता का अभियान जारी है। इन्हीं की काबिलियत का ही असर है कि जो लोग तंज कसते थे अब वे न सिर्फ तारीफ करते हैं बल्कि अपनी भी बेटियों को खेल के मैदान में भेज रहे हैं। चार साल पहले जहां स्टेडियम में चार लड़कियां बॉ¨क्सग का अभ्यास करती थी, अब इनकी संख्या 32 है।

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जीत से बना लिया विरोधियों को मुरीद

7वें नेशन बॉ¨क्सग कप, स्कूल नेशनल और खेलो इंडिया की स्वर्ण पदक विजेता शिमला मौलाना गांव की 16 वर्षीय ¨वका का कहना है कि तीन साल पहले उसने शिवाजी स्टेडियम में कोच सुनील कुमार के पास बॉ¨क्सग सीखना शुरू किया तो परिजनों और ग्रामीणों ने विरोध किया था। उसे गुस्सा भी आया। कई बार अकेले में रोई भी। तब ठान लिया था कि वह फिलहाल चुप रहेगी। उसकी जीत ही जवाब होगा। खेल के प्रति उसका जुनून देख पिता धर्मेंद्र ने सहयोग किया। मेहनत की और पदक जीते। अब विरोध करने वाले उसके मुरीद हो गए हैं। वे बेटियों को खेल के मैदान में भेज रहे हैं।

रिश्तेदारों ने किया था विरोध, पिता ने नहीं की परवाह

रुरल नेशनल चैंपियन 15 वर्षीय जयश्री का कहना है कि वह शारीरिक रूप से दुबली-पतली थी। चार साल पहले उसने बॉक्सिंग खेलना शुरू किया तो रिश्तेदारों ने विरोध जताया था कि खेल में जबड़ा टूट जाएगा। उन्होंने पिता राजेंद्र को नसीहत दी थी कि बेटी (उसकी) पढ़ा-लिखाकर कर शादी करा दीजिए। यह खेल लड़कियों का नहीं है। पिता राजेंद्र और ताऊ नारायण ने रिश्तेदारों की परवाह नहीं की और उसे बॉ¨क्सग का अभ्यास करने भेजते रहे। इसी वजह से वह पदक जीत पाई। अब रिश्तेदार उसकी तारीफ करते हैं। इससे उसे अच्छा लगता है।

पहले डर गई थी, अब पंच लगाने में आता है मजा

जिला चैंपियन ¨बझौल गांव की 9 वर्षीय साक्षी ने बताया कि उसके पिता चंद्रपाल रेलवे में ट्रैकमेन हैं। पिता कबड्डी के खिलाड़ी रहे लेकिन वे राज्य स्तर पर नहीं खेल पाए। पिता की चाहत है कि बेटी बॉक्सर बने। ¨रग में पंच लगने से वह डर गई थी। चोट लगने से रोई भी थी। फिर कोच सुनील ने हौसला बढ़ाया। अब उसे डर नहीं लगता है। विरोधी को पंच लगाने में मजा आता है। वह अपने वजन के लड़कों को भी हरा देती है। उसका लक्ष्य राज्यस्तरीय बॉ¨क्सग प्रतियोगिता में पदक जीतना है।


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