Teachers Day Special: जीवन के अंधेरे को चीर, भविष्य को बांट रहीं उजाला, पढि़ए उनकी कहानी Panipat News
दृष्टिबाधित के बावजूद स्कूल में टॉपर तैयार कर रही हैं। स्कूल के अलावा घर का भी जिम्मा उठाया हुआ है। बात कर रहे हैं पूनम और राजवंती की। मकसद जरूरतमंद बच्चों को ऊंचाइयों तक पहुंचाना।
पानीपत, जेएनएन। अपने जीवन के अंधेरे को चीरकर अपने ज्ञान के प्रकाश से विद्यार्थियों के जीवन को रोशन कर रही हैं। उनकी दिनचर्या घर के काम तक ही सीमित नहीं है। ये आगे बढ़कर विद्यार्थियों का जीवन भी संवार रहीं हैं। शिक्षा के प्रति जीवन को इस कदर समर्पित कर चुकी हैं कि आज मिसाल बन चुकी हैं।
हम बात कर रहे हैं राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय बीसी बाजार छावनी की दृष्टिबाधित शिक्षिका पूनम व राजवंती की। शुरुआत में बिना देखे पढ़ाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा। बाद में, एक ने ब्रेल लिपी की बुक तक छपवा ली तो दूसरी ने घर में पहले पढ़वाकर खुद समझना शुरू कर दिया। फिर क्या था दोनों पहले खुद पढ़ती हैं फिर विद्यार्थियों को पढ़ा रही हैं। सिर्फ इतना ही नहीं इनके पढ़ाए हुए कई बच्चे टॉपर रह चुके हैं।
शिक्षिका पूनम व राजवंती।
स्कूल टॉपर रहे हैं पूनम के विद्यार्थी
दयाल बाग निवासी पूनम रानी का कहना था कि शुरू से ही उन्हें पढऩे व पढ़ाने का शौक रहा। बीए तक तो सब ठीक रहा, लेकिन अचानक एक बीमारी के चलते आंखों की रोशनी धीरे-धीरे चली गई। उस समय ब्रेल लिपी से भी पढ़ाई नहीं की। लेकिन मन में था कि अपने ज्ञान के प्रकाश से दूसरों के जीवन को रोशन करें। फिर क्या था, 16 साल पहले शिक्षिका बन पढ़ाने का जिम्मा उठाया। ब्रेल लिपी की जानकारी न होने के कारण काफी परेशानियों झेली। फिर जाकर उन्होंने सुबह क्लास में पढ़ाए जाने वाले विषय की घर पर ही तैयारी शुरू कर दी। परिवार के सदस्य से संबंधित किताबों को वह खुद समझती। उनकी पढ़ाई बच्ची सिमरन 12 वीं की परीक्षा में स्कूल टॉपर तक रह चुकी है। उनके द्वारा पढ़ाई जाने वाले पॉलिटिकल विषय में छात्रा ने 100 में से 95 अंक हासिल किए थे।
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ब्रेल लिपि से कराती है पढ़ाई
एयरफोर्स क्वाटर में रहने वाली राजवंती ने बताया कि भले ही छोटी उम्र में बीमारी के चलते अपनी आंखें गंवा चुकी हों, लेकिन वह स्कूली विद्यार्थियों के भविष्य को संवारने में कोई कसर नहीं छोड़तीं। सामाजिक विज्ञान व अंग्रेजी की शिक्षिका होने के नाते वह अपने विषयों की पहले ही ब्रेल लिपी से बुक छपवा लेती है। रोजाना स्कूल में करवाए जाने वाले काम को घर पर दोहराती है। ताकि वह कहीं भी दूसरी शिक्षिकों से मात न खा जाएं। पति रघुवीर भी दृष्टिबाधित है और एयरफोर्स में टेलीफोन ऑपरेटर तैनात हैं।
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इशारों से बोलना सिखाया, दिमाग से सुनना
बोल नहीं सकते... इशारों की भाषा सिखाई। सुन नहीं सकते थे.. दिमाग से सुनना सिखाया। चल नहीं सकते थे... स्कूल तक पहुंचाया। तमगे बेशक न मिले हों, पर शिक्षा की राह पर तुम बढ़े चलो.. बस आगे बढ़ो, यही हमारा सम्मान है। मॉडल टाउन स्थित राजकीय अंध विद्यालय में दिव्यांग बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों को सम्मान मिला तो उनके चेहरों की खुशी कुछ यहीं बयां कर रही थी। मौका था पानीपत में शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में 'सबको रोशनी फाउंडेशन' की तरफ से आयोजित सम्मान समारोह का। इसमें अंध विद्यालय सहित सवेरा स्पेशल स्कूल, जीडी गोयनका स्कूल, दिशा स्पेशल स्कूल और राधे डांस एकेडमी के डांस शिक्षक राधे पांचाल सहित 40 शिक्षकों को सम्मानित किया गया।
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मैं देख नहीं सकती। ब्रेल लिपि से शिक्षा ग्रहण की, एमए म्यूजिक की। चार साल से यहां अपने जैसे बच्चों को पढ़ा रही हूं। ब्रेल लिपि से बच्चों को गीता का पाठ करना सिखाया। यही मेरी उपलब्धि है। मुझे पढ़ाने में कोई दिक्कत नहीं आती। दृष्टिहीन होने के कारण बच्चों को स्कूल पहुंचने में कुछ परेशानी होती होगी।
-राजेश रानी, शिक्षिका, राजकीय अंध विद्यालय
पहले डेफ एंड डंब बच्चों को पढ़ाता था। इसके बाद सरकारी स्कूल में टीचर की जॉब लग गई। जिनके बच्चों को पढ़ाता था उनके आग्रह पर नौकरी छोड़ दी। बहुत कम लोगों को पता होगा कि नहीं बोलने वाले बच्चों में अस्सी फीसद वे हैं जो सुन ठीक से सुन नहीं पाते। ऐसे बच्चों को हियङ्क्षरग मशीन मुहैया कराई जाती है।
दिनेश कुमार, शिक्षक-जेके गोयनका डेफ एंड डंब स्कूल
श्री श्याम रिहैबिलिटेशन सोसाइटी की ओर से शांतिनगर में दिशा दिव्यांग स्कूल का संचालन हो रहा है। फिलहाल 85 बच्चे हैं और सात शिक्षक हैं। मैंने साइन लैंग्वेज सीखी है। मन में एक बात ही रहती है कि किसी तरह स्कूल के बच्चे कामयाब हो जाएं। बच्चों को हियरिंग मशीन भी संस्था उपलब्ध कराती है।
शीना शर्मा, शिक्षिका-दिशा दिव्यांग स्कूल
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